". अभिप्रेरणा ~ Rajasthan Preparation

अभिप्रेरणा


अभिप्रेरणा 

अभिप्रेरणा वह प्रेरक शक्ति है जो हमें किसी कार्य को करने के लिए मजबूर करती है।

स्किनर के अनुसार अभिप्रेरणा अधिगम का सर्वोच्च राजमार्ग स्वर्ण पथ या ह्लदय होती है।

विलियम मिकडुगल के अनुसार अभिप्रेरणाएँ शारीरिक एवं मनोदेहिक दशाएं होती है, जो हमें किसी भी कार्य को करने हेतु प्रेरित करती है।

गुड एनएफ - अभिप्रेरणा किसी कार्य को प्रारंभ करने, जारी रखने, व नियमित बनाने की प्रक्रिया है।

प्रेरक 

वे कारक जो हमे किसी भी कार्य को करने हेतु प्रेरित करते हैं।

प्रेरकों के प्रकार

मुख्य रूप से प्रेरक दो प्रकार के होते है।

1) आंतरिक प्रेरक- वे प्रेरक जो हमारे शरीर से उत्पन्न होते हैं आंतरिक प्रेरित कहलाते हैं जैसे भूख, प्यास, नींद, संवेग, काम आदी, इन्हें सकारात्मक प्रेरक भी कहा जाता है क्योंकि इसमें व्यक्ति के लिए कार्य करना अनिवार्य हो जाता है।

2) बाह्य प्रेरक - बाह्य वातावरण से प्राप्त प्रेरकों को बाह्य प्रेरक कहा जाता है, पद प्रतिष्ठा, सजा, पुरूष्कार आदी, इनहे नकारात्मक प्रेरक भी कहा जाता है क्योंकि इनके व्यक्ति के लिए कार्य करना अनिवार्य नहीं होता।

अब्राहम मैस्लो के अनुसार प्रेरक

इन्होंने प्रेरकों के दो प्रकार बताए हैं।

1) जन्मजात प्रेरक - वे प्रेरक जो व्यक्ति जन्म से ही अपने साथ लेकर आता है, जैसे भूख, नींद, प्यास आदि।

2) अर्जित प्रेरक - वे प्रेरक जो सामाजिक वातावरण के समन्वय से प्राप्त होते हैं, जैसे सजा, प्रतिष्ठा पद आदि।

थाॅम्सन के अनुसार प्रेरक

इन्होंने प्रेरकों के दो प्रकार बताए है।

1) स्वाभाविक - वे प्रेरक जो व्यक्ति में उसके स्वभाव के कारण होते हैं जैसै - खाना, पीना, मनोरंजन, सोना।

2) कृत्रिम - वे प्रेरक जो मानव निर्मित या सामाजिक व्यवहार से प्रभावित होते हैं जैसे पद, प्रतिष्ठा, सम्मान।

गैरेट के अनुसार प्रेरक 

इन्होने अभिप्रेरको के तीन प्रकार बताए है।

1) देहिक प्रेरक - सभी संवेग देहिक प्रेरक होते हैं, जैसे - भय क्रोध

2) मनोवैज्ञानिक प्रेरक - वे प्रेरक जो हमारी मनःस्थिति को प्रभावित करते है, तथा हमारा कार्य व्यवहार मूलप्रत्यात्मक होता है, मनोवैज्ञानिक पृवृतिया इसमे आती है, जैसे - पलायन, युयुत्सा

3) सामाजिक प्रेरक- वे प्रेरक जो समाजिक वातावरण मे आदर्श के रूप मे होते है जैसे - प्रेम, दया, करूणा, सहयोग 

अभिप्रेरणा चक्र

हिलगार्ड ने अभिप्रेरणा के 3 सौपान बताए है।

1) आवश्यकता - जब भी किसी व्यक्ति को कोई कमी या अधिकता होती है तो वह आवशयकता कहलाती है।

जैसे हमारी कोशिकाओं में ऊर्जा की कमी होने पर हमें भोजन की आवश्यकता होती है, हमारे शरीर में मल मूत्र अधिक होने पर उसे त्याग की आवश्यकता होती है।

2) चालक/ तनाव/ प्रणोद/तनाव/अंतर्नोद/कारक - जब व्यक्ति को किसी प्रकार की आवश्यकता महसूस होती है तो मैं उसके शरीर में तनाव उत्जापन्न हो जाता है उसे चालक कहा जाता है।

जैसे - पानी की आवश्यकता होने पर प्यास लगने जाती है।

3) प्रोत्साहन - जब व्यक्ति चालक को समाप्त करने हेतु कोई कार्य करता है तो उसे प्रोत्साहन कहा जाता है।

जैसे - प्यास लगने पर व्यक्ति पानी पीता है।

पानी पीने से उसकी आवश्यकता समाप्त हो जाती है इस संपूर्ण क्षेत्र के अभिप्रेरणा चक्र कहा जाता है।

Motivation = Need + drive + Incentive

अभिप्रेरणा के सिद्धांत 

उद्दीपन अनुक्रिया का सिद्धांत 

प्रवर्तक - स्कीनर

इस सिद्धांत के अनुसार अभिप्रेरणा किसी उद्दीपक के कारण व्यक्ति मे होने वाली अनुक्रिया है।

चालक का सिद्धांत 

प्रवर्तक- क्लार्क लियोनार्ड हल

इस सिद्धांत के अनुसार चालक जितना तीव्र होगा अभिप्रेरणा भी उतनी ही तीव्र होगी।

प्रोत्साहन का सिद्धांत 

प्रवर्तक - बाॅल्स एवं काफमेन 

प्रोत्साहन के रूप में कोई भी वस्तु या क्रिया व्यक्ति को सुनिश्चित रूप से कार्य करने हेतु प्रेरित करती है, जैसे किसी भी व्यक्ति को वेतन नौकरी करने हेतु प्रोत्साहित करता है।

मनोविश्लेषण का सिद्धांत 

प्रवर्तक- सिग्मण्ड फ्रायड 

इनके अनुसार व्यक्ति मे दो प्रवृत्तियां पाई जाती है जो किसी भी कार्य हेतु प्रेरित करती है।

1) इरोज - जन्म से संबंधित / निर्माणात्मक प्रवृत्तियां 

2) थनेटाॅस - मृत्यु से संबंधित / विध्वंसात्मक प्रवृत्तियां 

उपलब्धि अभिप्रेरणा का सिद्धांत 

प्रवर्तक- डेविड सी मैक्लीएंड तथा एटफिंसन

इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी व्यक्ति के लिए अवसरो की उपलब्धता उसे कार्य करने हेतु प्रेरित करती है।

आवश्यकता पदानक्रम का सिद्धांत 

प्रवर्तक- अब्राहम मैस्लो 

इस सिद्धांत के अंतर्गत मैस्लो ने आत्म सिद्दी की प्राप्ति हेतु आवश्यकताओ को एक निश्चित पदानुक्रम के रूप में व्यवस्थित करते हुए एक माॅडल प्रस्तुत किया, जो निम्न प्रकार है।

दैहिक आवश्यकता 

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सुरक्षा आवश्यकता 

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स्नेह आवश्यकता

          ⬇️

सम्मान आवश्यकता 

          ⬇️

     आत्मसिद्दी

दैहिक व सुरक्षा आवश्यकता व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकताएँ है।

स्नेह व सम्मान माध्यमिक आवश्यकताएँ है।

आत्मसिद्दी उच्चतर आवश्यकता है।

मूल प्रवृतियो का सिद्धांत 

प्रवर्तक- विलियम मैकडुगल

इनके अनुसार 14 प्रकार की मुलप्रवृतियां होती है जो व्यक्ति को कार्य करने हेतु प्रेरित करती है, यह किसी न किसी संवेग से जुडी रहती है।

विलियम मोकडुगल के अनुसार संवेग- 14

  • संवेग               मुलप्रवृति
  1. भय                  पलायन
  2. क्रोध                 युयुत्सा
  3. आश्चर्य              जिज्ञासा 
  4. भूख                  भोजनान्वेषण
  5. घृणा                 निवृत्ति 
  6. करूणा              शरणागति
  7. आत्महीनता       दैन्यता
  8. कृतिभाव           रचनात्मक 
  9. वात्सल्य            पुत्रैच्छा
  10. एकांकीपन         सामूहिकता 
  11. स्वामित्व            संग्रहण
  12. कामुकता           कामवृति
  13. आमोद              हास्य
  14. आत्माभिमान     गौरव

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