". चौहान वंश ~ Rajasthan Preparation

चौहान वंश


चौहान वंश - अजेमर, रणथंभौर, जालौर, सिरोही व हाड़ौती

  • जयानक की पृथ्वीराज विजय के अनुसार चौहान वंश की स्थापना चाहमान ने की।

अजेमर के चौहान वंश

वासुदेव चौहान (551)

  • चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव चौहान को माना जाता है।
  • बिजौलिया शिलालेख के अनुसार इसने सांभर झील का निर्माण करवाया व सांभर नगर का भी निर्माण करवाया।

गुवक प्रथम

  • यह नागभट्ट द्वितीय का सामंत था नागभट्ट ने इसे वीर की उपाधि प्रदान की।
  • इसने हर्षनाथ मंदिर का निर्माण शुरू करवाया।

चंदन राज द्वितीय

  • इसकी रानी आत्मप्रभा ने कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए पुष्कर झील के किनारे 1000 शिवलिंग बनवाएं व 1000 दीपक जलाएं।

वाक्पतिराज प्रथम

  • इसे 188 युद्धों का विजेता माना जाता ह।
  • इसने महाराजा की उपाधि धारण की थी।

सिंहराज

  • सिंहराज से पूर्व के शाकंभरी के चौहान गुर्जर प्रतिहार वंश के सामंत हुआ करते थे। किंतु सिंहराज ने स्वयं को मुक्त करके अपने अलग राज्य की स्थापना की।
  • इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
  • इसने हर्षनाथ मंदिर को पूर्ण करवाया इसलिए इसे हर्षनाथ मंदिर का निर्माता कहा जाता है।

विग्रहराज द्वित्तीय 

  • उपाधि- परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर
  • 956 इस्वी में यह शासक बना।
  • इसने हर्षनाथ मंदिर पर हर्षनाथ अभिलेख की रचना करवाई जिसमे सिंहराज तक के शासको का उल्लेख मिलता है।

इसने आशापुरा देवी के दो मंदिर बनवाए।

  1. सांभर मे
  2. भडौच (गुजरात)
  •  अन्हिलवाडा (गुजरात) पर आक्रमण किया व चालुक्य शासक मुलराज प्रथम को पराजित किया।

वाक्पतिराज द्वितीय 

  • इसके पुत्र लक्ष्मण ने नाडौल मे चौहान वंश की स्थापना की।

विग्रहराज तृतीय 

  • इसने महासत्या नामक विधवा का अपहरण किया।

पृथ्वीराज प्रथम

  • इसके शासनकाल मे जीणमाता अभिलेख की रचना हुई।

अजयराज  चौहान (1105-33)

  • पिता - पृथ्वीराज प्रथम
  • इसने अजयप्रिय द्रुंभ नाम के सिक्के चलाए।
  • इसके सिक्को पर रानी सोमलवती का भी उल्लेख मिलता है।
  • इसने अजयमेरू नगर की स्थापना की व इसे अपनी राजधानी बनाया।
  • इसने गठबीठली पहाड़ी पर गठबिठली दुर्ग का निर्माण करवाया इसे अजयमेरु एवं तारागढ़ दुर्ग भी कहा जाता है।
  • इसने आबु के परमार शासक नरवर्मन को पराजित किया।
  • इसने अन्हिलवाडा गुजरात के शासक मूलराज द्वितीय को पराजित किया।
  • यह अपने जीवन के अंतिम काल में अपने पुत्र अर्णोराज को सिंहासन सौपकर स्वयं पुष्कर चला गया।
  • यह शिव का अनुयायी था किंतु इसने अजयमेरू मे जैन मंदिर निर्माण की अनुमति दी एवं पार्श्वनाथ मंदिर मे सोने का कलश चढाया।

अर्णोराज (1133-55)

  • अन्य नाम- आनाजी।
  • बिजोलिया शिलालेख के अनुसार इसने तुर्कों के खून से सनी धरती को धोने के लिए 1133-37 मे आनासागर झील का निर्माण करवाया।
  • इसने पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया।
  • इसने अन्हिलवाडा के शासक जयसिंह सिद्धराज को पराजित किया व जय सिंह ने अपनी पुत्री कंचन देवी का विवाह अर्णोराज के साथ किया।
  • गुजरात के चालुक्य शासक कुमारपाल ने 1145 ई मे अर्णोराज को पराजित किया एवं अर्णोराज की पुत्री जल्हण से विवाह किया।
  • जैन धर्म का एक पंथ है खतरगच्छ जिसे इसने भुमिदान दी।
  • उसके पुत्र जगदेव ने इसकी हत्या कर दी।

विग्रहराज चतुर्थ- (1158-63)

  • उपाधि - कवि बान्धव, कटिबंधु
  • इसने तोमर को हराकर दिल्ली जीता था दिल्ली पर विजय प्राप्त करने वाला यह प्रथम चौहान शासक था।
  • इसने गजनी के शासक खुशरव शाह को पराजित किया
  • उसने भंडानिको का दमन किया।
  • यह बिसलदेव के नाम से अपनी रचनाएं  लिखते थे इन्होंने हरिकेली नाटक की रचना की।
  • जयानक भट्ट ने इन्हें कवि बांधव की उपाधि प्रदान की।

इनके प्रमुख साहित्यकार एवं उनके साहित्य 

  • नरपति नाल्ह - बिसलदेव रासौ
  • सोमदेव - ललित विग्रहराज
  • इन्होंने अजमेर में सरस्वती कंठाभरण नामक संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया जिस पर इसने हरिकेली नाटक की कुछ पंक्तियाँ उत्कीर्ण करवाई किंतु बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने अढाई दिन के झोपड़े में परिवर्तित कर दिया।
  • इसने बीसलपुर नगर का निर्माण करवाया।
  • इसने बीसलपुर बांध का निर्माण करवाया।
  • धर्मघोषसुरी के कहने पर इन्होंने पशु वध पर रोक लगा दी थी।

पृथ्वीराज द्वितीय 

  • इनकी रानी सुहावा देवी ने मेनाल भीलवाड़ा में भुमिज शैली के सुहावेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया।

सोमेश्वर चौहान (1169-1179)

  • इनके शासनकाल में ही 1170 में जैन श्रावक लोलाक ने बिजोलिया शिलालेख लिखवाया।

पृथ्वीराज चौहान तृतीय 

  • पिता-सोमेश्वर चौहान 
  • माता - कर्पूरी देवी
  • उपाधि - दलपुंगल, रायपिथौरा
  • 1178 मे इसने गुडगाँव के युद्ध में अपने चाचा नागाअर्जुन के विद्रोह का दमन किया।

तुमुल का युद्ध- 1182

  • इस युद्ध मे पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने महोबा शासक परमर्दीदेव को पराजित किया एवं परमर्दीदेव के वीर सेनापति आल्हा व ऊदल मारे गए।
  • 1184 मे नागौर के युद्ध में इसने चालुक्य शासक भीम द्वितीय को पराजित किया।

तराइन का प्रथम युद्ध - 1191

 पृथ्वीराज तृतीय एवं मुहम्मद गौरी के मध्य यह युद्ध हुआ जिसमे पृथ्वीराज की विजय हुई। 

तराइन का द्वितीय युद्ध - 1992 

 पृथ्वीराज तृतीय एवं मुहम्मद गौरी के मध्य यह युद्ध हुआ जिसमे मुहम्मद गौरी की विजय हुई, एवं इसके साथ ही तुर्को का भारत मे प्रवेश हो गया।

  • इनकी छतरी गजनी मे बनी हुई है।

रणथंभौर का चौहान वंश

गोविन्द राज तृतीय 

  • यह पृथ्वीराज चौहान तृतीय का पुत्र था।
  • इसने 1194 मे रणथंभौर मे चौहान वंश की स्थापना की।

वल्लन देव चौहान 

  • इल्तुतमिश ने रणथंभौर पर आक्रमण करके इसको पराजित कर लिया एवं दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

वाग्भट्ट 

  • इसने रणथंभौर दुर्ग पर पुनः अधिकार किया।

हम्मीर देव चौहान (1282-1301)

  • पिता - जयसिम्हा
  • इन्होने अपने पिता जयसिंम्हा की स्मृति में रणथंभौर मे 32 खम्भो कि छतरी का निर्माण करवाया इसे न्याय कि छतरी भी कहा जाता है।
  • इसने अपनी पुत्री के नाम पर पद्मला तालाब का निर्माण करवाया।
  • इसने मेवाड के शासक समरसिंह को पराजित किया।
  • इसने सबसे पहला आक्रमण भीमरस के राजा अर्जुनदेव पर किया एवं उसे पराजित किया।
  • इसने कोटियजन यज्ञ करवाया।
  • 1291 मे जलालुद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया किंतु सफल नही हुआ इस कारण उसने कहा की ऐसे सौ दौर्गो को मे अपनी डाढी के एक बाल के बराबर भी नही समझता।
  • इसने अलाउद्दीन खिलजी के दुश्मन मोहम्मद शाह एवं केहब्रु को शरण दी इस कारण अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 मे रणथंभौर पर आक्रमण कर दिया इस युद्ध मे अलाउद्दीन ने हम्मीर के सेनापति रणमल एवं रतिपाल को अपनी ओर मिला लिया इस कारण अलाउद्दीन खिलजी की विजय हुई।
  • 1299 मे पहले भी अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया किंतु असफल रहा।
  • इस युद्ध में हम्मीर देव के सेनापति रणमल व रतिपाल ने इसके साथ विश्वासघात किया।
  • इस युद्ध के बाद रंगदेवी व हम्मीर देव की पुत्री ने पद्मला तालाब में जल जौहर किया इसे राजस्थान का प्रथम साका माना जाता है।
हम्मीर महाकाव्य- नयनचन्द्र सुरि
हम्मीर हठ - चंद्रशेखर
हम्मीर रासौ - जोधराज

जालौर का चौहान वंश

किर्तिपाल चौहान 

  • इसने जालौर मे चौहान वंश की 1181 मे स्थापना की व जालौर को अपनी राजधानी बनाया।
  • 1182 मे इसकी मृत्यु हो गई।

समरसिंह (1182-1205)

  • इसने चालुक्यों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए।

उदयसिंह(1205-57)

  • इसके समय दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने जालौर पर 2 बार आक्रमण किए किंतु असफल रहा।
  • दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद ने भी आक्रमण किए किंतु यह भी असफल रहा।

चाचिग देव (1257-82)

सामंतसिंह (1282-96)

  • इसने अपनी मृत्यु से पुर्व ही सिंहासन अपने पुत्र कान्हडदेव को सौप दिया।

कान्हडदेव चौहान (1305-1311)

  • यह अलादुद्दीन की सेना को मार्ग प्रदान करने के सवाल पर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के साथ संघर्ष में आया, जो जालोर के माध्यम से गुजरात पर हमला करने के रास्ते में था। 1305 ई. में, अलाउद्दीन ने अपने सेनापति अयन-उल-मुल्क मुल्तानी को जालोर भेजा। मुल्तानी कान्हद देव को दिल्ली आने के लिए मनाने में कामयाब रहे। कान्हड़ देव को दरबार का वातावरण अपने स्वाभिमान के लिए अपमानजनक लगा। वह दिल्ली दरबार से निकल कर वापस जालोर आ गया। उनके इस कृत्य से अलाउद्दीन के साथ उनके संबंधों में खटास आ गई, जिससे उनके बीच संघर्ष हुआ। नैंसी के अनुसार, दोनों के बीच संघर्ष का कारण वीरमदेव का अलाउद्दीन की बेटी फिरोजा से शादी करने से इनकार करना था। वीरम देव कान्हद देव का पुत्र था। 
  • इनके शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व मे 1308 मे सिवाणा पर आक्रमण किया।
  • इस युद्ध में सिवाणा शासक शीतलदेव चौहान के दरबारी भावले सरदार के विश्वासघात के कारण शीतलदेव पराजीत हुए एवं सिवणा का प्रथम शाका हुआ।
  • 1311 मे अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर पर आक्रमण किया एवं विजय प्राप्त की। इस युद्ध में दहिया सरदार बीका ने कान्हडदेव के साथ विश्वासघात किया। इसके बाद जालौर का प्रथम साका हुआ। कान्हाडदेव लड़ते हुए मारा गया और महिलाओं ने जौहर कर लिया। अलाउद्दीन ने जालोर को नया नाम जलालाबाद दिया।

सिरोही का चौहान वंश 

लुम्बा 

  • जालौर के देवडा शाखा के चौहान लुम्बा ने परमारो को पराजित कर आबु मे चौहान वंश की स्थापना की।

सहसमल 

  • इसने 1425 मे सिरोही नगर की स्थापना की।
  • महाराणा कुंभा ने इसे पराजित करके आबु पर अधिकार कर लिया।

लाखा

  • इसने कुंभा के पुत्र उदा से आबु पुनः छीन लिया।
  • इसने पावागढ गुजरात से काली माता की मुर्ति लाकर सिरोही मे स्थापित की।

देवडा सुरताण 

दत्ताणी का युद्ध - 1583

  • अकबर ने सिरोही पर आक्रमण करने बीकानेर के महाराजा रायसिंह के नेतृत्व मे सेना भेजी इसमे महाराणा प्रताप का भाई जगमाल भी मुगल सेना के साथ था।
  • इस युद्ध में देवडा सुरताण की विजय हुई एवं जगमाल मारा गया।

शिवसिंह 

  • 1823 मे शिवसिंह ने अंग्रेजो के साथ सहायक संधि की, सिरोही राजस्थान की अंतिम रियासत थी जिसने अंग्रेजो के साथ सहायक संधि की।

हाडौती का चौहान वंश 

देवा हाडा

  • इसने 1241 मे बुंदा मीणा को पराजित कर बुंदी पर अधिकार करके हडौती मे चौहान वंश की स्थापना की।

जैत्रसिंह 

  • 1274 मे इसने कोटिया भील को पराजित कर अकेलगढ पर अधिकार किया एवं इसका नाम कोटा रख दिया।
  • इसे कोटा राज्य का संस्थापक माना जाता है।
  • इसने कोटा शहर की स्थापना की।
  • इसने कोटा मे दुर्ग का निर्माण करवाया।

बरसिंह हाडा 

  • इसने 1354 मे बुंदी के तारागढ दुर्ग का निर्माण करवाया।

सुर्जन हाडा 

  • इन्होने नागौर दरबार में अकबर की अधीनता स्वीकार की
  • अकबर ने इन्हें 5 हजारी मनसबदार बनाया एवं बनारस की जागीर प्रदान की।
  • सुर्जन चरित्र ग्रंथ की रचना चंद्रशेखर ने की।

रतनसिंह 

इसकी न्यायप्रियता के कारण इसे राम राजा की उपाधि प्रदान की।

माधोसिंह 

  • जहांगीर ने इसे 1631 मे कोटा का स्वतंत्र शासक नियुक्त किया इससे पुर्व यह राज्य बुंदी के अधीन था।

शत्रुशाल

  • यह उत्तराधिकार के सामुगढ युद्ध में दाराशिकोह के पक्ष मे लडता हुआ मारा गया।

अनिरूद्ध

  • इसने अपनी धाय मां के पुत्र धाबाई देवा की स्मृति मे बुंदी मे 84 खम्भो की छतरी का निर्माण करवाया।
  • इसकी रानी नाथावती ने बुंदी मे रानीजी की बावडी का निर्माण करवाया।
  • इन्होने जाट शासक राजा राम के विद्रोह के दमन मे सहयोग किया।
  • इसका पुत्र जोधसिंह अपनी पत्नियो व गणगौर सहित जैतसागर मे डुब गया था इसलिए कहावत प्रचलित हुई - राणौ ले डुब्यो गणगौर।

बुद्धसिंह

  • इसने औरंगजेब के पुत्रो के उत्तराधिकार संघर्ष में मुअज्जम का साथ दिया एवं मुअज्जम विजयी रहा।
  • इसने नेहतरंग ग्रंथ की रचना की।
  • बुद्धसिंह की रानी आनंद कुंवरी ने उम्मेद सिंह के पक्ष मे मराठा सरदार मल्हार राव हाॅल्कर को राखी भेजकर आमंत्रित किया। इसी के साथ राजस्थान में पहली बार मराठो का प्रवेश हुआ।

उम्मेद सिंह

  • इन्होने बुंदी मे चित्रशाला का निर्माण करवाया।
  • इसके शासनकाल को बुंदी चित्रकला का स्वर्ण काल माना जाता है।

विष्णु सिंह हाडा

  • इसने 1818 मे अंग्रेजो के साथ सहायक संधि की।

रामसिंह

  • यह 1857 की क्रान्ति के समय बुंदी का शासक था।
  • सुर्यमल्ल मिश्रण इसका दरबारी साहित्यकार था।

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