". राजस्थान-हस्तकला एवं लोक कलाएँ ~ Rajasthan Preparation

राजस्थान-हस्तकला एवं लोक कलाएँ


राजस्थान की हस्तकला एवं लोक कलाएँ

  • हाथो से कलात्मक वस्तुएँ बनाना या निर्माण करना हस्तकला कहलाता है।
  • औद्योगिक नीति 1992 मे हस्तकला को लघु उद्योग में शामिल कर लिया गया।
  • जयपुर को राजस्थान हस्तकला का तीर्थ कहा जाता है।
  • राजस्थान हस्तकला का मुख्य केन्द्र - बोरानाडा (जोधपुर)
  • हथकरघा दिवस - 7 अगस्त (2015 से)
 RAJSICO
  • राजस्थान लघु उद्योग निगम 
  • इसके द्वारा हस्तकला को संरक्षण दिया जाता है। 
  • इसकी स्थापना 3 जुन 1961 मे जयपुर मे हुई।
राजस्थान सरकार द्वारा हस्तशिल्प को बढावा देने के लिए निम्न शिल्पग्रामो की स्थापना की गई।
  1. हवाला शिल्पग्राम (उदयपुर) -यह राजस्थान का प्रथम शिल्पग्राम है।
  2. पाल शिल्पग्राम - जोधपुर 
  3. जवाहर कला केन्द्र- जयपुर (1993)

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राजस्थान कि विभिन्न हस्तकलाएँ

पाॅटरी कला

  • चीनी मिट्टी के बर्तनो पर चित्रकारी करना पोटरी कला कहलाता है।
  • पोटरी कला मूलतः पर्शिया(ईरान) कि है इस कला को अकबर लाहोर लाया था।

1) ब्लू पाॅटरी (Blue pottery)

  • चीनी मिट्टी के बर्तनो पर मुख्यतः नीले रंग का चित्रण ब्लू पाॅटरी कहलाता है।
  • उपनाम- मृमण्य कला, रईस पोटरी 
  • राजस्थान मे ब्लू पाॅटरी के लिए जयपुर सर्वाधिक प्रसिद्ध है। 
  • सवाई रामसिंह का काल इस कला का स्वर्ण काल माना जाता है।
  • कृपाल सिंह शेखावत इस कला के सिद्धहस्त कलाकार थे इन्हें ब्लू पाॅटरी का जादूगर कहा जाता है इन्हें 1974 मे पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 
  • ब्लू पाॅटरी कि प्रसिद्ध महिला कलाकार- नाथी बाई
  • ब्लैक पाॅटरी - कोटा व सवाईमाधोपुर कि प्रसिद्ध है।
  • कागजी पाॅटरी - अलवर व जयपुर कि प्रसिद्ध है।
  • सुनहरी पाॅटरी - बीकानेर कि प्रसिद्ध है।

थेवा कला

  • हरे रंग के बेल्जियम काँच पर सोने का सूक्ष्म व कलात्मक चित्रांकन कार्य थेवा कला कहलाता है।
  • थेवा कला के जनक - नाथूजी सोनी, इन्हे प्रतापगढ़ के शासक सामंत सिंह ने राजसोनी परिवार की उपाधि दी।
  • थेवा कला प्रतापगढ़ की प्रसिद्ध है। 
  • इस कला को प्रकाश में लाने का सही श्रेय जस्टिन वकी को जाता है।
  • प्रतापगढ़ के राज सोनी परिवार इस कला के लिए सिद्धहस्त कलाकार है। 
  • महेश विजयराज सोनी को थेवा कला के लिए 2015 मे पद्मश्री पुरुष्कार से सम्मानित किया गया।
  • थेवा कला को बढावा देने के लिए लिए नवम्बर 2002 मे इस पर 5 रूपये का डाक टिकट जारी किया गया।
  • आलाथेवा - हरे रंग के कांच को छोड़कर अन्य रंगो के कांच पर किया जाने वाला सोने का कार्य आलाथेवा कहलाता है।
  • प्रतापगढ़ को थेवा कला का GI tag प्राप्त है।

बंधेज का कार्य/रंगाई छपाई 

  • इसे टाई एंड डाइ की कला भी कहते है। 
  • इसका प्रारंभ सीकर से हुआ 
  • यह कपड़े पर रंग चढ़ाई की तकनीक हैं।
  • राज्य मे जयपुर, शेखावटी, जोधपुर, बीकानेर, आदि स्थानों की बंधेज कार्य के लिए प्रसिद्ध हैं।  
  • बंधेज के कार्य के लिए सर्वप्रथम कपड़े पर जो अलंकरण बनाया जाता हैं उसे टीपना कहते हैं। 
  • जोधपुर के तैय्यब खान को बंधेज के कार्य हेतु पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।
  • बंधेज कार्य मुख्यतः चढ़वा जाति के लोगो के द्वारा किया जाता हैं।
  • बंधेज की चुनरी व साडी जोधपुर की प्रसिद्ध है
  • लहरिया जयपुर का प्रसिद्ध है।
  • मोठडे जोधपुर के प्रसिद्ध है।
  • पाटोदा (सीकर) का लुगड़ा का प्रसिद्ध है।
  • पोमचा जयपुर का प्रसिद्ध है, यह जच्चा स्त्रियो द्वारा पहना जाता है, लडके के जन्म पर पीला व लडकी के जन्म पर गुलाबी 
  • पीला पोमचा शेखावाटी का प्रसिद्ध है।
  • बंधेज की सबसे बडी मंडी - जोधपुर
  • दामणी - जोधपुर क्षेत्र में ओढे जाने वाली ओढनी

उस्ता कला या मुनव्वती 

  • ऊँट की खाल पर सोने एवं चाँदी का कलात्मक चित्रांकन व नक्काशी का काम उस्ता कला कहलाती है।
  • उस्ता कला बीकानेर की प्रसिद्ध है।
  • बीकानेर का उस्ता परिवार इस कार्य के लिए प्रसिद्ध है। 
  • हिसामुद्दीन उस्ता इस कला के सिद्धहस्त कलाकार थे 1986 मे इन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

गलीचे, नमदे एवं दरीया

  • गलीचे जयपुर के प्रसिद्ध है। 
  • कैदियो द्वारा निर्मित गलीचे बीकानेर के प्रसिद्ध है।
  • नमदे टोंक के प्रसिद्ध है। 
  • नागौर के टंकला ग्राम की दरिया विश्व प्रसिद्ध है, लवाण(दौसा) व सालावास (जोधपुर) की भी प्रसिद्ध है।

कपड़े पर हाथ से छपाई 

  • कपड़ो पर छपाई का कार्य नीलगारों एवं रंगरेजों द्वारा किया जाता है।
  • छपाई कार्य करने वाले छिपे कहलाते है। 
  • अजरक प्रिंट बालोतरा (बाड़मेर) की प्रसिद्ध है। 
  • मलीर प्रिंट भी बालोतरा (बाड़मेर) की प्रसिद्ध है। 
  • आजम /जाजम प्रिंट आकोला(चित्तोडगढ़) की प्रसिद्ध है।
  • संगनेरी प्रिंट सांगानेर(जयपुर) की प्रसिद्ध है, यहा के छिपे नामदेवी छिपे कहलाते है।
  • बगरु प्रिंट बगरु (जयपुर) की प्रसिद्ध है इसमे काले व लाल रंग का प्रयोग किया जाता है।
  • लाडनू प्रिंट लाडनूं (नागौर) की प्रसिद्ध है।
  • दाबू प्रिंट (अकोला) चित्तौड़गढ़ की प्रसिद्ध है।
  • गोल्डन प्रिट (कुचामन) नागौर की प्रसिद्ध है। 

कपड़ो पर चित्रकारी

  • फड चित्रण 

  • लोकदेवी देवताओ के पौराणिक आख्यानो को चित्रित करना फड चित्रण कहलाता है। 
  • शाहपुरा(भीलवाड़ा) फड चित्रण हेतु प्रसिद्ध है।
  • श्रीलाल जोशी फड चित्रण के प्रसिद्ध चितेरे है इन्हें 2006 मे पद्म श्री से सम्मानित किया गया,  इन्होने सैनाणी काव्य का फड चित्रण किया।
  • संयोगिता हरण, हल्दीघाटी, पद्मिनी जौहर, शाहपुरा गणगौर पर फड - शांतिलाल जोशी
  • फड चित्रण कि प्रसिद्ध महिला चितेरी - पार्वती जोशी 
  • 02 सितम्बर 1992 मे सर्वप्रथम डाक टिकट देवनारायण जी कि फड पर जारी किया जाता है।
  • सबसे लंबी व सबसे छोटी फड- देवनारायण जी, जंतर वाद्य  के साथ
  • सर्वाधिक लोकप्रिय एवं चोडी फड - पाबूजी राठौड़ 
  • ऐसी फड जिसका वाचन दिन मे किया जाता है - रामदला व कृष्ण दला
  • सर्वाधिक चित्रित फड - देवनारायण जी
  • किसकी फड का बाचन नहीं किया जाता - भैसासुर कि फड
  • कोरोना कि फड - कल्याणमल जोशी ने तैयार की।
  • पिछवाई कला

  •  नाथद्वारा मे श्री कृष्ण की प्रतिमा के पीछे दीवारों पर लगाए जाने वाले कपड़ो पर श्री कृष्ण की लीलाओ का चित्रण पिछवाई कला कहलाता है। 
  • नरोत्तम शर्मा, घनश्याम व बिट्ठलदास इसके प्रसिद्ध कलाकार है।
  • 2022 के गणतंत्र दिवस पर राजपथ, दिल्ली में इस कला का प्रदर्शन किया गया।

कशीदाकारी या कढ़ाई

  • कपड़ो पर विभिन्न रंगो के रेशमी धागो से कढ़ाई का कार्य किया जाता है उसे कशीदाकारी कहा जाता है। 
  • जयपुर व खणडेला (सीकर) कढ़ाई का कार्य  किया जाता है। 
  • सूती या रेशमी कपड़े पर बादले से छोटी छोटी बिंदकी की कढ़ाई मुकेश कहलाती है। 
  • कपड़े पर स्वर्णिम धागे से कढ़ाई करना जरदोजी कहलाता है यह जयपुर का प्रसिद्ध है।

पेच वर्क 

विभिन्न रंग के कपड़ो के टुकड़े काटकर कपड़ो पर विविध डिजाइनो मे सिलना पेच वर्क कहलाता है। 
जयपुर के शशि झालानी ने इस कला को अंतर्रास्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई।
यह शेखावटी का प्रसिद्ध है।

मिनीएचर पेंटिंग्स 

छोटी छोटी वस्तुओ या हाथी दांत पर अति लघु एवं सूक्ष्म चित्रांकन मिनीएचर पेंटिंग्स कहलाता है। 
यह जोधपुर, जयपुर, किशनगढ़ आदि क्षेत्रों मे प्रसिद्ध है। 

लाख का काम

  • लाख का काम चूड़ियो, खिलोनों एवं सजावटी समान पर किया जाता है। 
  • अय्याज मोहम्मद इसके प्रसिद्ध कलाकार है।
  • लाख की चूड़ियो के लिए जयपुर व जोधपुर प्रसिद्ध है।
  • लाख के आभूषण के लिए उदयपुर प्रसिद्ध है।

टेराकोटा

  • पकाई हुई मिट्टी के बर्तन, खिलौने आदि बनाने की कला को टेराकोटा कहते है। 
  • मोलेला गाँव (नाथद्वारा) एवं बस्सी (चित्तोडगढ़) मिट्टी के खिलोनों के लिए प्रसिद्ध है। 
  • अलवर मे मिट्टी की बिल्कुल बारीक व परतदार वस्तुए बनाई जाती है इसे कागजी टेराकोटा कहा जाता है।
  • सुनहरी टेराकोटा के लिए बीकानेर प्रसिद्ध है।

मुरादाबादी का काम

  • पीतल के बर्तनो पर खुदाई करके उस पर कलात्मक नक्कासी का कार्य मुरादाबादी कहलाता है।
  • जयपुर व अलवर मे यह कार्य बहुतायत मे होता है।

मूर्तिकला

  • सफ़ेद संगमरमर की मूर्तिया सर्वाधिक जयपुर मे बनती है। 
  • काले संगरमर की मूर्तिया डूंगरपुर एवं (तलवाड़ा) बांसवाड़ा मे बनती है। 
  • लाल पत्थर की मूर्तिया (थानागाजी) अलवर मे बनती है।
  • जस्ते की मूर्तिया - जोधपुर

हाथी दांत पर हस्तशिल्प

  • राजस्थान मे हाथीदांत का सर्वाधिक कार्य जयपुर, भरतपुर, जोधपुर व उदयपुर, पाली में होता है।
  • हाथी दांत से कलात्मक वस्तुओं का निर्माण सर्वाधिक जयपुर में होता है।
  • हाथी दांत से बना हुआ महिलाओं का प्रसिद्ध आभूषण चुडा जोधपुर का प्रसिद्ध है।
  • हाथी दांत की चूड़िया - जयपुर

जरी व गोटे का काम

  • यह कला सवाई जयसिंह के समय सूरत से जयपुर आई थी। 
  • यह कला खंडेला (सीकर) व भीनाय (अजमेर) की प्रसिद्ध है। 

कुन्दन कला 

  • स्वर्णभूषणों मे कीमती पत्थर जड़ने की कला कुन्दन कहलाती है। 
  • यह कला जयपुर की प्रसिद्ध है। 

कोफ्तगिरि कला 

  • फौलाद की बनी हुई वस्तुओ पर पतले तारो की जड़ाई का कार्य कोफ़्तगिरी कहलाता है। 
  • यह कला पंजाब से राजस्थान लाई गई। 
  • जयपुर व अलवर इस कला के लिए प्रसिद्ध है। 

बादला 

  • जिंक से निर्मित पानी की बोतलों पर कपड़े का आवरण चढ़ाना बादला कहलाता है। 
  • जोधपुर के बादले प्रसिद्ध है। 

लकड़ी की कलात्मक वस्तुएँ

  • बस्सी (चित्तौड़गढ़) मे खेरादी जाती के लोग लकड़ी की कावड़ व गणगौर बनाने के लिए प्रसिद्ध है। 
  • बाड़मेर मे निर्मित लकड़ी का नक्कासीदार फ़र्निचर प्रसिद्ध है, उडखा गाँव (बाड़मेर) लकड़ी की नक्कासी हेतु प्रसिद्ध है।
  • लकड़ी के खिलौने (मेड़ता) नागौर के प्रसिद्ध है।
  • कठपुतलियां उदयपुर की प्रसिद्ध है।
  • लकड़ी के झूले जोधपुर के प्रसिद्ध है।

चमड़े की कलात्मक वस्तुएँ 

  •  चमड़े की कलात्मक जूतिया/मोजडियो के लिए जोधपुर प्रसिद्ध है।
  •  कसीदा वाली जूतियां भीनमाल (जालौर)की प्रसिद्ध है।

तारकशी 

  • पतले तारो से आभूषण एवं कलात्मक वस्तुएँ बनाना तारकाशी कहलाता है। 
  • नाथद्वारा तारकाशी के लिए प्रसिद्ध है। 
  • तारकाशी से बने आभूषणो को तारकाशी के जेवर कहा जाता है। 

मीनाकारी का काम

  • सोने, चाँदी एवं अन्य आभूषणो पर कलात्मक तरीके से मीना चढ़ाने का कार्य मीनाकारी कहलाता है। 
  • जयपुर राजस्थान मे मीनाकारी के कार्य के लिए प्रसिद्ध है। 
  • पीतल पर मीनाकारी के लिए जयपुर व अलवर प्रसिद्ध है पीतल पर मीनाकारी का सर्वाधिक कार्य अलवर मे होता है। 
  • सोने व चाँदी के आभूषण जयपुर के प्रसिद्ध है।

तहनिशा 

  • पीतल पर डिजाइन को गहरा करके उसमें तार की जडाई करना।
  • यह कला अलवर व उदयपुर की प्रसिद्ध है।

रमकडा

  • सॉपस्टोन को तराश कर बनाई गई वस्तुएँ।
  • यह (गलियाकोट) डूंगरपुर की प्रसिद्ध है। 

लोककलाएँ

माँड़ना 

  • घर की दीवारों एवं फर्श पर खड़िया मिट्टी गेरू आदि रंगो से ज्यामितीय आकृतीया बनाने की कला माँड़ना कहलाती है।

मथैरण कला 

  • धार्मिक स्थलो एवं पौराणिक कथाओ पर आधारित विभिन्न देवी-देवताओ के आकर्षण भित्ति चित्र, ईसर, तोरण, गणगौर आदि का निर्माण व इन्हे विभिन्न आकर्षण रंगो से सजाने की कला जो बीकानेर क्षेत्र मे अधिक प्रचलित है।

कावड

  • बस्सी (चित्तौड़गढ़) मे खेरादी जाती के लोग लकड़ी की कावड़ व गणगौर बनाने के लिए प्रसिद्ध है। 
  • इसे चलता फिरता देवघर भी कहा जाता है।

बेवाण

लकड़ी से निर्मित सिंहासन जिस पर ठाकुर जी की मूर्ति बैठाकर देव झूलनी एकादशी के दिन तालाब के किनारे ले जाकर नहलाया जाता है।

तोरण

विवाह के अवसर पर वर वधू के घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर जो लकड़ी की कलात्मक आकृति लटकाई जाती है।

बाजोट

लकड़ी की पाट या चेकी जिसे भोजन या पूजा के समय प्रयुक्त किया जाता है।

स्वास्तिक 

मांगलिक अवसरों पर ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई कलाकृति।

पथवारी

गांव के बाहर बनाया गया स्थान जिसे तीर्थ यात्रा से पूर्व पूजा जाता है।

सांझी

गांव की कुंवारी कन्याओं द्वारा अच्छे वर की कामना हेतु दीवार पर उतरे गए रंगीन भित्ति चित्र।
सांझी माता - पार्वती माता को माना जाता है।

बटेवडे 

गोबर से निर्मित सूखे उपलो को सुरक्षित रखने हेतु बनाई गई आकृति।

गोदना

गरासिया जनजाति में सुई से शरीर पर आकृतियों करना।

वील

ग्रामीण लोगों में घर की छोटी-बड़ी चीजों को सुरक्षित रखने हेतु बनाई गई मिट्टी की महलनूमा आकृति।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

  • कागज बनाने की कला - सांगानेर (जयपुर)
  • पेपर मेसी - जयपुर 
  • तलवार बनाने का काम सिरोही, उदयपुर, अलवर का प्रसिद्ध है।
  • (चांदू जी का गड़ा) बांसवाड़ा व( बोडीगामा) डूंगरपुर तीर कमान बनाने हेतु प्रसिद्ध है। 
  • लोहे के औज़ार - नागौर 
  • तुडिया हस्तशिल्प - धौलपुर 
  • चूवा चन्दन या स्प्रे पेंटिंग की सदियाँ - नाथद्वारा 
  • चन्दन काष्ठ कलाकृतियों हेतु प्रसिद्ध- जयपुर 
  • हाल ही मे जवाहर कला केन्द्र जयपुर मे कलराज मिश्र द्वारा शौर्य कला प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया।

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