". राष्ट्रकुट वंश ~ Rajasthan Preparation

राष्ट्रकुट वंश


राष्ट्रकुट वंश

 इस वंश का संस्थापक दंतीदुर्ग/दंतीवर्मनये बादामी/वातापी चालुक्यों के सामंत थे

752 ई. मे दंतीदुर्ग ने चालुन्य वंश के अंतिम शासक कीर्ति वर्मन II को पराजित कर → मान्यखेत/मालखेत (कर्नाटक) में स्वतंत्र राष्ट्रकूट वंश की नीव डाली

राष्ट्रकूट अभिलेखों के अनुसार – राष्ट्रकूटों का प्रारंभिक स्थान लातूर/लाटूर में थाबादमें एलिचपुर (बरार, महाराष्ट्र) पर अधिकार कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया।

दंतीदुर्ग ने चालुक्यों पर अरबो के आक्रमण के समय – चालुक्यों की सहायता कीचालुक्य नरेश ने इससे प्रसन्न होकर दंतीदुर्ग को “पृथ्वीवल्लभ” की उपाधी प्रदान कीदंतीदुर्ग ने कीर्ति वर्मन II को पराजित करने के बाद – उज्जैन (M.P) मे हिरण्यगर्भ (महादान) यज्ञ किया।

इस यज्ञ के दौरान गुर्जर प्रतिहार शासक देवराज ने द्वारपाल की भूमिका निभाई 

कृष्ण प्रथम – (756-779 ई.)

कृष्ण प्रथम दंतीदुर्ग की मृत्यु के बाद शासक बनाउपाधियाँ :

1. सतप्रजाबोध 2. वृतप्रजापाल → जीवन के अंतिम क्षणों तक प्रजा को पालने वाला

वातापी (बादामी) चालुक्यों का अस्तित्व पूर्णत नष्ट कर दियाऐलोरा (औरंगाबाद, महाराष्ट्र) के प्रसिद्व कैलाश मंदिर का निर्माण प्रारंभ कराया था। यह मन्दिर द्रविड़ शैली में निर्मित है।

ध्रुव प्रथम – (779-793 ई.)

कृष्ण प्रथम का पुत्र था त्रि-पक्षीय संघर्ष में भाग लिया, ऐसा करने वाला (उत्तर भारत की राजनीति में भाग लेने वाला) प्रथम शासक था 

ध्रुव प्रथम गुर्जर प्रतिहार शासक “वत्सराज” तथा पालवंश के शासक “धर्मपाल” को पराजित किया

त्रि-पक्षीय संघर्ष की विजय के उपलक्ष में – ध्रुव ने अपने राजचिन्ह पर गंगा व यमुना का अंकन करायाध्रुव प्रथम को धारा वर्ष भी कहा जाता है।

गोविन्द III (793-814 ई.)

गोविन्द III राष्ट्रकूट वंश का सबसे प्रतापी शासक 

 ध्रुव प्रथम का पुत्र था

त्रि-पक्षीय संघर्ष मे इसने गुर्जर प्रतिहार शासक नागभटृ II व पालवंश के “धर्मपाल” को पराजित किया 

गोविन्द III ने श्रीलंका के राजा व उसके मंत्री को पराजित कर बंदी बनाकर – हालापुर कर्नाटक ले आया।इसी दौरान श्रीलंका के इष्टदेव की दो प्रतिमाएं साथ लाया तथा उन्हें मान्यखेत के शिव मन्दिर के सामने विजय स्तंभ के रूप में लगवाया।

 अमोघवर्ष : (814 ई. - 873 ई.)

गोविन्द III का पुत्र था अल्पव्यस्क शासक होने के कारण करकराज को इसका संरक्षक बनाया गया।शासक बनते ही वेगी चालुक्य शासक विजयादित्य II ने आक्रमण कर राज्य से भागने पर मजबूर कर दिया।अपने मंत्री करकराज की सहायता से पुन: राज्य प्राप्त किया व अपनी राजधानी अंतिम रूप से मान्यखेत को बनाया।

अमोघवर्ष जैन धर्म का अनुयायी था, परन्तु वह लक्ष्मी का उपासक था।

इसके दरबार में जैन कवि - जिनसेन - रचना: आदिपुराणमहावीराचार्य - रचना: गणितसार संगृहजिनसेन व महावीराचार्य इन दोनों जैनमुनियों से प्रभावित होकर अमोघवर्ष ने कन्नड़ भाषा के प्रथम काव्य ग्रंथ ‘कविराज मार्ग’ की रचना की। अन्य ग्रंथ : प्रश्नोत्तर मालिका

 Note : अमोघवर्ष के दरबार में शक्तायन भी निवास करते थे जिन्होने अमोधवृति की रचना की।

अमोघवर्ष ने अपनी जनता को महामारी से बचाने हेतु अपने बाँये हाथ की अंगुली काटकर देवी को चढा दी।

Note : अमोघवर्ष को उसके जनहित कार्यो व धार्मिक उदारता के कारण इतिहासकारों ने इसकी तुलना मौर्य सम्राट ‘अशोक’ से की है।दक्षिण भारत का अशोक कहा है।

इन्द्र तृतीय : (915 ई. - 927 ई.)

इसके शासनकाल में - अरबी यात्री व लेखक ‘अलमसुदी’ भारत आया।

अलमसुदी ने इसे राष्ट्रकूट वंश का सबसे प्रतापी शासक एवं श्रेष्ठ शासक बताया।

इसने गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक ‘महिपाल’ को पराजित कर राजधानी कन्नौज को लूटा।पालवंश के देवपाल को भी पराजित किया।

इन्द्र III के बाद गोविन्द चतुर्थ (927 - 936 ई.) व अमोघवर्ष II (936 - 939 ई.) तक शासक बने।

Note : अलमसुदी G.P. शासक महिपाल के दरबार में भी गया था।

कृष्ण तृतीय : (939 ई. - 965 ई.)

राष्ट्रकूट वंश का अंतिम महान शासक माना जाता है।इसने चोल नरेश परान्तक प्रथम को पराजित करके चोल साम्राज्य के उत्तरी भाग पर अधिकार कर लिया था।

इसने चोल नरेश ‘परान्तक प्रथम’ को पराजित कर ‘अकाल वर्ष’ की उपाधी धारण की।

इसने मालवा के परमारों, काँची के पल्लवों को पराजित कर, रामेश्वरम् (तमिल) एक विजय स्तंभ की स्थापना की।

इसके दरबार में कन्नड़ कवि ‘पौन्न’ निवास करते थे जिन्होने शांति पुराण की रचना की।

अन्य उपाधियाँ : कृष्णेश्वर, गंडमार्तडांदित्यपल्लव व चोलों को पराजित करने के बाद ‘कांचीयम तंजेयमकोंड’ (अर्थात काँची व तंजौर का विजेता’) की उपाधी धारण की।

974-75 ई. में राष्ट्रकूट वंश के अंतिम शासक कर्क II को चालुक्य तैलप II ने पराजित कर मार डाला।इसी के साथ राष्ट्रकूटों का अंत हो गया।

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