जैन व बौद्ध धर्म (Buddhism and Jainism)
जैन धर्म (Jainism)
- जैन धर्म के संस्थापक एवं कैवल्य ज्ञान प्राप्त महात्माओ को तीर्थंकर माना गया है।
- जैन धार्मिक ग्रन्थ- आगम
जैन धर्म मे कुल 24 तीर्थंकर हुए।
प्रथम तीर्थंकर - ऋषभदेव
- उपनाम- आदिनाथ, केसरिया नाथ
- प्रतीक - वृषभ
- इनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
- इन्हें जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है।
- इनके पुत्र का नाम गोमतेश्वर है जिन्हें बाहुबली भी कहा जाता है।
16 वे तीर्थंकर- शांतिनाथ
- प्रतीक - मृग
19 वे तीर्थंकर- मल्लीनाथ
- प्रतीक- कलश
- श्वेताम्बर इन्हें महिला मानते है।
21 वे तीर्थंकर- नेमीनाथ
- प्रतीक- नीलोत्पल
22 वे - अरिष्ट नेमी
- प्रतीक- शंख
23 वे - पार्श्वनाथ
- पिता- अश्वसेन
- माता - वामा
- पत्नी- प्रभावती
- प्रतीक - सर्प
- इन्हें जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
- इन्हें सम्मेद पर्वत (झारखंड) पर ज्ञान प्राप्त हुआ।
- इनके शिष्य निग्रंथ कहलाते है।
- इन्होने नारियो को धर्म मे प्रवेश दिया।
- इन्होने चार नियम (चतुर्याम) दिए।
- सत्य बोलो
- अहिंसा
- अस्तेय (चोरी ना करना)
- अपरिग्रह (धन संग्रह ना करना)
24 वे तीर्थंकर महावीर स्वामी
- बचपन का नाम - वर्द्धमान
- जन्म - कुण्डग्राम (599BC)
- पिता - सिद्धार्थ
- माता - त्रिशला
- प्रतीक - सिंह
- ग्रहत्याग - 30 वर्ष की आयु में बडे भाई नंदीवर्धन से अनुमति लेकर।
- तपस्या-12 वर्ष
- ज्ञान प्राप्ति - जांभिक ग्राम मे ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे।
- उपाधियाँ- केवलिन, जीन, महावीर, अर्हन्त
- प्रथम उपदेश - जामालि को (राजग्रह के पास विप्पुलाचल पहाडी पर)
- उपदेश कि भाषा - प्राकृत
- इनके शिष्य गणधर या गंधर्व कहलाये थे।
- मृत्यु (निर्वाण) - 72 वर्ष की आयु में पावापुरी मे।
इन्होने चार नियमो मे एक नियम ओर जोडा इसलिए जैन धर्म के पाँच नियम है।
- सत्य बोलो
- अहिंसा
- अस्तेय (चोरी ना करना)
- अपरिग्रह (धन संग्रह ना करना)
- ब्रम्हचर्य
- जैन धर्म मे 63 श्लाका षुरूष माने गए है।
- त्रिषष्टि श्लाका षुरूष ग्रंथ- हेमचन्द्र सुरी
- कल्प सुत्र गंथ - भद्रबाहु
जैन धर्म का सिद्धांत
स्यादवाद का सिद्धांत
- इस सिद्धांत के अर्थ है कि किसी भी वस्तु के अनेक पहलु होते हैं किंतु व्यक्ति अपनी सीमित बुद्धि से केवल कुछ ही पहलुओ को जान सकता है, पूर्ण ज्ञान तो केवल केवलिन के लिए ही संभव है।
जैन सम्प्रदाय का विभाजन
- महावीर स्वामी की मृत्यु के पश्चात् लगभग दो शताब्दीयो तक जैन अनुयायी संगठित रहे फिर दो भागों में विभक्त हो गए।
- जैन संत स्थूलभद्र ने श्वेत वस्त्र पहनने कि छुट दे दी इसलिए स्थूलभद्र एवं भद्रबाहू के मध्य मतभेद हो गया इस कारण जैन धर्म का विभाजन हो गया।
दिगम्बर सम्प्रदाय
- जैन संत भद्रबाहू के समर्थक दिगम्बर कहलाए जाते है।
- इस सम्प्रदाय के साधु दिशाओ को ही वस्त्र समझकर वस्त्रहीन रहते है।
- भद्रबाहू ने 14 पूर्वो कि रचना की इस सम्प्रदाय के लोग इन्हें मानते है।
श्वेताम्बर सम्प्रदाय
- जैन संत स्थूलभद्र के समर्थक श्वेताम्बर कहलाते हैं।
- इस सम्प्रदाय के साधु सफेद वस्त्र धारण करते है।
जैन सभाएँ
प्रथम जैन सभा
- काल - चौथी शताब्दी ईसा पूर्व
- स्थान- पाटलिपुत्र
- अध्यक्ष- स्थूलभद्र
- शासक - चन्द्रगुप्त मौर्य
- इस संगति मे सथूलबाहू ने 12 अंगो कि व्याख्या की।
द्वितीय जैन संगति
- काल - 513 - 526 ईस्वी
- स्थान - वल्लभी (गुजरात)
- अध्यक्ष- देवर्धि श्रमाश्रमण
- जैन धर्मग्रंथों को अंतिम रूप से संकलित कर लिपिबद्ध किया गया।
- इसमे आगम कि रचना हुई।
बौद्ध धर्म (Buddhism)
- बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे, इन्हे विष्णु के अवतार माना जाता है
गौतम बुद्ध
- बचपन का नाम - सिद्धार्थ
- जन्म स्थान- लुम्बिनी
- पिता- शुद्दोधन
- माता - महामाया
- पत्नी - यशोधरा
- पुत्र - राहुल
- इनका पालन पोषण प्रजापति गौतमी ने किया।
- इनके जन्म के समय ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे या महान साधु।
चार दृश्य जिन्होंने बुद्ध का जीवन परिवर्तित किया।
- वृद्ध व्यक्ति
- व्याधिग्रस्त मनुष्य
- मृत व्यक्ति
- एक सन्यासी
- इन्होने 29 वर्ष के आयु मे गृह त्याग किया।
- वैशाली के आलारकालाम इनके प्रथम गुरु बने।
- बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति - बोध गया (पीपल के वृक्ष के नीचे)
- बुद्ध का प्रथम उपदेश - सारनाथ
- बुद्ध के उपदेश कि भाषा- मागधी
- बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश श्रावस्ती मे दिए।
- वैशाली मे बुद्ध ने भिक्षुणी संघ कि स्थापना की।
- भिक्षुणी संघ की प्रथम महिला सदस्य - प्रजापति गौतमी
- बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश शुभच्छ को दिया।
- 80 वर्ष कि आयु में कुशीनगर मे बुद्ध की मृत्यु हुई।
- पिपरहवा स्तुप गौतम बुद्ध का प्राचीनतम स्तुप है।
- प्रतीक चिन्ह
- गर्भधारण का प्रतीक- हाथी
- जन्म का प्रतीक - कमल
- महाभिनिष्क्रमण (गृह त्याग) - अश्व
- समृध्दि का प्रतीक - शेर
- बौद्ध के जीवन कि घटनाएँ
- महाभिनिष्क्रमण- गृह त्याग की घटना
- सम्बोधि - ज्ञान प्राप्ति की घटना
- धर्मचक्रपरिवर्तन - प्रथम उपदेश की घटना
- महापरिनिर्वाण - मृत्यु
- बौद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति एवं मृत्यु तीनो वैशाख पूर्णिमा को ही हुए थे।
बौद्ध धर्म की शिक्षाएं
- बौद्ध धर्म के सिद्धांतों की आधारशिला उनके चार आर्य सत्य में निहित है।
- संसार दु:खों का घर है
- दु:खों का कारण तृष्णा है
- तृष्णा का विनाश ही दुख निरोध का मार्ग है
- तृष्णा का विनाश अष्टांगिक मार्ग द्वारा संभव है।
अष्टांगिक मार्ग
- सम्यक दृष्टि - चार आर्य सत्य की सही परख
- सम्यक वचन - सत्य बोलना
- सम्यक संकल्प - भौतिक वस्तु तथा दुर्भावना का त्याग
- सम्यक कर्म - सत्य कर्म करना
- सम्यक आजीविका- ईमानदारी से आजीविका कमाना
- सम्यक व्यायाम - शुद्ध विचार ग्रहण करना
- सम्यक् स्मृति - मन वचन तथा कर्म की प्रतिक्रिया के प्रति सचेत रहना
- सम्यक समाधि - चित्त की एकाग्रता
बोद्ध संगतियाँ
प्रथम बौद्ध संगति
- काल - 483 ईसा पूर्व
- अध्यक्ष - महा कश्यप
- स्थान - राजग्रह
- शासक - अजातशत्रु
- उद्देश्य- बुद्ध की शिक्षा एवं संघ के नियमो का निर्धारण करना।
- बुद्ध के शिष्य आनंद ने बुद्ध के उपदेशो का संकलन कर सुतपिटक कि रचना की।
- बुद्ध के शिष्य उपालि ने बुद्ध धर्म के अनुशासन के नियम संकलित कर विनयपिटक कि रचना की।
द्वितीय बौद्ध संगति
- काल - 383 ईसा पूर्व
- अध्यक्ष - सर्वकामी
- स्थान- वैशाली
- शासक- कालाशोक
- गौतम बुद्ध कि मृत्यु को 100 वर्ष पूर्ण होने पर इस संगति का आयोजन हुआ।
इस संगति मे बुद्ध भिक्षु दो शाखाओ मे विभक्त हो गए।
- 1) स्थवीर/थेरवादी
- 2) महासंघिक
तृतीय बौद्ध संगति
- काल -251 ईसा पूर्व
- स्थान- पाटलिपुत्र
- अध्यक्ष- मोगलीपुत्र तिस्स
- शासक- सम्राट अशोक
- अभिधम्म पिटक कि रचना कि गई।
- अभिधम्म पिटक का एक भाग कथावस्तु कि रचना मोगलीपुत्र तिस्स ने की।
- इस संगति मे तीनो पिटको को त्रिपिटक नाम दिया गया।
- इसमे बौद्ध भिक्षुओं को फिर से एक कर दिया गया।
चौथी बौद्ध संगति
- काल - प्रथम सदी इस्वी
- स्थान- कुण्डल वन (कश्मीर)
- अध्यक्ष - वसुमित्र
- उपाध्यक्ष - अश्वघोष
- शासक- कनिष्क
- त्रिपिटक पर प्रमाणित भाष्य विभाषाशास्त्र कि रचना हुई।
इस संगति मे बौद्ध धर्म का दो सम्प्रदायो मे विभाजन हुआ।
1) हीनयान
- यह परम्परावादियों का संघ है जो बौद्ध धर्म के प्राचीन आदर्शों को बिना किसी परिवर्तन के पूर्ववत बनाए रखना चाहते थे
2) महायान
- यह परिवर्तन वादी विचारधारा का संघ है जो बौद्ध धर्म के प्राचीन स्वरूप में परिवर्तन एवं सुधार को महत्व देता है इसमें बुद्ध को देव मानकर उनकी मूर्ति पूजा की जाने लगी।
- बाद में इन संप्रदायो में एक संप्रदाय और जुड़ा जिसे वज्रयान कहा जाता है संप्रदाय के लोग बुद्ध को अलौकिक शक्तियों वाला पुरुष मानते थे।
मध्यम प्रतिपदा सिद्धांत
- बुद्ध द्वारा प्रतिपादित इस के सिद्धांत के अनुसार मनुष्य को ना तो अधिक विलासिता में रहना चाहिए ओर न हीं अपने शरीर को अधिक कष्ट देना चाहिए बल्कि उसे सुख शुद्धतापूर्वक नैतिक जीवन व्यतीत करना चाहिए।
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