प्रस्तावना
भारतीय संविधान मे प्रस्तावना का प्रारूप अमेरिका से ग्रहण किया गया है किंतु इसकी भाषा शैली आस्ट्रेलिया से ग्रहण की गई है।
13 दिसम्बर 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा उद्देश्य प्रस्ताव रखा गया है यही वर्तमान संविधान की प्रस्तावना है, इसलिए पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्रस्तावना का जनक माना जाता है।
ठाकुर दास भार्गव ने प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा है।
42 वे संविधान संशोधन 1976 के अंतर्गत प्रस्तावना मे केवल एक बार संशोधन हुआ जिसमे तीन नए शब्द जोडे गए।
1) समाजवाद - उत्पादन तथा वितरण के समस्त संसाधनों पर कुछ लोगों का अधिकार नही होगा इसका उपयोग सार्वजनिक हितो की प्राप्ति के लिए किया जाएगा।
संविधान सभा मे एच वी कामथ ने समाजवाद को जोडने की सिफारिश की किंतु इसे नही जोडा गया।
2) पंथनिरपेक्षता - इससे आशय किसी भी राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होगा राज्य सभी धर्मों के प्रति तटस्थता की नीति का अनुसरण करेगा।
3) अखण्डता - इससे आशय भारत विविधता में एकता तथा सांस्कृतिक समन्वय को बनाए रखेगा।
प्रस्तावना के तत्व
1) शासन की अंतिम शक्ति - संविधान की प्रस्तावना से स्पष्ट होता है की भारत मे शासन की अंतिम शक्ति जनता मे निहित है।
2) संविधान के उद्देश्य
1) सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय प्रदान करना
2) विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता प्रदान करना।
3) प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता प्रदान करना।
4) बंधुता
3) संविधान की पृकृति - निम्न शब्द संविधान की पृकृति है।
सम्पूर्ण प्रभुत्व समपन्न
समाजवादी
पंथ निरपेक्ष
लोकतांत्रिक
गणराज्य
4) अंगीकृत या स्वीकार करने की तिथि - संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 के दिन भारतीय संविधान को अंगीकृत किया गया।
प्रस्तावना पर न्यायिक दृष्टिकोण
1960 मे बेरूवादी वाद मे न्यायालय ने कहा की प्रस्तावना संविधान का अंग नही है।
1973 के केशवानंद भारती वाद मे न्यायालय ने अपने पुर्व के निर्णय को बदल दिया एवं प्रस्तावना को संविधान के अंग के रूप में स्वीकार किया।
प्रस्तावना विधायिका की शक्तियों का स्त्रोत नही है, ना ही प्रस्तावना न्यायालय मे प्रवर्तनीय है।
अनुच्छेद 368 की शक्ति से संसद द्वारा संविधान मे संशोधन किया जा सकता है किंतु प्रस्तावना के ऐसे विषय जिनका संबंध संविधान के मूलभूत ढाचे से है उसमे संशोधन नही किया जा सकता है।
उद्देशिका
हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण
प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी,
पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक
गणराज्य बनाने के लिए तथा इसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म
और उपासना की
स्वतंत्रता
प्रतिष्ठा और अवसर की समता,
प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता
सुनिश्चित करने वाली
बंधुता बढ़ाने के लिए
दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में
आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. (तिथि मार्गशीर्ष शुक्ला
सप्तमी, संवत् दो हजार छह
विक्रमी ) को एतद्द्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
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