". पल्लव वंश ~ Rajasthan Preparation

पल्लव वंश


 पल्लव वंश :- 

कौन - भारत के दक्षिण केवाहन वंश के सामंत। 

मेघ साहित्य में पल्लवों को "तोदियार" कहा गया है।

2. बाहुरब (काँची) में पल्लवों को (तोण्डई) कहा जाता है।

3. मय्य रूप से "सुविशाख" सौरा पल्लव मंत्र सौरा का (प्रथल) मय्य रूप से "सुदर्शना" का प्रभाव था।

4. दण्डी के स्वास्थ्य में - अवंती में - पल्लव सिंह विष्णु का परीक्षण करें।

5. मतविलास प्रहसन:- पल्ल के उपराज्यपाल प्रथमचंचित है। महावंश - पल्लवों के जीवन के बारे में।

7. सी-यू-की - ह्वेनसांग नरसिंह वर्मन बार काँची था। ह्वेनसांग नरसिंह वरमन प्रथम को सबसे बड़ा अधिपति नाम। सिंहवर्मन" मिलता है।

 पल्लव वंश

 1. सिंह विष्णु - (575. - 600 ई।)

पल्लव के वंश के. कशाकुड़ी (तमिल) से देवपत्र के रूप - सिहं विष्णु ने मालय, मालव, चोल, सिंहल द्वीप व केरल पर विजय प्राप्त की।

सिंह विष्णु के दरबार में महान विद्वान "भारवि" निवास करते थे जिन्होंने "किरातार्जुनियम्" नामक ग्रन्थ लिखा था।

 "किरातार्जुनियम्" में भगवान शिव किरात वेष में अर्जुन के साथ युद्ध का उल्लेख मिलता है।

सिंह विष्णु वैष्णव धर्म के अनुयायी थे।इन्होंने मामल्लपुरम (वर्तमान महाबलीपुरम) में एक वराह मंदिर का निर्माण करवाया था।इस मंदिर में अपनी स्वयं की प्रतिमा भी स्थापित करवाई थी।

► महेन्द्रवर्मन प्रथम - (600-630ई.)

सिंह विष्णु का पुत्र था।

उपाधियाँ - मतविलास, विचित्रचित, गुणभरइसी के समय चालुक्य (बादामी) पल्लव संघर्ष प्रारंभ हुआ।चालुक्य शासक-पुलकेशिन II ने आक्रमण किया।

महेन्द्रवर्मन प्रारंभिक समय में जैनअनुयायी था परन्तु शैव संत "अप्पर" के प्रभाव में आकर शैव अनुयायी बना था।

महेन्द्रवर्मन ने त्रिचनापल्ली, महेन्द्रवाड़ी, दलवणूर में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था।

पल्लव वंश का सबसे शक्तिशली शासक था।इसका काल पल्लवों का स्वर्णिम युग था।

महेन्द्रवर्मन का पुत्र था।नरसिंहवर्मन ने साम्राज्य विस्तार हेतु अनेक युद्ध लड़े थे

-ग्रंथ - महेन्द्रवर्मन ने "मतविलास प्रहसन" नामक ग्रन्थ लिखा था।यह हास्य नाटिका है।इसमें बौद्ध भिक्षुओं व कापालिकों (शैव) पर व्यंग्य किया गया है।

महेन्द्र ने दो तालाब

1. महेन्द्रवाड़ी

 2. चित्रमेघ का निर्माण करवाया।

इसके संगीत गुरु का नाम - रूद्राचार्य था।यह संगीतज्ञभी था

 ► नरसिंह वर्मन प्रथम - (630-668 ई.)

1. पल्लव - चालुक्य संघर्ष

उल्लेख:- कुरम अभिलेख 

- इसके अनुसार नरसिंह वर्मन प्रथम ने पुलकेशिन II को क्रमश: पारियाल, शूरमार व मणिमंगलम के युद्ध में पराजित किया तथा पराजित करने के बाद उसकी पीठ पर "विजयाक्षर" अंकित करवा दिया था।

642 ई. में चालुक्यों की राजधानी बादामी पर अधिकार कर लिया था।

मल्लिकार्जुन मंदिर (बादामी) के पीछे लगे शिलालेख में भी नरसिंह वर्मन प्रथम की विजय का उल्लेख है।

उपाधि - वातापीकौंड (वातापी को तोड़ने वाला / वातापी का अपहर्ता)

2. सिंहल द्वीप (श्रीलंका) अभियान:-

पुलकेशिन II के विरुद्ध श्रीलंका के राजकुमार मानवर्मा की सहायता की थी।अत: नरसिंह वर्मन I ने मानवर्मा की सहायता हेतु अपनी एक विशाल नौ सेना भेजकर - मानवर्मा की सहायता की थी।

मानवर्मा ने अपने विरोधी "हत्थदत्थ" को मारकर श्रीलंका का शासक बना था।

कुरम अभिलेख के अनुसार नरसिंह वर्मन ने - चोल, केरल व पाण्ड्यों को पराजित किया था।

निर्माण कार्य:- नरसिंह वर्मन प्रथम ने "महाबलीपुरम" में एकाश्मक रथ मंदिरों का निर्माण करवाया था।

नरसिंह वर्मन शैली प्रचलित की थी।

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने काँची के वैभव का वर्णन किया है, उसके अनुसार - काँची 6 मील में फैला हुआ था - 100 से अधिक 48 व 1000 बौद्ध भिक्षुक निवास करते थे।

NOTE:- नरसिंह वर्मन प्रथम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र महेन्द्र वर्मन II शासक बना (668-670) जिसे चालुक्य शासक - विक्रमादित्य ने मार डाला।

परमेश्वरवर्मन - (670-700 ई.)

महेन्द्रवर्मन का पुत्र था।

उपाधियाँ - लोकादित्य, एकमल्ल, रणजय, अत्यंतकाम, उग्रदण्ड, गुणभाजनप्रमुख घटना -बादामी चालुक्य शासक विक्रमादित्य ने काँची पर आक्रमण कर राजधानी पर अधिकार कर लिया था।

कुछ समय बाद परमेश्वरवर्मन ने काँची पर पुन: अधिकार कर लिया था।

शैव अनुयायी था - मामलपुरम में एक गणेश मंदिर का निर्माण कराया है।

नरसिंह वर्मन II (700-728 ई.)

परमेश्वरवर्मन का पुत्र था

उपाधि - राजसिंह, शंकरभक्त, आगमप्रिय (विद्या का प्रेमी)प्रमुख घटनाएँचालुक्य - पल्लव संघर्ष विरामराजधानी काँची में "कैलाशनाथ मंदिर" का निर्माण करवाया था।

महाबलीपुरम में "शौर" मंदिर का निर्माण करवाया था।इसने राजसिंह शैली प्रचलित की थी।

इसके दरबार में संस्कृत के महान विद्वान "दण्डिन (दण्डी)" निवास करते थे। जिनकी रचनाएँ - अवन्ति सुंदरी, दशकुमार चरित, काव्यादर्श

अपना दूत मंडल - चीन भेजा

नाग पटि्टनम (तमिल) में बोद्ध भिक्षुओं हेतु"बौद्ध विहार" का निर्माण करवाया था।

परमेश्वरवर्मन II (728-730 ई.)

नरसिंह वर्मन II का पुत्र था।

तिरूवाड़ी में एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था।

चालुक्य शासक - विक्रमादित्य II ने गंगवंश (ओडिशा) के राजकुमार "एरेयप्प" की सहायता से काँची पर आक्रमण कर इसे मार डाला ।

नंदिवर्मन II (730-800 ई.)

कुछ इतिहासकारों के अनुसार - परमेश्वरवर्मन संतानहीन था।अत: काँची के विद्वानों ने पल्लव वंश की एक समान्तर शाखा के राजकुमार "नंदिवर्मन II" जो कि "हिरण्यवर्मन" का पुत्र था को काँची का शासक बनाया था।

अनेक राज्यों ने पल्लवों पर आक्रमण कर दिया जैसे:-

1. पांड्य आक्रमण कारण:- कुछ इतिहासकारों के अनुसार "परमेश्वरवर्मन II" का एक पुत्र "चित्रमाय" था जिसे परमेश्वरवर्मन II ने उत्तराधिकार से वंचित कर दिया, वह पाण्डे्य शासकों से जा मिला-पिता की मृत्यु के बाद - पाण्ड्यों से मिलकर - काँची पर आक्रमण किया था।नंदीवर्मन II के सेनापति "उदयचन्द्र" ने चित्रमाय को युद्ध में मार दिया था।

2. चालुक्य शासक - विक्रमादित्य II व पुत्र कीर्तिवर्मन ने काँची पर आक्रमण कर अपार धन लूटा।

 नंदिवर्मन II (730-800 ई.)

राष्ट्रकूट संघर्ष :- राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग ने “नंदिवर्मन II को पराजित किया था। दोनों में संधि हुई।दंतिदुर्ग ने अपनी पुत्री “रेखा” का विवाह नंदिवर्मन के साथ कर दिया था।

सत्य तथ्य :- नंदिवर्मन II वैष्णव धर्म का अनुयायी था।

निर्माण कार्य:-नंदिवर्मन II ने काँची में “मुक्तेश्वर” शिव मंदिर व “बैंकुण्ठ पेदमाल” मंदिरो का निर्माण करवाया था।

Note:- नदीवर्मन II के वाद दंतिवर्मन (800-846) तक शासक रहा जिसे अभिलेखों में “विष्णु का अवतार”नंदिवर्मन IIIदंतिवर्मन का पुत्र था।

इसने गंगो को पराजित किया।चोल, राष्ट्रकूट व गंगवंश के साथ मिलकर “पाण्डेयो” को पराजित किया तथा कावेरी के क्षेत्र पर पुन: अधिकार कर लिया था।

राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष ने अपनी पुत्री “शंखा” का विवाह नंदिवर्मन III के साथ कर दिया था।इसके दरबार में तमिल के महान विद्वान “पेरून्देवनार” निवास करते थे जिन्होंने “भारत वैणवा ” नामक ग्रन्थ की रचना की थी।

Note:- नंदिवर्मन III की मृत्यु के बाद उसका पुत्र “नृपतुंगवर्मन (869-880) शासक बना।

इस वंश का अतिम शासक अपराजित (880-903 ई.)

 इसे चोल शासक “आदित्य प्रथम” ने मार डाला था।काँची के पल्लवों का पतन हो गया था।

पल्लव कालीन-कला-संस्कृतिद्रविड़ कला का आधार थीदक्षिण भारत की मंदिर स्थापत्य के 3 अंग माने गए हैं।

1. मण्डप

2. रथ

3. विशाल मंदिर- विशाल प्रवेश-गोपुरम

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