राजस्थान की मृदा (Soils of rajasthan)
🔷️मृदा के निर्माण की प्रक्रिया को पैडोजिनेसिस कहा जाता है।
🔷️मृदा का निर्माण मुख्य रूप से अपक्षय (weathering) पर निर्भर करता है।
🔷️मृदा का अध्ययन पेडोलाॅजी कहलाता है।
मृदा का संगठन
मृदा के संगठन मे मुख्य रूप से पाँच तत्व पाए जाते हैं।
1) खनिज पदार्थ - 40 से 50%
2) ह्युमस/कार्बनिक यौगिक- 5 से 10%
3) मृदा जल (नमी) - 2.5%
4) मृदा वायु - 2.5%
5) सूक्ष्म जीव
मृदा की प्रकृति
1) अम्लीय मृदा - वह मृदा जिसका pH मान 7 से कम होता है उसे अम्लीय मृदा कहा जाता है।
मृदा में अम्लीयता की समस्या के समाधान के लिए रॉक फास्फेट का प्रयोग किया जाता है।
2) क्षारीय मृदा - वह मृदा जिसका pH मान 7 से अधिक होता है उसे क्षारीय मृदा कहा जाता है।
मृदा में क्षारीयता की समस्या के समाधान के लिए जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
3) उदासीन मृदा - वह मृदा जिसका pHमान 7 होता है उसे उदासीन मृदा कहा जाता है।
मृदा के पोषक तत्वों की प्रभावशीलता तथा सूक्ष्म जीवों की सक्रियता pH मान 6.5 से 7.5 के मध्य होगी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली ने 1956 मे भौगोलिक वितरण / निर्माण की प्रक्रिया के आधार पर राजस्थान की मृदा को 8 भागो में वर्गीकृत किया है।
1) जलोढ मृदा
अन्य नाम- दोमट मृदा, काप मृदा, कछारी मृदा
निर्माण- नदियो द्वारा
विस्तार - 1) पूर्वी मैदानी प्रदेश (चम्बल बेसिन, बनास बेसिन व माही बेसिन)
2) घग्गर प्रदेश- गंगानगर व हनुमानगढ
3) जिले - अलवर, भरतपुर, जयपुर, दौसा, करौली, धौलपुर, सवाई माधोपुर, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ व बांसवाडा
यह विकसित एवं सर्वाधिक उपजाऊ मृदा है।
यह गहन कृषि का क्षेत्र है।
जलोढ मृदा के प्रकार
- भाबर - नदियो द्वारा लाई गई बडे कंकर युक्त मृदा को भाबर कहा जाता है।
- तराई - नदियो द्वारा लाई गई दलदली जलोढ मृदा को तराई कहा जाता है
- बांगर - प्राचीन जलोढ मृदा को बांगर कहा जाता है, इसका विस्तार लुणी बेसिन मे है।
- खादर - नवीन जलोढ मृदा को खादर कहा जाता है, इसका सर्वाधिक विस्तार चम्बल बेसिन मे है।
2) काली मृदा
अन्य नाम- कपास मृदा, रेगुर मृदा
निर्माण- ज्वालामुखी प्रक्रिया द्वारा निर्मित बेसाल्ट चट्टानो के विखंडन से।
विस्तार- हाडौती का पठार (कोटा, बुंदी, बांरा व झालावाड़)
इसकी जल धारण क्षमता सर्वाधिक होती है।
यह कपास की फसल के लिए उपयोगी है।
राजस्थान मे सबसे कम विस्तार काली मिट्टी का है।
यह सवतः जुताई के लिए जानी जाती है।
3) पर्वतीय मृदा/लाल मृदा
अन्य नाम - पर्वतीय मृदा
निर्माण- पर्यावरण परिवर्तन के कारण पर्वतो के ऊपरी परत के उपक्षरण, संगठन व संरचना मे परिवर्तन से निर्मित।
विस्तार- अरावली पर्वतीय प्रदेश
जिले - उदयपुर, राजसमंद, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, बांसवाडा
यह मक्का की कृषि के लिए उपयोगी है।
इसमे ह्युमस व नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है।
यह अल्प विकसित मृदा है।
इसमे सर्वाधिक चादरी अपरदन होता है।
4) रेतीली बलूई मृदा
निर्माण- इसका निर्माण टेथिस सागर के अवशेष के रूप में हुआ।
विस्तार- पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश, सर्वाधिक- जैसलमेर
इसकी जलधारण क्षमता न्यूनतम है।
वायु अपरदन इस मिट्टी की सबसे बडी समस्या है।
5) लाल पीली मृदा (भुरी मृदा)
जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानो के अपक्षरण, विखंडन, वियोजन से निर्मित
विस्तार - बनास बेसिन (भीलवाड़ा,अजमेर,टोंक,सवाई माधोपुर)
6) लवणीय/क्षारीय मृदा
अन्य नाम - ऊसर, रेह, कल्लर,चोपेन,धूर
निर्माण - मृदा मे लवण/क्षारीय तत्वो के मिलने से।
विस्तार- पश्चिमी राजस्थान- खारे पानी की झीलो के कारण
गंगानगर व हनुमानगढ- सेम की समस्या के कारण
बाडमेर व जालौर - अत्यधिक सिंचित क्षेत्र
यह सर्वाधिक अनुपजाऊ मृदा है।
7) लैटेराइट मृदा
8) जैविक मृदा
राजस्थान की मृदा का वैज्ञानिक वर्गीकरण
1975 मे मृदा संरक्षण विभाग (USA) द्वारा वृहद मृदा वर्गीकरण योजना के अंतर्गत राजस्थान की मृदा को 5 भागो में वर्गीकृत किया गया है।
1) वर्टीसोल
यह हाडौती के पठार मे पाई जाती है।
2) इन्सेप्टीसोल
यह आर्द्र जलवायु प्रदेश/ अरावली प्रदेश मे पाई जाती है।
3)"एल्फीसोल
यह उपआर्द जलवायु प्रदेश मे पाई जाती है।
4) एण्टीसोल
यह शुष्क एवं अर्दशुष्क जलवायु प्रदेश में पायी जाती है।
5) एरिडीसोल
यह शुष्क जलवायु प्रदेश जहां 10सेमी से कम वर्षा होती है पाई जाती है।, इसमे चुरू, झुंझनूं, नागौर व जोधपुर जिलो को सम्मिलित किया जाता है।
प्रो थाॅर्पे एवं स्मिथ का वर्गीकरण/ उत्पत्ति के कारको के आधार पर वर्गीकरण
इसके अंतर्गत राजस्थान की मृदा को आठ भागो मे वर्गीकृत किया गया है।
1) पहाड़ी मृदा - यह अरावली की तलहटी मे पाई जाती है।
2) लवणीय मृदा- यह खारे पानी की झीलो के आसपास पाई जाती है।
3) जलोढ मृदा- यह नदी बेसिन मे पाई जाती है।
4) बलुई मृदा- यह टेथिस सागर के अवशेष के रूप मे मरूस्थलीय प्रदेश में पाई जाती है।
5) लाल दोमट मृदा - अरावली प्रदेश का वह क्षेत्र जहां से नदियाँ निकलती है इसमे राजसमन्द, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, बांसवाडा, डुंगरपुर जिले सम्मिलित हैं।
6) लाल बलुई मृदा- यह जोधपुर, नागौर, पाली, सीकर, जालौर व झुंझनूं मे पाई जाती है।
7) भूरी मृदा- यह टोंक, अजमेर, सवाई माधोपुर व भीलवाड़ा क्षेत्र में पाई जाती है।
8) धुसर/सिरोजम मृदा- यह जोधपुर, नागौर, जयपुर, दौसा, अजमेर मे पाई जाती है।
कृषि विभाग का वर्गीकरण - 14 भाग
1) रेवेरिना मृदा - गंगानगर
2) साईरोजेक्स मृदा- गंगानगर
3) जिप्सीफेरस - बीकानेर - मूंगफली के लिए उपयोगी
4) कैल्सी ब्राउन - जैसलमेर व बीकानेर
5) नाॅन कैल्सीब्राउन - जयपुर, सीकर, झुंझनूं, नागौर, अजमेर, अलवर
6) लाल लोम मृदा- डुंगरपुर व बांसवाडा
7) पर्वतीय मृदा- उदयपुर, कोटा
8) नवीन भूरी मृदा- भीलवाड़ा, अजमेर
9) धूसर भूरी जलोढ मृदा- नागौर, पाली, जालौर, सिरोही, अजमेर
10) नवीन जलोढ मृदा- अलवर, भरतपुर, जयपुर व सवाई माधोपुर
11) पीली भुरी मृदा- जयपुर, टोंक, भीलवाड़ा, सवाई माधोपुर, चित्तौड़गढ़
12) काली गहरी मध्यम मृदा - कोटा, बुंदी, बांरा व झालावाड़
13) मरूस्थलीय मृदा- जालौर व पाली को छोड़कर सम्पूर्ण मरूस्थलीय प्रदेश
14) मरूस्थल एवं बालुका स्तुप- जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर
कृषि मे उपयोगिता, उपलब्धता, तथा प्रधानता के आधार पर - 9 भाग
रेतीली मृदा- पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश
भूरी रेतीली मृदा- बाडमेर, जालौर, पाली, सिरोही, जोधपुर
लाल पीली मृदा- अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक व सवाईमाधोपुर मे
मिश्रित लाल काली मृदा- चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, बांसवाडा, बुंदी व कोटा
लाल लोमी मृदा - उदयपुर, डुंगरपुर, बांसवाडा व प्रतापगढ़
मध्यम काली मृदा- कोटा, बुंदी, बांरा व झालावाड़
जलौढ मृदा- अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, दौसा, जयपुर
भुरी रेतीली कछारी मृदा- गंगानगर, अलवर, भरतपुर
लवणीय मृदा- बाडमेर, जालौर, गंगानगर, बीकानेर व हनुमानगढ
No comments:
Post a Comment
Comment us