राजस्थानी चित्रकला (Rajasthani paintings)
- राजस्थानी चित्रकला का सबसे पहला वैज्ञानिक विभाजन 1916 मे आनंद कुमार स्वामी ने अपनी पुस्तक राजपूत पेंटिंग्स में किया इसलिए इन्हें राजस्थानी चित्रकला का जनक माना जाता है।
- राजस्थानी चित्रकला का आधुनिक जनक - कुंदन लाल मिस्त्री
- राजस्थान चित्रकला को हिंदू शैली एच सी मेहता ने कहा था।
- कुमार स्वामी, ओ सी गांगुली एवं हैवेल ने राजस्थानी चित्रकला को राजपूत चित्रकला कहा है।
- राजस्थान चित्रकला को राजस्थानी चित्रशैली रामकृष्ण दास व कर्नल जेम्स टॉड ने कहा।
राजस्थान मे प्राचीनतम चित्रण के अवशेष शैल चित्र कोटा के आसपास चंबल नदी के किनारे की चट्टानो पर मुकंदरा एवं दर्रा की पहाड़ियो मे आलनिया दर्रा के किनारे की चट्टानों आदि मे मिले है जिनकी खोज 1853 मे श्रीधर वाकणकरण ने की।
राजस्थान के सर्वाधिक प्राचीन उपलब्ध चित्रित ग्रंथ जैसलमेर भंडार मे 1060ई के " ओध निर्यूक्ति व्रत्ति" एवं "दस वैकालिका सूत्र चूर्णी" मिले है, इन्हें नागपाल के वंशज आनंद ने चित्रित करवाया।
17वीं व 18वीं शताब्दी को राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णकाल माना जाता है।
प्रारंभ मे राजस्थानी चित्रकला पर सर्वाधिक प्रभाव अजन्ता शैली का पडा।
भित्ति चित्रण - भित्ति(दीवार) पर सौन्दर्य और सृजन की दृष्टि से किया हुआ नानारूपी अलंकरण भित्ति चित्रण कहलाता है।
राजस्थान के प्रमुख चितेरे
- मास्टर ऑफ नेचर - देवकीनंदन
- भैंसों का चितेरा - परमानंद चोयल
- गांवों का चितेरा - भुरसिंह शेखावत
- भीलो का चितेरा - गोवर्धनलाल बाबा
- नीड का चितेरा - सोभाग्यमल गहलोत
- स्वानो का चितेरा - जगमोहन माथेडिया
- राजस्थान चित्रकला की सबसे प्राचीन शैली मेवाड़ शैली है।
- राजस्थान की विभिन्न चित्रशैलिया/स्कूल निम्न है - मेवाड़ स्कूल,मारवाड़ स्कूल, हाड़ौती स्कूल, एवं ढूंढाड स्कूल
मेवाड़ स्कूल
उदयपुर शैली या मेवाड़ चित्रशैली
- प्राचीन शैली -यह राजस्थान चित्रकला की मूलशैली मानी जाती है।
- महाराणा कुंभा - इस शैली का प्रारम्भिक विकास महाराणा कुंभा के शासन काल मे हुआ।
- 1260-61 मे रावल तेजसिंह के काल मे चित्रित "श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी"इस शैली का प्रथम चित्रित ग्रंथ है इसका चित्रकार कमलचंद था।
- जगत सिंह - महाराणा जगत सिंह का शासन काल इस शैली का स्वर्णकाल कहलाता है महाराणा जगत सिंह प्रथम ने राजमहल मे "चितेरो की ओवरी" नाम से कला विध्यालय स्थापित किया, इसे तस्वीरां रो कारख़ानो कहा जाता है।
- सन 1423 मे दिलवाडा मे हीरानंद ने महाराणा मोकल के समय सुपासनाह चरियम(दूसरा चित्रित ग्रंथ)नामक ग्रंथ चित्रित किया।
- कलीला दमना - यह एक रूपात्मक कहानी है प्राचीन भारतीय रचना पंचतंत्र(विष्णु शर्मा द्वारा रचित) का हिन्दी अनुवाद कलीला दमना के रूप मे किया गया है इसका चित्रांकन नुरदीन द्वारा किया गया।
- प्रधान रंग - पीला
- प्रमुख चित्रकार - साहिबुद्दीन, भैराराम, कृपाराम, मनोहर
- प्रमुख चित्र- रामायण - मनोहर द्वारा चित्रित (1651), भागवतपुराण- साहिबदीन (1648)
नाथद्वारा शैली (पिछवाई शैली)
- महाराणा राजसिंह - महाराणा राजसिंह का काल इस शैली का स्वर्णकाल कहलाता है।
- इस शैली मे कृष्ण चरित्र की बहुलता के कारण श्री कृष्ण, माता यशोदा, बाल ग्वाल, गोपियो, गायो, प्राकृतिक परिवेश, केले के वृक्ष, पुजारियों एवं गुसाईयो, एवं हिंडोला उत्सव का चित्रण विशेष हुआ।
- पिछवाई शैली - इसमे श्री कृष्ण की प्रतिमा के पीछे दीवार को कपड़े से ढककर उस पर कृष्ण की विविध लीलाओ को चित्रित किया जाता है। यह कला वल्लभ संप्रदाय के मंदिरो मे विशेष रूप से प्रचलित है।
- आला गीला फ्रेसको- नाथद्वारा मे भित्ति चित्रण मे इस शैली का प्रयोग किया जाता है।
- नरोत्तम शर्मा - पिछवाई चित्र विधा मे राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरुष्कार से सम्मानित।
- प्रमुख चित्रकार- नारायण, चतुर्भुज, घासीराम, उदयराम
- महिला चित्रकार - कमला व इलायची
देवगढ़ शैली
- श्रीधर अंधारे - सर्वप्रथम डॉ श्रीधर अंधारे ने इस शैली को प्रसिद्धि दिलाई।
- प्रकृतिक परिवेश, राजसी ठाट बाट,अन्तःपुर आदि शैली के चित्रण के प्रमुख विषय थे।
- प्रमुख चित्रकार - कंवला, चौखा, बैजनाथ, वगता, नंगा आदि।
- इस शैली के प्रमुख भित्ति चित्र अजारा की ओवरी एवं मोतीमहल है।
चावंड शैली
- महाराणा प्रताप के काल में इस शैली का प्रारंभ हुआ एवं महाराणा अमरसिंह के शासन काल को इस शैली का स्वर्णकाल माना जाता है।
- नसीरुद्दीन का 1605 मे चित्रित रागमाला ग्रंथ इस शैली का प्रमुख ग्रंथ है रागमाला संपूर्ण मेवाड़ शैली का सबसे बड़ा चित्रित ग्रंथ है।
मारवाड़ स्कूल
जोधपुर शैली
- इस शैली का प्रारंभिक विकास मालदेव के समय हुआ।
- महाराजा मानसिंह प्रथम का काल इस शैली का स्वर्ण काल कहलाता है।
- प्रमुख चित्रकार - नारायण दास, अमरदास, बिशन दास, शिवदास, नाथा, छज्जु, रामा, रतन भाटी, सेफू जितमल, मतीराम, फेजअली
- प्रमुख चित्रित ग्रंथ - उत्तराध्यायन सुत्र चुर्णी, ढोला मारू, बिलावल रागिनी चित्र, कामसूत्र, पंचतंत्र, वेली किशन रुक्मणी री आदि।
- प्रमुख चित्र - मुमल निहालदे, ढोला मारू, कल्याण रागिनी, रूपमति बाज बहादुर, जंगल मे कैंप,दरबारी जीवन, राजसी ठाट, उत्तराध्यन सूत्र, मरु के टीले।
- आम के वृक्ष, घोड़े, कुत्ते आदि का चित्रण।
- चोखेलाव महल - राव मालदेव ने मेहरानगढ़ दुर्ग में चोखेलाव महल का निर्माण करवाया एवं उसमें दो चित्र चित्रित करवाएं जो राम रावण का युद्ध एवं सप्तसती का चित्र था।
- 1623 चित्रकार वीरजी द्वारा पाली के विट्ठल दास चंपावत के लिए रागमाला चित्र का चित्रांकन किया गया, यह चित्र मारवाड़ की सबसे प्राचीनतम तिथियुक्त कृति है, 1634 मे इन्होने उपदेशमालावृति चित्र का भी चित्रांकन किया।
- नाथा द्वारा चित्रित महाराजा जसवंतसिंह का चित्र मेहरानगढ संग्रहालय में संरक्षित है।
बीकानेर शैली
- बीकानेर शैली के चित्रकार अपने चित्रो पर अपना नाम एवं तिथि अंकित करते थे।
- इस शैली का प्रारंभ महाराजा रायसिंह के शासनकाल में हुआ।
- महाराजा अनूप सिंह का शासनकाल इस शैली का स्वर्ण काल माना जाता है।
- प्रमुख चित्रकार - आमिर खाँ, मोहम्मद खाँ, रुकनुद्दीन, अली रजा, मुन्नालाल, चंदूलाल, मुकुंद, नूर मोहम्मद, मेघराज
- उस्ता कलाँ - ऊंट की खाल पर कलात्मक चित्रांकन उस्ता कला कहलाता है।
- मथैरण कला - धार्मिक स्थलो एवं पौराणिक कथाओ पर आधारित विभिन्न देवी-देवताओ के आकर्षण भित्ति चित्र, ईसर, तोरण, गणगौर आदि का निर्माण व इन्हे विभिन्न आकर्षण रंगो से सजाने की कला मथैरण कला कहलाती है।
- इस शैली में घोड़े का सर्वाधिक चित्रण किया गया है।
अजमेर शैली
प्रमुख चित्रकार - साहिबा, चांद
चांद नामक चित्रकार ने इस शैली में अधिकांश चित्र ईसाई धर्म से संबंधित बनाए हैं।
पाबुजी का चित्र भी चांद ने बनाया।
किशनगढ़ शैली/ बणी -ठणी
- बणी ठणी का मूल नाम विष्णुप्रिया था।
- बणी-ठणी का अर्थ है - सजी संवरी या सजी धजी
- सावंतसिंह(नागरीदास) - सावंतसिंह किशनगढ़ के शासक ने अपनी दासी का रानियो जैसा श्रंगार कर उसका चित्र बनवाया उस चित्र का नाम बणी-ठणी रखा। यह सावंतसिंह की प्रेमिका थी बनी ठनी चित्र के नाक में वेसरी आभूषण बनाया गया है
- निहालचंद- बणी-ठणी का चित्रण निहालचंद ने किया।
- बणी-ठणी को भारत की मोनालिसा भी कहा जाता है। इन्होने नागरीदास को कृष्ण एवं उनकी प्रेमिका को राधा का रूप दिया।
- एरिक डिकसन- इसको भारत की मोनालिसा की संज्ञा एरिक डिकसन ने दी किशनगढ़ शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय एरिंग डिक्शन एवं डॉ फैयाज अली को जाता है।
- भारत सरकार ने सन 05 मई 1973 में बणी ठणी पर डाक टिकट जारी किया था।
- प्रमुख चित्रकार - निहालचंद, अमरचंद, लाडलीदास, सीताराम, बदनसिंह, नानकराम
- किशनगढ़ शैली वल्लभ संप्रदाय से प्रभावित शैली है।
- किशनगढ़ शैली का चांदनी रातों की संगोष्ठी नामक चित्र का चित्रांकन अमरचंद द्वारा किया गया।
नागौर शैली
जैसलमेर शैली
हाडौती स्कूल
कोटा शैली
- सर्वाधिक शिकार के दृश्य इसी शैली में मिलते हैं इस शैली के चित्रों में राजा एवं रानियों को शिकार करते हुए दर्शाया गया है इसलिए इसे शिकार शैली भी कहा जाता है।
- प्रमुख चित्रकार - डालु, रघुनाथ, रामलाल, लच्छीराम, गोविन्द
- चित्रकार डालू द्वारा कोटा शैली में रागमाला ग्रंथ चित्रित किया गया।
- वसली - जब कागज पर कागज रखकर चित्र बनाए जाते हैं तो उसे वसली जाता है।
बूंदी शैली
- पशु पक्षियों का सर्वाधिक चित्रण इसी शैली में पाया जाता है।
- यह चित्र शैली भित्ति चित्रों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
- नाचता हुआ मोर नायिका एवं कजली तीज का चित्रण इसी शैली में हुआ है।
- प्रमुख चित्रकार - नूर मोहम्मद, रामलाल, श्री कृष्ण, सुरजन, अहमद अली।
- रंगशाला/चित्रशाला महल - यह महल तारागढ़ दुर्ग बूंदी में स्थित है इसका निर्माण उमेद सिंह द्वारा करवाया गया था इसे भित्ति चित्रों का स्वर्ग कहा जाता है।
- प्रधान रंग - हरा
ढूंढाड शैली
आमेर शैली
- इसी शैली का प्रारंभ मिर्जा राजा मानसिंह के शासनकाल में हुआ
- मिर्जा राजा जयसिंह के शासनकाल को आमेर शैली का स्वर्ण काल कहा जाता है।
- राजस्थान में सर्वप्रथम भित्ति चित्रण का प्रारंभ आमेर शैली से हुआ।
- प्रमुख चित्रकार - पुष्पदंत, मुरली, हुक्काचंद
- इस शैली में प्राकृतिक रंगों का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है।
- बिहारी सतसई ग्रंथ का चित्रांकन इसी शैली में हुआ है।
- मुगल शैली का सर्वप्रथम प्रभाव इसी शैली पर पड़ा था।
जयपुर शैली
- प्रमुख चित्रकार - साहिबराम, सालिगराम, रामजीराम, गंगाबक्श, लालचंद, रघुनाथ,
- जयपुर शैली का प्रारंभ सवाई जयसिंह के शासनकाल में हुआ।
- सवाई ईश्वरी सिंह का आदमकद चित्र चित्रकार साहिबराम द्वारा बनाया गया।
- सवाई प्रताप सिंह का शासनकाल जयपुर शैली का स्वर्ण काल माना जाता है।
- चित्रकार लालचंद हाथियों की लड़ाई या पशुओं की लड़ाई के चित्रांकन के लिए प्रसिद्ध है।
- सवाई रामसिंह द्वितीय ने जयपुर में महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट की स्थापना की।
अलवर शैली
- प्रमुख चित्रकार गुमान अली, बलदेव, डालूराम, मूलचंद सोनी, जमुनादास, छोटेलाल, नंदलाल, गंगालाल, बक्साराम
- चित्रकार मूलचंद द्वारा अलवर शैली में हाथी दांत पर चित्रण किया गया।
- बेस्लो शैली - वह शैली जिसमें चित्र से अधिक महत्व बॉर्डर को दिया जाता है उसे बेस्लो शैली कहा जाता है इस शैली का सर्वाधिक प्रयोग अलवर शैली में किया गया।
- योगासन एवं वेश्याओं का सर्वाधिक चित्रण इस शैली में किया गया है।
- अलवर महाराजा विनयसिंह का शासनकाल इस शैली का स्वर्ण काल माना जाता है।
- अलवर शैली में प्रमुख चित्र ग्रंथ गुलिस्ता ग्रंथ है जिसे शेख सादी द्वारा चित्रित किया गया।
उनियारा शैली
- उनियारा ठिकाना वर्तमान में टोंक जिले में स्थित है।
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