". आमेर का कछवाहा वंश ~ Rajasthan Preparation

आमेर का कछवाहा वंश


आमेर का कच्छवाहा वंश

  • 1612 आमेर शिलालेख एवं सुर्यमल्ल मिश्रण के अनुसार कच्छवाहा वंश के शासक सुर्यवंशी है, इनकी उत्पत्ति भगवान राम के पुत्र कुश से हुई है।

दुल्हेराय/तेजकरण 

  • इन्होने सर्वप्रथम 1137 ई मे बडगुजरो को पराजित कर दौसा को अपनी राजधानी बनाया।
  • इन्होने अपनी दुसरी राजधानी मीणाओ को पराजित कर जमवारामगढ को बनाया।
  • इन्होंने जमवारामगढ़ में रामगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।
  • इन्होने गैता मीणा को पराजित कर गैटोर पर अधिकार किया।
  • इन्होने झोटवाडा पर भी अधिकार किया।
  • इन्ही के काल में कवि कल्लोल द्वारा ढोला मारू रा दूहा नामक रचना की गई।

कोकिलदेव (1207)

  • इन्होंने भट्टी मीणा को पराजित करके आमेर पर अधिकार किया एवं आमेर को अपनी राजधानी बनाया।

राजदेव/रामदेव(1237)

  • इन्होंने कदमी पैलेस का निर्माण करवाया इसी में कछुआ वंश का राजतिलक किया जाता है।

पृथ्वीसिंह कच्छवाहा (1527)

  • इन्होने 1527 मे राणा सांगा का सहयोग किया एवं खानवा के युद्ध में मारा गया।
  • इनकी रानी बालाबाई के कहने पर इन्होने अपने छोटे बेटे पूर्णमल्ल को उत्तराधिकारी घोषित किया।
  • बालाबाई के गुरू कृष्णदास पयहारी ने गलता मे रामानंदी पीठ की स्थापना की।
  • पृथ्वीराज ने आमेर मे लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण करवाया।
  • इन्होंने अपने राज्य की सामंत व्यवस्था को अपने 12 पुत्रो में विभाजित किया इसे 12 कोटडी व्यवस्था कहा जाता है।

पूर्णमल्ल (1527-33)

भीमदेव (1533-36)

रतनसिंह (1536-47)

  • उन्होंने 1544 में शेरशाह सूरी की अधिनता स्वीकार कर ली।

भारमल (1547-74)

  • 1556 में इन्होंने मजनू खान की सहायता से अकबर से पहली मुलाकात की।
  • 1562 में इन्होंने चंग ताई खान की सहायता से अकबर से दूसरी बार मुलाकात की है
  • 6 फरवरी 1562 को अकबर को अजमेर से लौटते वक्त सांभर में रोककर भारमल ने अपनी पुत्री हरखा बाई का विवाह करके मुगलों के साथ प्रथम वैवाहिक संबंध स्थापित कीए, ऐसा करने वाला यह प्रथम राजपुत शासक था।
  • अकबर ने भारमल को अमीर ऊल उमरा एवं राजा की उपाधि प्रदान की।
  • अकबर ने भारमल को 5000 का मनसबदार बनाया।

भगवन्तदास (1573-89)

  • यह अकबर की सेवा मे ही रहे, 7 वर्षो तक यह पंजाब के सुबेदार रहे।
  • इन्होंने 1585 मे अपनी पुत्री मानबाई का विवाह अकबर के पुत्र सलीम के साथ किया।
  • मानबाई से उत्पन्न पुत्र खुशरो सिखों के पांचवें धर्मगुरु अर्जुनदेव जी की मौत का कारण बना।

मानसिंह प्रथम (1589-1614)

  • 1562 ईस्वी में यह अकबर की सेवा में नियुक्त हुआ, तब इनकी आयु मात्र 12 वर्ष थी।
  • अकबर ने मानसिंह को फर्जंद एवं राजा की उपाधि प्रदान की, एवं इन्हे 7000 का मनसब प्रदान किया गया।
  • 1569 मे रणथंभौर के शासक सुर्जन हाडा को मुगल अधिनता स्वीकार कराने मे इनकी अहम भुमिका रही।
  • 1572 में गुजरात के शासक शेर खान को पराजित किया।
  • 1573 में इसने डूंगरपुर के शासक आसकरण को  पराजित किया।
  • 1573 में इसने उदयसागर झील के किनारे महाराणा प्रताप को अकबर के अधीन आने के लिए समझाया।
  • 1576 में इसने महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व किया।
  • 1585 में अकबर ने मानसिंह को काबुल का सूबेदार नियुक्त किया।
  •  इसे 3 बार बंगाल का सूबेदार बनाया गया।
  • अहमदनगर अभियान से लौटते समय एलिचपुर (महाराष्ट्र) नामक स्थान पर इनकी मृत्यु हो गई।
  • बिहार में इन्होंने मानपुर कस्बा बसाया।
  • पटना (बिहार) मे इन्होने भवानी मंदिर का निर्माण करवाया।
  • इन्होने वृंदावन मे राधागोविन्द मंदिर का निर्माण करवाया।
  • इन्होंने आमेर में शिला देवी के मंदिर का निर्माण करवाया।
  • मान सिंह की पत्नी कनकावती में अपने पुत्र जगत सिंह की स्मृति में जगत शिरोमणि मंदिर का निर्माण करवाया।
  • यही ब्लू पॉटरी कला को काबुल से आमेर लाए थे।
  • इन्होने बैराठ मे पंचमहला का निर्माण करवाया।
  • इन्होने पुष्कर में मानमहल का निर्माण करवाया।

प्रमुख साहित्यकार एवं साहित्य 

  • मान प्रकाश - मुरारीदान

भाव सिंह- (1614-21)

मिर्जा राजा जयसिंह (1621-67)

  • पिता- महासिंह
  • इन्होंने तीन मुगल बादशाह जहांगीर शाहजहां एवं औरंगजेब की सेवा की।
  • 1623 मे जहांगीर ने इन्हे अहमदनगर अभियान पर मलिक अम्बर के विरुद्ध भेजा।
  • 1630 मे इन्होने खान ए जहां लोदी के विद्रोह को दबाया
  • शाहजहां ने 1637 मे इन्हे मिर्जा राजा की उपाधि प्रदान की।
  • 1658 मे इन्होने उत्तराधिकार संघर्ष मे धरमत के युद्ध में दाराशिकोह का साथ दिया।
  • 1659 मे इन्होने उत्तराधिकार संघर्ष के देवराई के युद्ध में औरंगजेब का साथ दिया।
  • 11 जून 1665 को मिर्जा राजा जयसिंह एवं छत्रपति शिवाजी के मध्य पुरंदर की संधि हुई, इसके अंतर्गत शिवाजी ने मुगलों की अधीनता स्वीकार की।
  • बर्नियर में अपनी पुस्तक ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर मैं लिखा है कि औरंगजेब मिर्जा राजा जयसिंह को बनबा कहकर पुकारता था।
  • 1665 मे इन्हे बीजापुर अभियान पर सुल्तान आदिलशाह के विरुद्ध भेजा, किंतु यह असफल रहे।
  • इन्होंने जयगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।
  • इन के शासनकाल में कवि बिहारी ने बिहारी सतसई की रचना की ऐसा माना जाता है कि मिर्जा राजा जयसिंह कवि बिहारी को प्रत्येक श्लोक पर एक स्वर्ण असर्फी देते थे।
  • राय कवि ने जयसिंह चरित्र की रचना इन्हीं के काल मे की।

रामसिंह प्रथम (1667-82)

  • औरंगजेब ने शिवाजी को इन्हीं की हवेली में नजरबंद करके रखा।

बिशनसिंह (1682-1700)

  • यह प्रथम शासक था जिसने आमेर की किलेबंदी की।

सवाई जयसिंह (1700-1743)

  • जन्म - 03 दिसम्बर 1688
  • औरंगजेब ने इन्हें सवाई की उपाधि प्रदान की।
  • जून 1707 के आजम व मुअज्जम के उत्तराधिकारी युद्ध जाजऊ के युद्ध में सवाई जयसिंह ने आजम का साथ दिया किंतु मुअज्जम विजयी रहा एवं बहादुर शाह के नाम से अगला शासक बना।
  • बहादुर शाह प्रथम ने शासक बनते ही सवाई जय सिंह को राज्य विहीन कर दिया।
  • मई 1708 को सवाई जयसिंह मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह द्वितीय एवं मारवाड़ के महाराजा अजीत सिंह के मध्य देबारी में समझौता हुआ जिसके अंतर्गत मेवाड़ महाराणा अमर सिंह तृतीय ने इन्हें राज्य पुनः लौटाने में सहायता की।
  • फर्रूखशियर ने इन्हे 1713 में मालवा का सुबेदार बनाया।
  • 1729 मे इन्होने बुंदी के प्रशासन मे हस्तक्षेप किया इस कारण बुंदी की रानी ने मराठों को राजस्थान मे आमंत्रित किया।
  • मुहम्मद शाह रंगीला ने 1729 में इन्हें मालवा अभियान पर भेजा किंतु यह पुन: लौट आए और इन्होंने सलाह दी कि आप मराठों के साथ संधि कर ले।
  • 1732 मैं इन्हें फिर से मालवा अभियान पर भेजा किंतु मंदसौर के युद्ध में यह मराठों से पराजित हुए।
  • 17 जुलाई 1734 में इन्होंने मराठो के विरुद्ध हुरडा सम्मेलन का आयोजन किया, 
  • 1722 में इसने जाट विद्रोह का दमन किया।
  • इसने 1734 व 1742 में दो बार अश्वमेध यज्ञ किया अश्वमेध यज्ञ करने वाला यह अंतिम हिंदू शासक था, इस यज्ञ का वास्तुकार पुंडरीक विट्ठल था इसने जयसिंह कल्पद्रुम की रचना की।
  • इसने दिल्ली, जयपुर, मथुरा, वाराणसी एवं उज्जैन में  वैधशालाओ का निर्माण करवाया इनमें से सबसे बड़ी वेधशाला जंतर मंतर जयपुर में है,  जंतर मंतर को जुलाई 2010 मे विश्व विरासत सुची मे शामिल किया गया है।
  • चंद्र महल का निर्माण करवाया।
  • इन्होंने अश्वमेध यज्ञ में आए हुए ब्राह्मणों के विश्राम हेतु मानसागर झील में जल महल का निर्माण करवाया
  • 1734 मे इन्होने मराठों से सुरक्षा हेतु नाहरगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।
  • इन्होने सिसोदिया रानी के महल का निर्माण करवाया।
  • इन्होंने जयगढ़ दुर्ग में जयबाण तोप का निर्माण करवाया।
  • इन्होने 1727 मे जयपुर शहर की स्थापना की, इसका वास्तुकार पंडित विद्याधर भट्टाचार्य था सवाई जयसिंह ने इसे अपनी राजधानी बनाया।
  • इन्होंने नक्षत्रों की शुद्ध सारणी ग्रंथ की रचना करवाई जिसका नाम जीज मुहम्मदशाही रखा गया।
  • इन्होंने जयसिंह कारिका का ग्रंथ की रचना की।
  • इन्होंने नागा साधुओं से ससस्त्र सैन्य सहायता ली।
  • मुहम्मद शाह रंगीला ने इन्हे राजराजेश्वर व श्रीराजाधिराज की उपाधि प्रदान की।
  • रक्त विकार के कारण इनकी मृत्यु हो गई।
  • इन्होने 7 मुगल शासको का कार्यकाल देखा।

ईश्वरी सिंह (1743-50)

  • 1747 में इनके भाई माधो सिंह ने राजमहल टोंक में इनके साथ युद्ध किया किंतु यह विजयी रहे, इस विजय के उपलक्ष में उन्होंने त्रिपोलिया बाजार में अष्टकोणीय विजय स्तंभ का निर्माण करवाया, इसे ईसरलाट या सरगासुली कहा जाता है।
  • 1748 में इन्होंने अहमद शाह अब्दाली को पराजित किया।
  • 1750 में इनके भाई माधोसिंह के साथ बगरू के युद्ध में यह पराजित हुए।
  • 1750 में इन्होने अपने तीन रानियों के साथ ईसरलाट से कूदकर आत्महत्या कर ली।

माधोसिंह (1750-68)

  • इन्होने धोखे से 5000 मराठों का कत्ले-आम करवा लिया।
  • 1759 मे कांकोड के युद्ध मे इन्होने मराठो को पराजित किया।
  • 1761 मे भटवाडा के युद्ध में कोटा शासक शत्रुसाल ने इन्हे पराजित किया।
  • 1765 मे इन्होने सवाई माधोपुर शहर की स्थापना की।
  • 1767 मे इन्होने मावला मण्डोली मे भरतपुर शासक जवाहर सिंह को पराजित किया।
  • इन्होंने शील की डूंगरी चाकसू जयपुर में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाया।
  • इन्होंने मोती डूंगरी के महलो का निर्माण करवाया।

सवाई प्रतापसिंह (1768-1803)

  • इनके दरबार मे 22 ज्योतिषी, 22 संगीतकार एवं 22 साहित्यकार थे इन्हें गंधर्व बाईसी या गुणिजनखाना कहा जाता था।
  • प्रतापसिंह ब्रजनिधि के नाम से साहित्य रचना करते थे।
  • इन्होने राधागोविन्द संगीतासार ग्रंथ की रचना करवाई इसकी रचना बृजनाभ ने की।
  • 1799 मे इन्होने हवामहल का निर्माण करवाया।

तुंगा का युद्ध (1787)

  • इस युद्ध में इन्होने मराठा सरदार महादजी सिंधिया को पराजित किया।
  • इस युद्ध के बाद महादजी सिंधिया ने कहा था की अगर मे जीवित रहा तो जयपुर को मिट्टी मे मिला दुंगा।

पाटन का युद्ध (1790)

  • इस युद्ध में महादजी सिंधिया ने इन्हे पराजित किया।
  • इस युद्ध के बाद मराठो ने जयपुर से प्रतिवर्ष चौथ लेने की संधि की।
  • 1800 मे मराठो ने सवाई प्रतापसिंह एवं मारवाड़ की संयुक्त सेना को पराजित किया।

सवाई जगतसिह द्वितीय (1803-18)

  • रसकपुर नामक गणिका के साथ संबंध होने के कारण इन्हें जयपुर का बदनाम शासक भी कहा जाता है।
  • 1807 मे इन्होने कृष्णाकुमारी विवाद के अंतर्गत मारवाड शासक मानसिंह के साथ गिंगोली का युद्ध किया।
  • 1818 मे इन्होने अंग्रेजो से सहायक संधि की।

जगत सिंह तृतीय (1818-1835)

रामसिंह द्वितीय (1835-80)

  • यह 16 माह की आयु में शासक बने।
  • जाॅन लुडलो इनके संरक्षक थे।
  • इन्होने जयपुर मे महाराजा विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया।
  • इन्होने जयपुर मे मदरसा ए हुनरी का निर्माण करवाया जिसे राजस्थान स्कुल ऑफ आर्ट भी कहा जाता है।
  • इन्होने उत्तर भारत के एकमात्र थिएटर रामप्रकाश थिएटर की स्थापना की।
  • इन्होने रामनिवास बाग की स्थापना की एवं इसमे अल्बर्ट हाॅल का निर्माण शुरू करवाया।
  • इन्होने रामबाग पैसेस का भी निर्माण करवाया।
  • इन्होने 1857 की क्रांति मे अंग्रेजो का साथ दिया इसलिए अंग्रेजो ने इन्हे सितार ए हिन्द की उपाधि एवं कोटपुतली की जागीर दी।
  • इन्होने प्रिंस अल्बर्ट के आगमन पर जयपुर को गुलाबी रंग से रंगवाया।
  • स्टेन्ले रीड द्वारा लिखी गई पुस्तक द राॅयल टाउन ऑफ इण्डिया मे पहली बार जयपुर को पिंक सीटी कहा गया।

माधोसिंह द्वितीय (1880-1922)

  • इन्हे बब्बर शेर कहा जाता था।
  • इन्होने अपनी 9 पासवानो के लिए नाहरगढ दुर्ग मे एक समान नौ महलो का निर्माण करवाया।
  • 1887 मे इनके काल मे ब्रेडफाॅर्ड ने अल्बर्ट हाॅल का उद्घाटन किया।
  • इन्होने भारतीय हिन्दु विश्वविद्यालय हेतु मदन मोहन मालवीय को 5 लाख रूपये का चंदा दिया।
  • यह एडवर्ड सप्तम के राज्यअभिषेक के लिए लंदन गए, यह गंगाजल ही ग्रहण करते थे इस कारण इन्होने लंदन जल ले जाने हेतु चांदी के विश्व के दो सबसे बडे पात्रो का निर्माण करवाया।
  • इन्होने चंद्र महल में मुबारक महल का निर्माण करवाया।

सवाई मानसिंह द्वितीय (1922-56)

  • यह पोलो के विश्व प्रसिद्ध खिलाड़ी थे, इसलिए इन्हें पोलो का पेले कहा जाता है।
  • इन्हे वृहद राजस्थान का राजप्रमुख बनाया गया।
  • यह स्पेन मे भारत के राजदुत भी रहे।

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