". राजस्थान के लोक वाद्य ~ Rajasthan Preparation

राजस्थान के लोक वाद्य


राजस्थान के लोक वाद्य 

राजस्थान संगीत  संस्थान - जयपुर 

  • स्थापना - 1950
  • यह वाद्य यंत्रो का प्रशिक्षण प्रदान करती है।
लोक वाद्य के प्रकार

1) सुषिर वाद्य यंत्र 

  • मुंह से फुंक मारकर ध्वनि उत्पन्न करने वाले वाद्य यंत्रो को सुषिर वाद्य यंत्र कहा जाता है।

शहनाई 

  • उपनाम- नफ़री, हहनाई, सुन्दरी
  • यह विवाह/ मांगलिक अवसरों पर बजाया जाने वाला प्रमुख वाद्य यंत्र है।
  • प्रमुख वादक- बिस्मिल्ला खां, इन्हें शहनाई का जादुगर कहा जाता है, इन्हे 2001 मे भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
  • वर्तमान वादक - हुसैन खाँ 

  • Bismillah khan with shehnai

बांसुरी

  • कुल छिद्र - 7
  • प्रमुख कलाकार- हरिप्रसाद चौरसिया 
  • भगवान श्रीकृष्ण का पसंदीदा वाद्य यंत्र।
  • यह राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र में लोकप्रिय है।
  • पावला - 5 छिद्र वाली बांसुरी
  • रूला - 6 छिद्र वाली बांसुरी 

अलगोजा

  • उपनाम - बाडमेर के रणफकिरो का वाद्य यंत्र 
  • यह राजस्थान का राज्य लोक वाद्य यंत्र है।
  • प्रमुख वादक - धोंधे खाँ
  • इसका निर्माण दो बांसुरियो को जोडकर किया जाता है जिसमे दोनो मे चार चार छेद होते है।

भुंगल

  • इसे रणभेरी भी कहा जाता है।
  • इसका उपयोग राजा महाराजाओं द्वारा युद्ध के समय किया जाता था।

तारपी/पावरी

  • यह कद्दु की लकड़ी से निर्मित होता है।
  • यह कथौडी जनजाति का प्रमुख वाद्य यंत्र है।

मोरचंग

  • इसे राजस्थान का ज्युप हार्प कहा जाता है।
  • यह सबसे छोटा वाद्य यंत्र है।

मशक

  • इसे भेरूजी के भोपो द्वारा बजाया जाता है।
  • श्रवण कुमार को मशक का जादूगर कहा जाता है।
  • इसका सर्वाधिक प्रयोग सवाई माधोपुर व अलवर में किया जाता है।

शंख

बांकिया

सुरणाई

तुरही

नागफणी

करणा

सतारा

यह अलगोजा, बांसुरी तथा शहनाई का मिश्रण है.

मण्ड

नड

करणा भील का संबंध नड वाद्य यंत्र से है।

सींगा

मेका

2) तत् वाद्य यंत्र 

  • तारो द्वारा ध्वनि उत्पन्न करने वाले वाद्य यंत्रो को तत् वाद्य यंत्र कहा जाता है।

रबाब

  • इसमे कुल तारो की संख्या 4-5 होती है।
  • इसे टोंक व मेवात मे नखवी जाती के लोगों द्वारा बजाया जाता है।

रवाज

  • कुल तार-12

रावणहत्था

  • कुल तार - 9
  • यह आधे कटे हुए नारियल से बना वाद्य यंत्र है।
  • पाबूजी व रामदेव जी की फड वाचन करते समय इसका प्रयोग किया जाता है।

सुरिन्दा

  • कुल तार-10
  • यह मुख्यतः लंगा जाति के लोगो द्वारा बजाया जाता है।
  • यह रोहिडा की लकड़ी से निर्मित होता है।

जंतर

  • कुल तार - 5-6
  • देवनारायण जी की फड का वाचन करते समय जंतर वाद्य यंत्र बजाया जाता है।

कमायचा

  • कुल तार- 16
  • यह ईरानी वाद्य यंत्र है।
  • इसे सारंगी की रानी कहा जाता है।
  • पश्चिमी राजस्थान मे इसे सरवट कहा जाता है।
  • इसे मुख्यतः मांगणियार एवं लंगा जाति द्वारा बजाया जाता है।
  • प्रसिद्ध वादक- साकर खाँ मांगणियार 

भपंग 

  • यह मेवात क्षेत्र का प्रसिद्ध है।
  • जहुर खाँ एवं ऊमर फारूक मेवाती इसके प्रमुख वादक है।

अपंग

  • इसे मृतकोकिला व सुरजमंडल भी कहा जाता है।

सारंगी

  • कुल तार - 27
  • इसे कमायचा का राजा कहा जाता है।
  • इसके तार बकरे की आंत से निर्मित होते हैं।
  • इसे जैसलमेर की लंगा जाति के लोगो द्वारा बजाया जाता है।

दुकाको

आदिवासी क्षेत्र में दीपावली के अवसर पर बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र।

इकतारा

यह नारद मुनि का वाद्य यंत्र है।

चिकारा

दौतारा

कांडी

टोंटो

कीरा

3) घन वाद्य यंत्र 

  • धातु से निर्मित वाद्य यंत्र जिनको आपस में टकराने से ध्वनि उत्पन्न होती है उन्हें घन वाद्य यंत्र कहा जाता है।

कांग्रेछ

  • वागड क्षेत्र में भील जनजाति द्वारा इस वाद्य यंत्र को बजाया जाता है।

करताल

  • यह अंग्रेजी वर्णमाला के B अक्षर के समान होता है।
  • इस नारदजी का वाद्य यंत्र कहा जाता है।

खडताल

  • साधु- सन्यासियो द्वारा प्रयुक्त वाद्य यंत्र 
  • खडताल का जादुगर- सद्दीक खाँ मांगणियार 

भरनी

  • लोकदेवता तेजाजी व गोगाजी के भोपो द्वारा सर्पदंश का इलाज करते समय बजाया जाने वाला यंत्र।

लेजिम

  • यह गरासिया जनजाति का प्रमुख वाद्य यंत्र है।

मंजिरा

  • यह पीतल व कांसे से निर्मित होता है।
  • तेरहताली नृत्य मे इसका प्रयोग किया जाता है।

झांझ

  • कच्ची घोडी नृत्य मे इसका प्रयोग किया जाता है।

टंकोरा

टीकोरी

घंटा

घंटी

देवघंटा

घुरलिया

रमझौल

नृत्यांगना द्वारा नृत्य के समय इसे पैर मे बांधा जाता है।

घुंघरू

थाली

चिमटा

झालर

रणसिंह

ताल

4) अवनद/ताल वाद्य यंत्र 

  • चमडे से निर्मित वाद्य यंत्र जिन पर प्रहार करके ध्वनि उत्पन्न की जाती है उन्हें अवनद वाद्य यत्र कहा जाता है।

टामक 

  • यह राजस्थान का सबसे बड़ा वाद्य यंत्र है।
  • यह भैसे की खाल से निर्मित होता है।
  • यह भरतपुर व सवाई माधोपुर क्षेत्र मे प्रसिद्ध है।

डेरू

  • यह आम की लकडी से निर्मित होता है।
  • यह गोगाजी का प्रमुख वाद्य यंत्र है।

डमरू 

  • यह भगवान शिव का वाद्य यंत्र है।
  • यह बालु घङी के आकार का वाद्य यंत्र है।

तासा 

  • मोहर्रम के अवसर पर ताजिये मे प्रयुक्त वाद्य यंत्र।

ढीबको 

  • यह गोंडवाड क्षेत्र मे प्रसिद्ध है।

मांदल 

  • यह देवी पार्वती को समर्पित वाद्य यंत्र है।
  • मिट्टी से निर्मित मांदल का निर्माण मोलेला (राजसमंद) में होता है

नगाडा

  • उपनाम - नकारा, बम
  • इसे गजशाही एवं गौरव का प्रतीक वाद्य यंत्र कहा जाता है।
  • इसे युद्ध वाद्य यंत्र भी कहा जाता है।
  • प्रसिद्ध वादक - रामकिशन सोलंकी

माठ

  • पाबुजी के पवाडो का वाचन करते समय माठ वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है।

कुंडी

चंग 

यह शेखावटी क्षेत्र में होली के अवसर पर बजाया जाता है।

खंजरी

यह चंग का छोटा रूप है जो कामड जाति की महिलाओं द्वारा प्रयुक्त किया जाता है।

घेरा

शिल्पी

डफ

खंजरी

नौबत

मृदंग (पखावज)

प्रसिद्ध वादक- पुरुषोत्तम दास

डुगडुगी

ढोल

ढाढी जाति के लोग ढोल बजाने में पारंगत माने जाते हैं।

तासे 

माते

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