". राजस्थान मे 1857 कि क्रान्ति ~ Rajasthan Preparation

राजस्थान मे 1857 कि क्रान्ति


राजस्थान मे 1857 जन आंदोलन

1857 kranti
 
1857 ई के विद्रोह के समय राजस्थान मे 6 सैनिक छावनीयाँ (नसीराबाद, नीमच, एरिनपुरा, खेरवाड़ा, ब्यावर व देवली) थी। इनमे से नासीराबाद नीमच एरिनपुरा व देवली छावनी के सैनिको ने विद्रोह मे भाग लिया। 
 
इस क्रान्ति की शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ से हुई।
इस समय भारत के गवर्नर जनरल लाॅर्ड केनिंग थे। 

राजस्थान मे विद्रोह की शुरुआत नसीराबाद से 28 मई 1857 को हुई। इस समय राजस्थान के एजीजी पेट्रिक लॉरेंस थे।

इस विद्रोह के निम्न कारण थे। 
  • एजीजी (एजेंट टु गवर्नर जनरल) ने अजमेर मे स्थित 15वी बंगाल इन्फ़ेंट्री को अविश्वास के कारण नासीराबाद भेज दिया गया। जिसके  कारण सैनिको मे असंतोष उत्पन्न हो गया। 
  •  अंग्रेज़ो ने बंम्बई लोंसर्स के सैनिको से नसीराबाद मे गश्त लगवाना शुरू कर दिया था और बारूद भरी तोपे बनवाई जिस वजह से सैनिको मे असंतोष व्याप्त हो गया। 
  • राइफल ब्राउन बेस के स्थान पर रॉयल एनफ़ील्ड मे चर्बी वाले कारतूस का प्रयोग करने से सैनिको मे असंतोष उत्पन्न हो गया। 

नसीराबाद सैनिक विद्रोह (अजमेर)

 राजस्थान के एजीजी ने अजमेर की सुरक्षा हेतु वहा नियुक्त 15वी बंगाल नेटिव इंफ़ेन्ट्री को नसीराबाद भेजकर ब्यावर से दो मेर पलटने अजमेर बुलवा ली जिससे 15वी नेटिव इंफ़ेन्ट्री के सैनिको मे असंतोष बढने लगा। 
 
नसीराबाद मे 28 मई 1857 को 15वी नेटिव इंफ़ेन्ट्री के सैनिको ने विद्रोह कर लिया तथा तोपों पर अधिकार कर लिया।
इनका नेतृत्व बख्तावर सिंह ने किया था।
क्रांतिकारी सैनिको ने छावनी को तहस नहस करने के बाद दिल्ली की और प्रस्थान कर लिया। इन सैनिको ने 18 जून को दिल्ली पहुँचकर वहा पर अंग्रेजी सेना से युद्ध किया एवं उन्हे पराजित किया। 
अंग्रेज़ अधिकारी वाल्टर व हीथकोट ने मेवाड़ के सैनिको की सहायता से इनका पीछा किया किन्तु उन्हे सफलता नहीं मिली।

नीमच छावनी विद्रोह(मध्यप्रदेश)


नीमच के सैनिको ने हीरासिंह के नेतृत्व मे 3 जून 1857 को विद्रोह किया व 5 जून 1857 को देवली व आगरा होते हुए दिल्ली के लिए कूँच किया। अंग्रेज़ केप्टन हार्डकेसल व लेफ़्टि वाल्टर के नेतृत्व मे जोधपुर की सेना एवं केप्टन शावर्स के नेतृत्व मे मेवाड़ की सेना ने इनका पीछा किया परंतु वे क्रांतिकारियों को रोक नहीं पाये। 
 
डूंगला - यह वह स्थान है जहां नीमचसे बचकर आए 40 अंग्रेज़ अफसर एवं उनके परिवारजनो को क्रांतिकारियों ने बंदी बना लिया था। बाद मे मेजर शावर्स (मेवाड़ के पॉलिटिकल एजेन्ट) ने इन्हे छुड़ाकर उदयपुर पहुचाया जहा महाराणा स्वरूप सिंह ने उन्हे पिछोला झील मे के जगमंदिर मे शरण दी । 

एरिनपुरा छावनी विद्रोह(पाली)


21 अगस्त 1857 को छावनी के पुर्बिया सैनिको ने विद्रोह किया। 

आउवा का विद्रोह 

आउवा पाली का एक ठिकाना था। 
मारवाड़ मे विद्रोह का मुख्य केंद्र आउवा नमक स्थान था। यह विद्रोह आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह के नेतृत्व मे हुआ।
  • बिथौड़ा का युद्ध(पाली) - 08 सितम्बर 1857   

    आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह के नेतृत्व मे क्रांतिकारियों ने जोधपुर के महाराजा तखतसिंह व केप्टन हीथकोट की संयुक्त सेना को आउवा के निकट बिथौड़ा(पाली) नामक स्थान पर हराया था।  
  • चेलवास का युद्ध -18 सितंबर 1857 

    एजीजी पेट्रीक लॉरेंस अजमेर से सेना लेकर चेलवास पहुचे लेकिन इस युद्ध मे वे 18 सितंबर 1857 को क्रांतिकारियों से पराजित हो गए। इस युद्ध मे उनके साथ जोधपुर का पॉलिटिकल एजेंट मोक मेसन भी था मोक मोसन मारा गया एवं क्रांतिकारियों ने उसका सिर आउवा किले के दरवाजे पर लटका दिया। 
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इसके बाद 10 अक्टूबर 1857 को कुछ क्रांतिकारी आसोपा के ठाकुर शिवनाथ सिंह के नेतृत्व मे दिल्ली की और चले गए। उन्होने रेवाड़ी पर अधिकार कर लिया लेकिन नरनौल मे वे ब्रिगेडियर गेरार्ड के नेतृत्व वाली अंग्रेजी सेना से परास्त हो गए। ठाकुर शिवनाथ सिंह वापस आलनिया आ गए एवं आत्मसमर्पण कर लिया। 

इसके बाद कर्नल होम्स की नेतृत्व मे एक विशाल सेना ने आउवा पर आक्रमण कर दिया 20 जनवरी 1858 को क्रांतिकारियों ने घमासान युद्ध किया किन्तु अंग्रेजी सेना के आगे टीक नहीं सके।विजय की आशा न देखकर ठाकुर कुशाल सिंह 23 जनवरी 1558 को किले का भार अपने भाई लांबिया कलाँ के पुत्र पृथ्वीसिंह को सौपकर भाग निकले। 
24 जनवरी 1858 को दुर्ग पर अंग्रेज़ो का अधिकार हो गया। 
ठाकुर खुशाल सिंह ने कोठरिया के रावत जोधसिंह के यहा जाकर शरण ली। 
अंततः 8 अगस्त 1860 के समक्ष आत्मा समर्पण कर लिया। 
10 नवम्बर 1860 के दिन उन्हे रिहा कर दिया गया। 
25 जुलाई 1864 को ठाकुर खुशाल सिंह का स्वर्गवास हो गया

कोटा रियासत का विद्रोह

कोटा मे जयदयाल व मेहराबखान के नेतृत्व मे 15 अक्टूबर 1857 को क्रांति का बिगुल बजा दिया गया। 
क्रांतिकारियों ने मि॰ बर्टन का सर धड़ से अलग कर दिया एवं इसका पूरे शहर मे खुला प्रदर्शन किया। इसके साथ ही बर्टन के दो पुत्रो एवं एक डॉक्टर सेडलर काटम की हत्या कर दी गई। 
कोटा पर क्रांतिकारियों का अधिकार हो गया। 
मार्च 1858 मे मेजर जनरल रोबर्टस के नेतृत्व मे अँग्रेजी सेना ने क्रांतिकारियों पर आक्रमण कर कोटा को अपने अधीन कर लिया। 
जयदयाल व मेहराब खान को फांसी दे दी गई।

टोंक रियासत मे विद्रोह 

तात्या टोपे के सेना सहित टोंक आने पर यहा के क्रांतिकारी उनके साथ हो गए। बनास नदी के किनारे क्रांतिकारियो एवं नवाब वजीरुद्दौला की सेना के मध्य युद्धा हुआ एवं क्रांतिकारियों ने नगर को घेरकर टोंक पर अपने अधिकार की घोषणा कर ली। 
अंत मे जयपुर के रेसिडेंट ईडन के बड़ी सेना लेकर आने से टोंक मुक्त हो गया। 
इस विद्रोह मे मिर आलम खान ने अग्रणी भूमिका निभाई। 
 

धौलपुर रियासत विद्रोह

क्रांतिकारी सैनिको ने राव रामचंद्र एवं हिरालाल के नेतृत्व मे धौलपुर पर अधिकार कर लिया बाद मे पटियाला की सेना ने आकर विद्रोह समाप्त किया। 
 
सितंबर 1857 को मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर को पकड़ लिया गया एवं दिल्ली के लाल किले पर अधिकार हो गया। इस प्रकार स्वन्त्रता प्राप्ति का पहला प्रयास असफल हो गया। 
इस क्रांति का प्रभाव यह हुआ की महारानी विक्टोरिया ने 2 अगस्त 1858 को भारत मे ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर लिया एवं यहा का शासन सीधे ब्रिटिश ताज के अधीन कर लिया गया।
 


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