मेवाड का इतिहास
गुहिल वंश
- यह एकमात्र ऐसा वंश था जिसने सर्वाधिक समय तक एक ही स्थान पर शासन किया।
- गुहिलवंशी अपने आप को सूर्यवंशी मानते हैं।
- गोपीनाथ शर्मा, डीआर भंडारकर, आहड अभिलेख एवं एकलिंग महात्म्य के अनुसार गुहिलो की उत्पत्ति ब्राह्मणों से हुई है।
- कर्नल जेम्स टॉड एवं कविराज श्यामल दास के अनुसार गुहिल की उत्पत्ति शिलादित्य से हुई।
- कर्नल जेम्स टॉड एवं मुहणोत नैणसी ने गुहिलो की 24 शाखाओं का उल्लेख किया है।
गुहिल/गुहादित्य
- गुहिल वंश की स्थापना गुहिल या गुहिलादित्य ने 566ई में की थी।
बप्पा रावल(734-53)
- यह महेंद्र द्वितीय के पुत्र थे
- राज प्रकृति के अनुसार इन्होंने 734 ईसवी में मान मोरी को हराकर मेवाड़ में अपना राज्य स्थापित किया।
- इसने अपनी राजधानी नागदा को बनाया।
- इनके गुरु हरित ऋषि थे इन्ही के आशीर्वाद से इन्होंने मेवाड़ पर अधिकार किया।
- गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार इनका वास्तविक नाम काल भोज था बप्पा रावल इनकी उपाधि थी।
- इन्हे गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
- उन्होंने कैलाशपुरी उदयपुर में एकलिंग मंदिर का निर्माण करवाया, यह भगवान लकुलिश को समर्पित शिव मंदिर है।
- इतिहासकार सीवी वैद्य ने बप्पा रावल की तुलना चार्ल्स मार्टल से की है क्योंकि इन्होंने विदेशी आक्रांता को सिंध से दूर भगा दिया था, चार्ल्स मार्टल फ्रेंच शासक था जिसने विदेशी आक्रांताओं को यूरोप के मैं पहली बार घुसने से रोका था।
- 753 ई में इनका निधन हो गया।
अल्लट
- इसने हुणो को पराजित किया एवं हुण राजकुमारी हरिया देवी से विवाह किया, राजस्थान का पहला अंतर्राष्ट्रीय विवाह कहा जाता है।
- इन्होंने मेवाड़ की राजधानी नागदा से स्थानांतरित करके आहड़ में स्थापित किया।
- मेवाड़ में नौकरशाही का गठन सर्वप्रथम इन्हीं के द्वारा किया गया।
शक्तिकुमार (971-93)
- परमार शासक मूंज के आक्रमण के कारण इसने अपनी राजधानी पुनः नागदा स्थानान्तरित की।
रणसिंह -1158
- इनके दो पुत्र थे - क्षेमसिंह व राहप
- इसके बाद से मेवाड़ राजवंश दो शाखाओं में विभक्त हो गया क्षेमसिंह ने रावल शाखा एवं राहप ने सिसोदिया शाखा को जन्म दिया।
क्षेमसिंह
- इनके दो पुत्र थे - सामंत सिंह व कुमार सिंह
सामंत सिंह
- कीर्ति पाल चौहान ने सामंत सिंह पर आक्रमण करके 1174 में मेवाड़ का राज्य छीन लिया।
कुमार सिंह
- इन्होंने 1179 में कीर्ति पाल चौहान को पराजित करके मेवाड़ पर पुनः अधिकार किया।
जैत्रसिंह (1213-50)
- उपाधि - रणरसिक
- भुताला का युद्ध - 1227 में गुलाम वंश के शासक इल्तुतमिश ने जैत्र सिंह पर आक्रमण किया किंतु जैत्रसिंह ने इस युद्ध में इल्तुतमिश को पराजित कर दिया, इसका उल्लेख जयसिंह सुरि द्वारा रचित हम्मीर मदमर्दन मे मिलता है।
- इन्होंने अपनी राजधानी आहड से स्थानांतरित कर चित्तौड़ को बनाया।
- सन 1248 में जैत्रसिह ने गुलाम वंश के शासक नसीरुद्दीन महमूद को पराजित किया।
तेज सिंह(1250-1273)
- इन्होंने गुलाम वंश के शासक गयासुद्दीन बलबन को पराजित किया था।
- मेवाड का प्रथम चित्रित ग्रंथ श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी कमलचंद ने इन्ही के शासनकाल में चित्रित हुआ।
समर सिंह(1273-1301)
- आबू शिलालेख में समर सिंह को तुर्को से गुजरात का उद्धारक कहां गया है।
- समर सिंह के 2 पुत्र थे - रतनसिंह एवं कुंभकर्ण
- कुंभकर्ण नेपाल चले गए नेपाल में गुहिल वंश की स्थापना की।
रावल रतनसिंह (1302-1303)
- उनके शासनकाल में 1303 में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया।
- अमीर खुसरो के अनुसार इस आक्रमण का कारण अलाउद्दीन खिलजी की राज्य लालसा थी, यह इस युद्ध मे शामिल था, इसने खजाईन उल फुतुह मे इस युद्ध का वर्णन किया है।
- मलिक मोहम्मद जायसी के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी ने रावल रतन सिंह की रानी पद्मिनी के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण किया।
- इस आक्रमण में रावल रतन सिंह ने केसरिया एवं पद्मिनी ने जौहर किया इसे चित्तौड़ का प्रथम साका माना जाता है।
- इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ में कत्लेआम का आदेश जारी करवाया जिसमें लगभग 30000 लोगों को मार दिया गया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ दुर्ग अपने पुत्र खिज्र खां को सौंपकर का नाम की खिज्राबाद कर दिया।
- यह रावल शाखा का अंतिम शासक था।
सिसोदिया वंश
राणा हम्मीर (1326-64)
- मालदेव सोनगरा की मृत्यु के बाद 1326 में राणा हम्मीर में मेवाड़ में सिसोदिया वंश की स्थापना की, हम्मीर सिसोदा ठिकाने का जागीरदार था इसलिए यह सिसोदिया वंश कहलाया।
- राणा कुंभा द्वारा रचित रसिकप्रिया ग्रंथ एवं किर्ति स्तम्भ प्रशस्ति मे इसे विषम घाटी पंचानंन कहा गया है।
सिंगोली का युद्ध
- सिंगोली के युद्ध में राणा हम्मीर ने मोहम्मद बिन तुगलक को पराजित किया, सिंगोली वर्तमान बांसवाडा मे स्थित है।
राणा खेता/क्षेत्रसिंह (1364-82)
- इसने मालवा के शासक दिलावर खां को पराजित किया मेवाड़ मालवा संघर्ष का प्रारंभ इसी के शासनकाल में हुआ।
राणा लाखा /लक्षसिंह(1382-1421)
- इनके शासनकाल में पिच्छू नामक बंजारे ने पिछोला झील का निर्माण करवाया।
- इनके शासनकाल में जावर में चांदी की खान निकली, जिससे राज्य की समृद्धि बढी।
- इन्होंने बूंदी के बर सिंह हाड़ा को मेवाड़ की अधीनता मानने के लिए विवश किया।
- इन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में मारवाड़ के राव चुडा की पुत्री राजकुमारी हंसाबाई से विवाह किया लेकिन यह विवाह इस शर्त पर हुआ कि हंसाबाई से उत्पन्न संतान ही मेवाड़ का उत्तराधिकारी होगी।
- राणा लाखा का जेष्ठ पुत्र कुंवर चुंडा था इन्होंने अपने पिता के सम्मान में आजीवन राज सिंहासन धारण न करने की प्रतिज्ञा की इसलिए कुंवर चंडा को राजस्थान का भीष्म पितामह कहा जाता है।
- हंसाबाई व राणा लाखा से एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम मोकल था, यह लाखा के बाद मेवाड़ का महाराणा बना।
राणा मोकल (1421-1433)
- 1421 में जब मोकल शासक बना तो अल्पायु के कारण चुंडा ने उसके संरक्षक के रूप में कार्य किया।
- कुछ समय पश्चात हन्साबाई व हन्साबाई के भाई रणमल ने शासन अपने हाथों में ले लिया, कुंवर चूड़ा अपने अपमान के कारण मांडू (मध्यप्रदेश) चले गए।
- राणा मोकल ने अपनी पुत्री लाला का विवाह गागरोन के शासक अचलदास खींची से किया।
- इन्होंने चित्तौड़गढ़ स्थित त्रिभुवन नारायण मंदिर/समिदेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, इसलिए इसे मोकल मंदिर भी कहा जाता है।
- इन्होंने एकलिंग जी के मंदिर के परकोटे का निर्माण करवाया।
- अहमद शाह के विरुद्ध गुजरात अभियान के दौरान रास्ते में जिलवाड़ा नामक स्थान पर क्षेत्रसिंह के दासी पुत्र चाचा व मंहपा पंवार ने 1433 मे इनकी हत्या कर दी।
महाराणा कुंभा (1433-68)
- पिता- राणा मोकल
- पूर्ण नाम - महाराणा कुम्भकर्ण
- इनके 2 पुत्र उदयसिंह, रायमल थे।
- सर्वप्रथम इन्होंने अपने पिता के हत्यारों से बदला लिया।
सारंगपुर का युद्ध
- कुम्भा के भाई खेमकरण को शरण देने के कारण 1437 में इन्होंने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम को हराया, इस विजय के उपलक्ष में इन्होंने चित्तौड़गढ़ में विजय स्तंभ का निर्माण करवाया।
- इन्होंने दिल्ली के सैयद वंश के सुल्तान मुहम्मद शाह एवं गुजरात के सुल्तान अहमद शाह को भी परास्त किया।
- रणमल पर संदेह के कारण इन्होंने रणमल की हत्या करवा दी।
- 1453 मे इन्होने मंडोर पर अधिकार कर लिया किंतु बाद मे संधि कर ली एवं मारवाड की राजकुमारी का विवाह रायमल से किया गया।
- चंपानेर की संधि - महमूद खिलजी प्रथम एवं गुजरात के शासक कुतुबुद्दीन ने 1456 मे कुंभा से युद्ध करने हेतु संधि की किंतु सफल नही हुए।
- कविराज श्यामलदास के अनुसार इन्होंने 32 दुर्गों का निर्माण करवाया।
- इन्हें चित्तौड़गढ़ दुर्ग का आधुनिक निर्माता माना जाता है।
- इन्होंने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कुंभस्वामी का मंदिर बनवाया एवं अपनी पुत्री रमाबाई के विवाह स्थल के लिए श्रंगार चंवरी का निर्माण करवाया।
- इन्हीं के शासनकाल में धनरकशाह नामक जैन व्यापारी ने देपाक नामक शिल्पी के निर्देशन मे रणकपुर जैन मंदिरों का निर्माण करवाया।
राणा कुंभा ने निम्न संगीत ग्रंथों की रचना की
- सूड प्रबंध
- संगीत राज
- संगीत मिमांसा
- रसिक प्रिया
- कामराज रतिसार
- इनके दरबारी साहित्यकार मंडन ने रूप मंडन, वास्तु मंडन, प्रसाद मंडन, राजवल्लभ आदि ग्रंथों की रचना की।
- कवि अत्रि एवं महेश ने किर्ति स्तम्भ प्रशस्ति की रचना की, इसमे कुंभा को दानगुरू, हालगुरू, राजगुरू अभिनवभारताचार्य, महाराजाधिराज, पदमगुरू, हिंदु सुरताण आदी उपाधियाँ दी गई।
- एकलिंग महात्म्य नामक ग्रंथ की रचना कुंभा ने आरंभ की बाद में इसे कान्हा व्यास द्वारा पूर्ण किया गया।
- कुंभा की पुत्री रमाबाई की महान संगीतज्ञ थी उन्हें वागेश्वरी कहा जाता है।
- अंतिम दिनो मे यह मानसिक रोग से पीडित हो गए कुंभा के पुत्र उदा ने इनकी हत्या कर दी।
- महाराणा उदा/ उदयसिंह प्रथम (1468-73)
- 1473 में बिजली गिरने से इनकी मौत हुई।
महाराणा रायमल (1473-1509)
- इन्होंने राव जोधा की बेटी श्रृंगार देवी से विवाह करके राठौड़ों के साथ शत्रुता समाप्त कर दी।
- इनके दो पुत्र पृथ्वीराज व जयमल दोनों उत्तराधिकार संघर्ष के झगड़े में मारे गए।
राणा सांगा (1509-1528)
- इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि इन्होंने राजपूताना के सभी शासकों को संगठित किया।
- इनके समय मालवा का सुल्तान नासिरूद्दीन था जिसकी 1511 मे मृत्यु हो गई एवं महमूद खिलजी द्वितीय मेदिनीराय के सहयोग से मालवा का सुल्तान बन गया, इससे मेदिनीराय का मालवा मे प्रभाव बढ गया जिस कारण मालवा के अमीरों ने गुजरात की सहायता से मेदिनीराय की शक्ति को छीन लिया, वह मेवाड की शरम मे आ गया इस कारण मेवाड व मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय के मध्य युद्ध हुआ जिसमे सुल्तान पराजित हुआ।
खातोली का युद्ध- 1517
- इस युद्ध में महाराणा सांगा(संग्राम सिंह) ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को हराया।
- बडी (धौलपुर) के युद्ध में सांगा ने दुसरी बार इब्राहीम लौदी को पराजित किया।
गागरोन का युद्ध - 1519
- राणा सांगा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी व गुजरात की संयुक्त सेना को हराकर सुल्तान को बंदी बनाया।
बयाना का युद्ध - फरवरी 1527
- इस युद्ध में राणा सांगा ने बाबर की सेना को हराकर बयाना का किला जीता, इस युद्ध में हसन खां मेवाती सांगा का सेनापति था।
खानवा का युद्ध - 17 मार्च 1527
- इस युद्ध मे बाबर ने महाराणा सांगा को हराया, इस युद्ध के बाद भारत मैं पहली बार मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई।
- इस युद्ध के अंतिम समय में रायसेन की सिहल्दी ने राणा की सेना को छोड़ दिया और बाबर के पास चली गई।
- राणा सांगा को हिंदूपथ कहा जाता है।
- ऐसा माना जाता है कि इनके शरीर पर 80 गांव थे।
- 30 जनवरी 1528 को सरदारों के जहर देने के कारण सांगा की मृत्यु हो गई।
- मांडलगढ मे सांगा का स्मारक बना हुआ है।
राणा रतनसिंह(1528-1531)
राणा विक्रमादित्य (1531-36)
- इनके शासनकाल में शेरशाह सूरी ने 1534 मे चित्तौड़ पर आक्रमण किया राणा सांगा की रानी कर्णावती ने हुमायूँ को राखी भेजकर सहायता मांगी किंतु हुमायूं नहीं पहुंचा बाघसिंह के नेतृत्व में केसरिया हुआ एवं रानी कर्णावती ने जौहर किया। इसे चित्तौड़ का दूसरा साका माना जाता है।
- इसके कारण उदय सिंह को बूंदी भेज दिया गया था।
बनवीर (1536-1540)
- यह विक्रमादित्य की हत्या करके शासक बना।
- इसने उदय सिंह को भी मारने का प्रयत्न किया किंतु उदयसिंह की धाय माँ पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर उदय सिंह को बचा लिया।
- यह राणा सांगा की बड़े भाई पृथ्वीराज से उत्पन्न दासी पुत्र थे।
- इन्होंने चित्तौड़ दुर्ग में तुलजा भवानी मंदिर एवं नवलखा महल की स्थापना की।
महाराणा उदयसिंह (1540-72)
- इन्होंने मावली के युद्ध में मालदेव के सहयोग से बनवीर को पराजित किया और चित्तौड़ पर अपना अधिकार कर लिया।
- 1540 में कुंभलगढ़ में उदय सिंह का राजतिलक किया गया।
- इन्होंने 1559 में उदयपुर शहर एवं उदयसागर झील का निर्माण करवाया।
- इनके शासनकाल में 1567-68 में अकबर ने आक्रमण कर लिया यह चित्तौड़ दुर्ग का भार जयमल व फत्ता पर छोड़कर अरावली के जंगलों में चले गए।
- इस युद्ध में फत्ता ससोदिया ने केसरिया एवं उनकी पत्नी फुल कंवर ने जौहर किया इसे चित्तौड़ का तीसरा साका माना जाता है। इस विजय के बाद अकबर ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कत्लेआम का आदेश जारी किया जिसमें लगभग 30000 लोग मारे गए इसे अकबर के जीवन का कलंक माना जाता है।
- इनकी अंतिम इच्छा के अनुसार अगला शासक जगमाल सिंह को बनाया गया किंतु कुछ दिनों बाद महाराणा प्रताप ने जगमाल को हटा दिया।
महाराणा प्रताप (1572-1597)
- जन्म- 9 मई 1540
- पिता- उदयसिंह
- माता - जयवन्ता बाई
- प्रिय घोडा - चेतक
- प्रिय हाथी- रामप्रसाद
- 28 फरवरी 1572 में गोगुंदा में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ।
- राज्याभिषेक के समय तलवार बंधाई- कृष्णदास चुणडावत
- उनके भाई जगमाल अकबर की सेवा में चले गए अकबर ने इन्हें जहाजपुर भीलवाड़ा की जागीर प्रदान की।
- जलाल खाँ - सितंबर 1572
- मानसिंह- 1573
- भगवानदास - सितम्बर 1573
- राजा टोडरमल - दिसम्बर 1573
- महाराणा प्रताप में मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया।
हल्दीघाटी का युद्ध - 21 जुन 1576
- यह युद्ध महाराणा प्रताप एवं मुगलो के मध्य हुआ इसमें मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह कर रहे थे, इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना के सेनापति हाकिम खां सुरी थे।
- इस युद्ध में महाराणा प्रताप बुरी तरह घायल हो गए इस कारण इनका स्थान झाला बीदा ने लेकर इन्हें सकुशल युद्ध भूमि से बाहर भेज दिया।
- बलीचा गांव के पास चेतक का देहांत हो गया यही चेतक की छतरी बनी हुई है।
- कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को मेवाड का थर्मोपोली कहा।
- इस युद्ध का आंखों देखा वर्णन बदायूनी ने किया।
- 13 अक्टूबर 1576 को अकबर स्वयं अभियान पर आया कितू महाराणा प्रताप को पकड़ने में असमर्थ रहा।
- 1577 1578 और 1579 में अकबर ने शाहबाज खान के नेतृत्व में सेना भेजी 1578 में शाहबाज खान ने कुंभलगढ़ पर अधिकार किया किंतु महाराणा प्रताप को पकड़ने में असमर्थ रहा।
- भामाशाह ने चूलिया गांव में महाराणा प्रताप की आर्थिक सहायता की।
- उसके बाद महाराणा प्रताप ने रामा महासहानी के स्थान पर भामाशाह को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
- प्रताप ने बदराणा उदयपुर में हरिहर मंदिर का निर्माण करवाया।
दिवेर युद्ध-1582
- महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह ने अकबर की दिवेर चौकी के पर आक्रमण कर सुल्तान खान पर आक्रमण किया एवं विजय रहे।
- कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहां।
- 1585 में प्रताप ने लूना चावण्डिया को हराकर चावंड पर अधिकार किया एवं चावंड को अपनी राजधानी बनाया।
- प्रताप ने चावल में चामुंडा माता जी के मंदिर का निर्माण करवाया।
- महाराणा प्रताप में मृत्यु से पूर्व चित्तौड़गढ़ व मांडलगढ़ को छोड़कर अन्य समस्त मेवाड़ को पुनः अपने अधीन कर लिया।
- 19 जनवरी 1597 में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई।
अमरसिंह प्रथम (1597-1620)
- 1599 अकबर ने शहजादा सलीम के नेतृत्व में सेना भेजी किंतु असफल रहा।
- 1605 में परवेज के नेतृत्व में सेना भेजी किंतु यह भी असफल रहा।
- 1608 में जहांगीर ने मोहब्बत खां के नेतृत्व में अमर सिंह के विरुद्ध सेना भेजी थी असफल रहा।
- 1613 में जहांगीर स्वयं अमर सिंह के विरुद्ध अभियान पर आया।
मुगल मेवाड संधि-1615
- इस संधि के लिए मुगलों की ओर से शकुंतला शिवाजी एवं सुंदर दास को भेजा गया एवं मेवाड़ की ओर से हरिदास झाला एवं कुंभकरण को भेजा गया।
- मेवाड़ की ओर से महाराणा अमर सिंह एवं मुगलों की ओर से शहजादा खुर्रम के द्वारा संधि पत्र पर हस्ताक्षर किए गए।
- अमर सिंह के शासनकाल को चावण्ड चित्र शैली का स्वर्ण काल माना जाता है।
महाराणा कर्णसिंह (1620-28)
- 1622 मे इन्होंने शहजादा खुर्रम को जग मंदिर में शरण दी।
महाराणा जगत सिंह प्रथम (1628-52)
- उन्होंने उदयपुर में जगदीश मंदिर का निर्माण करवाया जिसे सपनों का मंदिर भी कहा जाता है।
- इन्होंने जग मंदिर को पूर्ण करवाया।
- इन्होंने चित्तौड़ दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया, इससे नाराज होकर शाहजहां ने शाहपुरा वह प्रतापगढ़ को मेवाड़ से अलग करके स्वतंत्र रियासत का दर्जा दिया एवं इसका शासक सुजान सिंह को नियुक्त कर दिया।
- इनके कार्यकाल को मेवाड़ चित्रकला का स्वर्ण काल कहा जाता है इन्होने चितेरो की ओवरी का निर्माण करवाया इसे तस्वीरा रो कारखानों भी कहा जाता है।
महाराणा राजसिंह (1652-80)
- इन्होने चित्तौड़गढ़ दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया किंतु शाहजहां ने सादुल्ला खाँ के नेतृत्व मे 30000 की सेना भेजकर इसमे किए गए नवीन कार्यो को ध्वस्त कर दिया।
- इन्होंने राजनगर कस्बा बसाया।
- इन्होंने राजनगर मे गोमती नदी पर राजसमंद झील का निर्माण करवाया।
- इन्होंने राजसमंद झील पर राज प्रशस्ति उत्कीर्ण करवाई यह विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति है, इसकी रचना रणछौड भट्ट तैलंग ने की।
- इन्होंने सिहाड गांव में श्रीनाथजी मंदिर का निर्माण करवाया।
- इन्होंने कांकरोली में राजसमंद में द्वारिकाधीश मंदिर का भी निर्माण करवाया।
- इन्होने किशनगढ़ की राजकुमारी चारूमती से विवाह कर लिया जिसका विवाह औरंगजेब से होना था।
- इनकी रानी रामरस दे ने त्रिमुखी बावड़ी का निर्माण करवाया।
- इन्होने 1679 मे औरंगजेब द्वारा लगाये गए जजिया कर का विरोध किया, ऐसा करने वाला यह एकमात्र हिन्दू शासक था।
- इन्होने वीर दुर्गादास राठौड अजीतसिंह को शरण दी।
महाराणा जयसिंह प्रथम (1680-98)
- इन्होने गोमती नदी का पानी रोककर जयसमन्द झील का निर्माण करवाया।
महाराणा अमरसिंह द्वितीय (1698-1710)
- इनके शासनकाल मे सैन्य कर कठोरता से वसुल किया गया इस कारण 200 भाटो ने आत्महत्या कर दी।
- 1708 मे सवाई जयसिंह, अजीतसिंह एवं महाराणा अमरसिंह के मध्य समझौता हुआ।
महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय (1710-34)
- इन्होने वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण करवाया एवं वैद्यनाथ प्रशस्ति की रचना करवाई।
- इन्होने उदयपुर मे सहेलियों की बाडी का निर्माण करवाया।
महाराणा जगतसिह द्वितीय (1734-51)
- इन्होने पिछोला झील में जगनिवास महल का निर्माण करवाया।
- इन्होने सर्वप्रथम मेवाड मे प्रवेश कर लगाया।
- इन्हे हुरडा सम्मेलन का अध्यक्ष बनाया गया।
- दिल्ली पर नादिरशाह के आक्रमण के समय मेवाड के शासक यही थे।
- बाजीराव प्रथम ने इनसे चौथ कर वसुल किया था।
महाराणा भीमसिंह (1778-1828)
गिंगोली का युद्ध-1807
- मारवाड़ के शासक मानसिंह व जयपुर के शासक जगतसिह द्वितीय के मध्य कृष्णाकुमारी से विवाह को लेकर युद्ध हुआ।
- अमीर अमीर खाँ पिंडारी एवं अजीतसिंह चुणडावत की सलाह पर महाराणा भीमसिंह ने कृष्णा कुमारी को जहर देकर यह विवाद समाप्त किया।
- 1818 मे इन्होने अंग्रेजो से सहायक संधि कर ली।
जवान सिंह (1828-38)
सरदार सिंह (1838-42)
महाराणा स्वरूप सिंह (1842-61)
- इन्होने विजयस्तम्भ के जीर्णोद्धार करवाया।
- इन्होने सती प्रथा, डाकिन प्रथा व समाधि प्रथा पर प्रतिबंध लगाया।
- 1861 मे एंजाबाई इनके साथ सती हुई।
शंभु सिंह (1861-74)
- इनकी आयु कम होने के कारण शासन को प्रभावी रूप से संचालित करने हेतु रिजेंसी काउन्सिल की स्थापना की गई।
- इन्होने शंभुरत्न पाठशाला का निर्माण करवाया।
- इन्होने सर्वप्रथम पक्की सडको का निर्माण करवाया।
महाराणा सज्जनसिंह (1874-84)
- इन्होने 1877 मे देतकारिणी सभा की स्थापना की इसका उद्देश्य विवाह मे होने वाले फिजुलखर्च को रोकना था।
- 1877 मे इन्होने लाॅर्ड लिटन के काल मे आयोजित दिल्ली दरबार में भाग लिया था।
- 1878 मे इन्होने अंग्रेजो से नमक समझौता किया जिसके अंतर्गत मेवाड के नमक के समस्त स्त्रोतों पर अंग्रेजो का अधिकार हो गया।
- इन्होने सज्जन यंत्रालय नामक छापाखाना की स्थापना की जिसमे सज्जन किर्ति सुधाकर नामक साप्ताहिक समाचार पत्र छपता था यह राजस्थान का प्रथम साप्ताहिक समाचार पत्र था।
- इनके काल मे स्वामी दयानन्द सरस्वती ने मेवाड की यात्रा की।
महाराणा फतहसिंह (1884-1921)
- 1899 मे इन्ही के काल मे छप्पनिया अकाल पडा था।
- यह 1903 मे अंग्रेजो द्वारा आयोजित दिल्ली दरबार मे जाने निकले किंतु केसरीसिंह बारहठ ने इन्हे पत्र लिखा जिसे चेतावनी रा चुंगटिया कहा जाता है इसे पढने के बाद यह दिल्ली दरबार मे नही गए।
- ड्युक ऑफ क्नोट ने इन्ही के काल मे मेवाड यात्रा की।
भुपालसिंह (1921-56)
- यह लकवाग्रस्त थे।
- इनके काल मे उदयपुर का संयुक्त राष्ट्र संघ मे विलय हो गया।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
मेवाड व जयपुर मे उत्तराधिकार शुष्क को नजराना एवं कुछ रियासतो मे कैद खालसा व तलवार बंधाई कहा जाता था।
मेवाड़ में सामंतों की तीन श्रेणियां होती थी जिन्हें उमराव कहा जाता था-
1) प्रथम श्रेणी मे 16 सामंत थे जिनमे सलुम्बर के सामंत का विशेष स्थान था।
2) द्रितीय श्रेणी में 32 सामंत थे।
3) तृतीय श्रेणी में करीब 100 सामंत थे।
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