चिंतन
- शिक्षक के द्वारा किया जाने वाला कार्य शिक्षण कहलाता है।
- प्रत्येक कार्य एक समस्या है।
- शिक्षण भी एक समस्या है क्योंकि इसमे शिक्षक को सोचना पडता है कि कब, कैसे, कितना पढाना है।
- समस्या का समाधान चिंतन से किया जा सकता है।
- हम्प्रे के अनुसार चिंतन का जन्म समस्या के समय ही होता है, क्योंकि समस्या के समय प्राणी को लक्ष्य का रास्ता नजर नही आता है।
- प्रत्येक शिक्षक को कलात्मक तरीके से पढाना होता है उसके लिए उसका सोचना, समझना तथा विचारना ही चिंतन है।
- राॅस के अनुसार चिंतन एक मानसिंक गत्यात्मक क्रिया है, जिसके द्वारा कोई व्यक्ति किसी समस्या से समाधान की ओर बढता है।
चिंतन के मूलतः दो प्रकार होते हैं।
- स्वली चिंतन - यह केवल काल्पनिक होता है इसमे व्यक्ति कार्य नही करता है इसलिए इससे समाधान प्राप्त नही होता है।
- यथार्थ चिंतन - यह सत्य एवं वास्तविक होता है तथा इसमे निश्चित रूप से परिणाम प्राप्त होते है।
यथार्थ चिंतन तीन प्रकार का होता है।
1) अभिसारी/मुर्त/निगमनात्मक चिंतन - इसमे सामान्य शिक्षण होता है।
2) अपसारी/अमूर्त/आगमनात्मक चिंतन - इसमे अच्छा शिक्षण होता है।
3) आलोचनात्मक / विश्लेषणात्मक चिंतन - इसमे श्रेष्ठ शिक्षण होता है ।
बाल चिंतन
चिंतन की शुरुआत बचपन से ही हो जाती है तथा बालक के द्वारा किया जाने वाला चिंतन बाल चिंतन कहलाता है।
बालक में चिंतन का विकास भाषा विकास के बाद होता है।
जीन पियाजे के अनुसार बालक के मस्तिष्क मे पूर्व प्रत्यात्मक काल (2वर्ष की अवस्था) से ही छोटे छोटे प्रत्य बनने लगते है जो बालक मे चिन्तन को जन्म देते है।
बालक मे पाए जाने वाले चिंतन
प्रत्यक्षात्मक चिंतन - पूर्व अनुभवो या किसी व्यवहार की आवृत्ति के कारण जो चिंतन पैदा होता है उसे प्रत्यक्षात्मक चिंतन कहा जाता है।
जैसे - एक बालक को पापा के घर लौटते ही रोज टॉफी मिलती है तो पापा को देखते ही उसके मन में टॉफी का चिन्तन उत्पन्न होगा।
सजीव चिंतन - शैशवावस्था में बालक निर्जिव वस्तुओं को भी सजीव मानकर ही व्यवहार करता है जैसे - सुर्य को देखकर सोचता है कि सुर्य उसके साथ चल रहा है।
कल्पनिक चिंतन - जब कोई बालक अपने पूर्व अनुभव के आधार पर भविष्य के बारे में सोचता रहता है तो उसे काल्पनिक चिंतन कहा जाता है जैसे मम्मी के बाजार जाते ही दिन भर कल्पना करता रहता है कि मम्मी आएंगे तो फ्रूट्स लाएंगे।
प्रतिमात्मक चिंतन - जब एक बालक के द्वारा पूर्व व्यवहार/घटनाक्रम के कारण कोई विचार मस्तिष्क में पैदा होता है, ओर वह उसके अनुरूप व्यवहार करने लगता है।
जैसे - अपने दादा को देखते ही एक छोटा बालक उनका नाम पुकार लेता है।
तार्किक चिंतन - जब एक बालक 9 से 11 वर्ष तक की आयु का हो जाता है तो उसमें तार्किक चिंतन पैदा हो जाता है, के अंतर्गत बालक चिंतन के द्वारा तर्क करना सीख लेता है।
जॉन डीवी ने तार्किक चिंतन को विचारात्मक चिंतन बताया है जबकि वुडवर्थ ने काल्पनिक व प्रतिमात्मक चिंतन को विचारात्मक चिंतन बताया है।
कल्पना व चिंतन में अंतर
कल्पना मे व्यक्ति केवल सोचता है तर्क नही कर कर पाता, किंतु चिंतन बिना तर्क के संभव ही नहीं है।
कल्पना से कार्यों के परिणाम नहीं निकलते किंतु तर्क से कार्यों के परिणाम निश्चित रूप से निकलते हैं।
तर्क
किसी भी समस्या के समाधान हेतु किया गया वह चिंतन जिसके द्वारा निश्चित रूप से समाधान हो ही जाता है, ऐसे वास्तविक चिंतन को ही तर्क कहा जाता है।
गैरेट के अनुसार मन मे हुए किसी लक्ष्य या उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में किया गया क्रमबद्ध चिंतन ही तर्क कहलाता है।
गेट्स के अनुसार तर्क एक निश्चित फलदायी चिंतन की प्रक्रिया है।
तर्क के सौपान
जोन डीवी ने अपनी पुस्तक How we think मे पाँच सौपान बताए है।
1) समस्या उपस्थित करना
2) समस्या को जानना
3) समाधान के लिए उपाय खोजना
4) एक उपाय का चयन
5) उपाय का उपयोग
तर्क के प्रकार
आगमनात्मक तर्क- उदाहरण से नियम की ओर
निगमनात्मक तर्क- नियम से उदाहरण की ओर
आलोचनात्मक तर्क - गुण व दोष के आधार पर
सादृश्यवादी तर्क- उपमा के आधार पर
कल्पना
पूर्व व्यवहार के आधार पर जब हम किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान के बारे मे चिन्तन करते हैं उसे ही कल्पना कहते हैं।
मैकडुगल के अनुसार कल्पना एक मानसिक हस्त व्यापार है तथा किसी वस्तु की अनुपस्थिति में उसके बारे मे चिन्तन है।
मैकडुगल के अनुसार कल्पना के दो प्रकार होते हैं।
उत्पादन कल्पना- जब एक व्यक्ति पूर्व अनुभवो के आधार पर कल्पना करते हुए नवीन विचार को बना लेता है।
पुनरूत्पादन कल्पना- पूर्व अनुभवो एवं उत्पादन कल्पना का ओर आगे से आगे विकसित होते रहना।
जेम्स ड्रेवर के अनुसार कल्पना 8 प्रकार की होती है।
कल्पना की विशेषताएं
मानसिक प्रक्रिया
पूर्व अनुभवो पर आधारित
प्रतिमा चयन
सृजन शक्ति
उत्पादन का विचार
स्मृति
किसी पूर्व अनुभव का नवीन परिस्थितियों में पुनः स्मरण हो जाना।
स्काउट- स्मृति एक आदर्श पुनरावृत्ति है।
वुडवर्थ- स्मृति पूर्व मे सीखी गई किसी बात का पुनः स्मरण है।
स्मृति के सौपान
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