". वैदिक संस्कृति ~ Rajasthan Preparation

वैदिक संस्कृति


वैदिक संस्कृति/सभ्यता ( Vedic Age)

आर्य

  • वैदिक सभ्यता का निर्माण आर्यों द्वारा किया गया। 
  • सर विलियम जोन्स के अनुसार आर्य मुल रूप से युरोपीय थे।
  • मेक्समुलर के अनुसार आर्य मध्य एशिया (इरान) से आए थे, यह सर्वाधिक मान्य मत है।
  • आर्यो के जीवन में घोडे एवं रथ का महत्वपूर्ण स्थान था।
  • लौहे से परिचित थे, लौहे को कृष्ण अयस्क कहा जाता था।
  • आर्य मुर्ति पुजक न होकर, यज्ञ मे विश्वास करते थे।
आर्यों के काल को वैदिक काल कहा जाता है।
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वैदिक काल

1) ऋग्वैदिक काल (1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व)

  • इस काल मे आर्य कबीले के रूप में एक स्थान से दुसरे स्थान पर भ्रमण करते थे।
  • इस काल मे अग्निदेव महत्वपूर्ण देवता थे।
  • इस काल मे स्त्रियों का समाज मे सम्मान था।
  • गाय ऋग्वैदिक काल मे महत्वपूर्ण पशु था।
  • आश्रम व्यवस्था नही थी।

2) उत्तरवैदिक काल (1000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व)

  • इस काल आर्य एक क्षेत्र विशेष मे स्थाई रूप से रहने लगे।
  • इस काल मे स्त्रियों का समाज में इतना सम्मान नहीं था।
  • इसमे आश्रम व्यवस्था का प्रादुर्भाव हुआ।

वैदिक सभ्यता कि जानकारी वैदिक साहित्यो से प्राप्त होती है।

वैदिक साहित्य

  • इसमे वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, उपनिषद को शामिल किया जाता है।
  • उपनिषद को वेदांत भी कहा जाता है।
  • वेद व ब्राह्मण साहित्य में कर्मकांड पर बल दिया गया है।
  • आरण्यक व उपनिषद में ज्ञान पर बल दिया गया है।

वेद एवं ब्राह्मण साहित्य 

  • आर्यो के प्रमुख ग्रंथ वेद है।
  • प्रार्थना तथा यज्ञ उत्सव से संबंधित ग्रंथो को ब्राह्मण ग्रंथ कहा जाता है।
  • वैदो कि कुल संख्या 4 है।

ऋग्वेद 

  • इसका पाठक होतृ कहलाता है।
  • ऋग्वेद का उपवेद - आयुर्वेद
  • ऋग्वेद मे कुल मण्डल- 10
  • ऋग्वेद मे कुल सुक्त - 1028
  • ऋग्वेद मे मौलिक सुक्त - 1017
  • ऋग्वेद मे बालखिल्य सुक्त - 11

ऋग्वेद के मण्डल व उनके रचयिता 

  • मण्डल 1  -  अगस्त्य व कण्व
  • मण्डल 2 -  ग्रहतसमद
  • मण्डल 3 - विश्वामित्र 
  • मण्डल 4 - वामदेव
  • मण्डल 5 - अत्रि
  • मण्डल 6 - भारद्वाज 
  • मण्डल 7 - वशिष्ट
  • मण्डल 8 -  कण्व
  • मण्डल 9 - अंगिरा
  • मण्डल 10 - ऋषि एवं विदुषी समूह द्वारा 
  • सर्वाधिक मन्त्र मण्डल 1 मे है।
  • मण्डल 2 से मण्डल 7 तक कि रचना सबसे पहले कि गई।इन्हे वंश मंडल कहा जाता है।
  • गायत्री मंत्र ऋग्वेद के तीसरे मंडल मे है जिसकी रचना विश्वामित्र ने कि है।
  • सृष्टि कि रचना का वर्णन मण्डल 10 के नासदीय सुक्त मे किया गया है।

मण्डल 10 के पुरूष सुक्त मे चार वर्णो का उल्लेख मिलता है।

  1. ब्राह्मण - पुजा पाठ करते थे।
  2. क्षत्रिय - आक्रमणो से देश कि रक्षा करते थे।
  3. वैश्य - कृषि, पशुपालन व व्यवसाय 
  4. शुद्र - दास

ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ 

  1. एतरेय - आश्रम व्यवस्था का उल्लेख।
  2. कोषुतगी/शंखायन

यजुर्वेद

  • इसका पाठक अध्वर्यु कहलाता है।
  • यजुर्वेद का उपवेद- धनुर्वेद
  • यह यज्ञ से संबंधित है।

यजुर्वेद की दो शाखाएँ है।

1) शुक्ल यजुर्वेद /वाजस्नेय संहिता 

इसका ब्राह्मण ग्रंथ- शतपथ

2) कृष्ण यजुर्वेद 

इसका ब्राहम्ण ग्रंथ- तैतरेय

सामवेद 
  • इसका पाठक उदगाता कहलाता है।
  • सामवेद का उपवेद - गंधर्ववेद
  • यह संगीत शास्त्र से संबंधित है।

सामवेद के ब्राह्मण ग्रंथ 

1) पंचवीस

2) षट्वीस

3) जमनीय

अथर्ववेद 

  • इसका पाठक ब्राह्मण कहलाता है।
  • अथर्ववेद का उपवेद- शिल्पवेद/इतिहास वेद
  • यह तंत्र-मंत्र, जादू-टोना से संबंधित है।
  • अथर्ववेद का ब्राहम्ण ग्रंथ- गोपथ

आरण्यक 

इनका पठन जंगलों में होने के कारण इन्हें आरण्यक कहा जाता है।

महत्वपूर्ण आरण्यक 

  • वृहदारण्यक 
  • एतरेयारण्यक
  • तेतरेयारण्यक
  • छादोग्य आरण्यक 

उपनिषद्

  • ये वैदिक कालिन दार्शनिक ग्रंथ है।
  • इसमे विश्व कि उत्पत्ति, ब्रह्म तथा जीवात्मा के बीच संबंध का दार्शनिक चिंतन है।
  • मुक्तिकोपनिषद के अनुसार उपनिषदो कि कुल संख्या 108 है।
  • उपनिषदो मे यज्ञ कि आलोचना कि गई है।

प्रमाणित रूप से 12 उपनिषद माने गए है।

ऋग्वेद से संबंधित उपनिषद

  • एतरेयोपनिषद, कोशितकी उपनिषद 

यजुर्वेद के उपनिषद 

  • वृहदारण्यक उपनिषद्- इसकी रचना याज्ञवल्क्य ऋषि ने की, इसमे 16 संस्कारो का उल्लेख मिलता है।
  • तैतरियोपनिषद् -इसमे अन्न को ब्रह्म(भगवान) कहा गया है
  • कठोपनिषद् - इसमे ॐ शब्द का वर्णन है।
  • इशोपनिषद् - गीता के निष्काम कर्मयोग का वर्णन।

सामवेद से संबंधित उपनिषद- 

  • छादोंग्योपनिषद् - देवकीपुत्र श्रीकृष्ण का उल्लेख 
  • केनोपनिषद्

अथर्ववेद से संबंधित उपनिषद् -

  • मुण्डकोपनिषद् - सत्यमेव जयते का वर्णन।
  • माण्डुक्य उपनिषद्
  • प्रश्नोपनिषद्

जबाला उपनिषद में याज्ञवल्क्य ने मनुष्य के संपूर्ण जीवन की आयु 100 वर्ष मानकर चार आश्रम निर्धारित किए।

  • ब्रह्मचार्य आश्रम - (25 वर्ष की आयु तक)
  • गृहस्थ आश्रम - (25 से 50 वर्ष)
  • वानप्रस्थ आश्रम - (50 से 75 वर्ष)
  • सन्यास आश्रम - (75 से 100 वर्ष)

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