मौर्य साम्राज्य (Mourya Dynesty) (323 ईपू से 185 ईपू)
मौर्य साम्राज्य का संस्थापक- चन्द्रगुप्त मौर्य (323 ईपू से 298 ईपू)
चन्द्रगुप्त मौर्य
- 8 वर्ष की आयु में यह पहली बार चाणक्य से मिलता है इस समय यह राजकीलम खेल खेल रहा था इसके बाद चाणक्य इसे तक्षशिला ले जाकर शिक्षा देता है एवं अस्त्र शस्त्र की शिक्षा इसे पंजाब में मिलती है, जहां पहली बार उसकी मुलाकात सिकंदर से भी होती है।
- इसने अपने गुरु चाणक्य की सहायता से घनानन्द को मारकर मगध मे मौर्य वंश की स्थापना की।
- उपनाम- एन्ड्रोकोट्स, सेन्ड्रोकोट्स
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने 305 ई पू मे सीरिया पर आक्रमण करके सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया एवं सेल्यूकस निकेटर की पुत्री हेलेना के साथ विवाह किया इस विवाह को भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय विवाह कहा जाता है।
सेल्यूकस ने चार प्रांत चन्द्रगुप्त मौर्य को दहेज में दिया।
- पेरोपेनिसडाई (काबुल)
- अराकोशिया (कंधार)
- जेड्रोशिया (मकरान)
- एरिया (हैरात)
- चंद्रगुप्त मौर्य ने 500 हाथी सेल्यूकस को उपहार में दिए।
- सेल्यूकस ने मैगस्थनीज को राजदुत बनाकर भेजा यह भारत में नियुक्त प्रथम विदेशी राजदूत था।
- इंडिका ग्रंथ की रचना मेगस्थनीज ने की।
- 300 ईसा पूर्व में इसी के शासनकाल में प्रथम जैन संगीति का आयोजन पाटलिपुत्र में किया गया।
- चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में भयंकर अकाल के कारण सौराष्ट्र के राज्यपाल पुष्यगुप्त वैश्य की सहायता से इसने सुदर्शन झील का निर्माण करवाया।
- विशाखदत्त के मुद्राराक्षस ग्रंथ के अनुसार इसने हिमालय प्रदेश के शासक पर्वतक से संधि की।
- जीवन के अंतिम दिनो मे यह दिगंबर जैन धर्म के मुनि हो गए यह अंतिम शासक थे जो जैन मुनि बने।
- 298 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य जैन मुनि भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) चले गए यही चंद्रगीर पहाड़ी पर इन्होने उपवास द्वारा देहत्याग किया, इसे कायाकलेश/संलेखना कहा जाता है।
बिन्दुसार (298ईपू - 273 ईपू)
- पिता- चन्द्रगुप्त मौर्य
- माता - दुर्धरा
- उपनाम - अमित्रघात, अमित्रोकेटस, सिंहसेन
- इसे भारत का प्रथम सिजेरियन शासक कहा जाता है।
- यह मोगली पुत्र गोसाई के आजीवक धर्म का अनुयायी था।
- इसके 101 पुत्र थे जिसमे सबसे बड़ा पुत्र सुषीम था।
- अशोक भी इसका पुत्र था।
- इसके शासनकाल मे गांधार मे दो बार विद्रोह हुआ, पहली बार सुषीम के कुशासन के कारण हुआ जिसका दमन करने सुषीम को भेजा किंतु असफल रहा, दुसरी बार अशोक को भेजा यह सफल रहा।
- बिन्दुसार को महान पिता का पुत्र एवं महान पुत्र का पिता कहा जाता है।
- इसके दरबार मे मैगस्थनीज का उत्तराधिकारी डाइमेकस भी था।
- इन्होने सीरिया के सम्राट एंटिओकस प्रथम को पत्र लिखकर शराब व दार्शनिक भेजने का निवेदन किया जवाब मे उन्होने शराब भेजना स्वीकार किया किंतु दार्शनिक के लिए कहा की युनानी विधान के अनुसार दार्शनिक का क्रय विक्रय नही होता।
अशोक (273 ईपू - 232 ईपू)
- अशोक ने 4 वर्षो तक उत्तराधिकार युद्ध लडा व अपने 99 भाईयो को मारकर 269ईपू मे राजा बना। इसने अपने छोटे भाई तिस्ता को जीवित छोड दिया।
- पुरा नाम - देवनामप्रिय सम्राट अशोक
- पिता- बिन्दुसार
- माता - सुभद्रांगी या धर्मा
कंलिंग का युद्ध- 261 ईसा पूर्व
- कलिंग विजय का वर्णन अशोक के 13वें अभिलेख जो कि शाहबाजगढ़ी से प्राप्त हुआ मे मिलता है, इसे धम्म विजय कहा जाता है।
- हाथीगुम्फा अभिलेख के अनुसार इस युद्ध में अशोक ने नंदराज को पराजित किया।
- इस युद्ध मे 1 लाख लोग मारे गए, 1.50 लाख लोग बंदी बनाए गए, 25 हजार लोग लापता हुए, 20 हजार लोग बेघर हो गए।
- यह युद्ध अशोक के जीवन का अंतिम युद्ध माना जाता है।
- बाद मे अशोक ने कंलिग युद्ध के युद्ध स्थान पर शांति स्तुप की स्थापना की।
- पहले अशोक ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था, निग्रोथ से इसे बौद्ध धर्म की प्रेरणा मिली किंतु उपगुप्त ने इन्हें बौद्ध धर्म की शिक्षा प्रदान की।
- कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी ग्रंथ के अनुसार अशोक ने झेलम नदी के किनारे श्रीनगर नामक शहर की स्थापना की।
- अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र वह पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका भेजा।
- अशोक की रानी तिस्साराखा ने बोधि वृक्ष को कटवा दिया।
- इसे बौद्ध धर्म की शिक्षा नीग्रोध नामक बौद्ध भिक्षु ने दी।
- इसके शासनकाल में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगति का आयोजन किया गया।
अशोक के अभिलेख
- सर्वप्रथम खोज - 1750
- लिपि - ब्रह्मी, खरोष्ठी, ग्रीक व आरमेइक
- भाषा - प्राकृत
- अशोक के अभिलेखो मे सर्वप्रथम मेरठ का स्तंभ लेख कि खोज टी फेन्थेलर ने की।
- अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम 1837 में जेम्स प्रिंसेस ने पढ़ा था।
इन 8 स्थानो से अशोक 13 अभिलेख प्राप्त हुए।
- शाहबाजगढी (पाकिस्तान)
- मानसेहरा (पाकिस्तान)
- कालसी (उत्तराखंड)
- सोपारा (महाराष्ट्र)
- एर्रेगुडी (आंध्रप्रदेश) - ब्रुस्टोफेदन लिपि
- जोगढ (उडीसा)
- गिरनार (गुजरात)
- धौली (उडीसा)
स्तम्भ लेख
वृहद स्तम्भ लेख - 7
- मेरठ
- टोपरा
- अरराज
- नंदनगढ - इस पर मोर का चित्रण है।
- रामपुरवा
- प्रयाग
लघु स्तम्भ लेख- 5
सांची (मध्य प्रदेश)- यह आधुनिक भारत का प्रतीक चिन्ह है।
- इस पर चार सिंह, हाथी, घोडा व बैल उत्कीर्ण है।
- इसमे 32 तिल्लीया है।
कौशांबी (उत्तर प्रदेश) - इसमे कारूवाकी को अशोक की 5 पत्नियों मे सबसे प्रिय एवं दानी बताया गया है, अकबर ने इसे इलाहाबाद में स्थापित करवा दिया।
रूम्मिनदेई (नेपाल)
निगल्वासागर (नेपाल)
वृहद्रथ मौर्य वंश का अंतिम शासक था, पुष्यमित्र शुंग ने इसकी हत्या करके शुंग वंश की स्थापना की।
मोर्यकाल के मानव निर्मित बंदरगाह
1) ताम्रलिप्ति - गंगा नदी - यह सबसे समृद्ध बंदरगाह था।
2) तोसली बंदरगाह- महानदी
3) उज्जयिनी बंदरगाह- उज्जयिनी नदी
4) सुवर्णगिरी बंदरगाह- कृष्णा नदी
मौर्य काल के अध्यक्ष
नवाध्यक्ष - जहाजो का अधीक्षक
अकाराध्यक्ष - खानो का अधीक्षक
सीताध्यक्ष - कृषि अधिक्षक
चाणक्य ने अर्थशास्त्र ग्रंथ की रचना की जिसमे इन्होने सप्तांग सिद्धांत दिया है, जिसमे निम्न शामिल है।
1) राजा
2) अमात्य
3) जनपद
4) दुर्ग
5) मित्र
6) कोष
7) सेना
अर्थशास्त्र में केंद्रीय स्तर पर 18 तीर्थ एवं 27 महामात्र नामक अधिकारियों का उल्लेख मिलता है, इनमें से तीर्थ उच्च स्तर के अधिकारी थे, जबकि महामात्र मंत्रियों के निरीक्षण में कार्य करने वाले विभिन्न विभागों के अध्यक्ष थे।
पण्याध्यक्ष : वाणिज्य विभाग का अध्यक्ष
सराध्यक्ष : आबकारी विभाग का अध्यक्ष
सूनाध्यक्ष : बूचड़खाने का अध्यक्ष
गणिकाध्यक्ष : गणिकाओं का अध्यक्ष
सीताध्यक्ष : कृषि विभाग का अध्यक्ष
लक्षणाध्यक्ष : छापेखाने का अध्यक्ष
अकराध्यक्ष : खान विभाग का अध्यक्ष
कृप्याध्यक्ष : वनों का अध्यक्ष
आयुधगाराध्यक्ष : आयुधगार का अध्यक्ष
शुल्काध्यक्ष : व्यापार कर वसूलने वाला
सूत्राध्यक्ष : कताई-बुनाई विभाग का अध्यक्ष
लोहाध्यक्ष : धातु विभाग का अध्यक्ष
विविताध्यक्ष : चरागाहों का अध्यक्ष
गो-अध्यक्ष : पशुधन विभाग का अध्यक्ष
नवाध्यक्ष : जहाजरानी विभाग का अध्यक्ष
पत्नाध्यक्ष : बन्दरगाहों का अध्यक्ष
संस्थाध्यक्ष : व्यापारिक मार्गों का अध्यक्ष
देवताध्यक्ष : धार्मिक संस्थाओं का अध्यक्ष
पोताध्यक्ष : माप-तौल का अध्यक्ष
अश्वाध्यक्ष : घोड़ों का अध्यक्ष
हस्ताध्यक्ष : हाथियों का अध्यक्ष
सवर्णाध्यक्ष : सोने का अध्यक्ष
अक्षपटलाध्यक्ष : महालेखाकार
मौर्यकालीन प्रांतीय प्रशासन केंद्र का विभाजन प्रांतों में होता था,
मौर्य काल में प्रांतों को 'चक्र' कहा जाता था जो कई मंडलों में विभाजित थे।
इन प्रांतों का शासन सीधे सम्राट द्वारा नियंत्रित न होकर उसके प्रतिनिधियों के माध्यम से होता था।
मंडल के अधिकारी को प्रदेष्टा कहा जाता था।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में 5 प्रांतों का उल्लेख मिलता है
1. उत्तरापथ (राजधानी : तक्षशिला)
2. दक्षिणापथ (राजधानी : सुवर्णगिरि)
3. अवंती (राजधानी : उज्जैन)
4. प्राची (राजधानी पाटलिपुत्र)
5. कलिंग (राजधानी : तोशाली)
मौर्यकालीन स्थानीय प्रशासन के संबंध में जानकारी मेगस्थनीज की इंडिका से प्राप्त होती है।
प्रशासन की दूसरी सबसे छोटी इकाई संग्रहण का प्रमुख अधिकारी गोप होता था, जो कि मुख्यतः जनगणना के कार्य से संबंधित था।
प्रशासन की सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई ग्राम होती थी, जिसका प्रमुख अधिकारी ग्रामीणी कहलाता था।
ग्रामीण स्तर पर वंशानुगत एवं स्वशासन संबंधी अधिकार दिए गए थे।
इंडिका में यह भी उल्लेखित है कि पाटलिपुत्र नगर का प्रशासन 6 समितियों के माध्यम से किया जाता था तथा प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे।
शिल्प कला समिति
प्रदेश समिति
जनसंख्या समिति
उद्योग व्यापार समिति
वस्तु निरीक्षक समिति
कर निरोधक समिति
मौर्य काल की विदेश नीति को अर्थशास्त्र में षाड्गुण्य नीति के रूप में वर्णित किया गया है।
इस नीति के अनुसार किसी राज्य को अपनी पड़ोसी अथवा विदेशी संबंधों के निर्धारण में निम्नलिखित तरीकों का अनुसरण करना चाहिए।
1. संधि : किसी देश के साथ संबंध स्थापित करना
2. विग्रह: किसी देश के साथ संबंधों को समाप्त करना
3. यान आक्रमण करना
4. आसन : मौन रहना
5. संश्रय: दूसरे देश के आश्रय में स्वयं को समर्पित करना
6. द्वैधीभाव: एक देश की दूसरे देश से संधि कराना
भूमि कर
भू-राजस्व के आकलन में भूमि का प्रकार निर्धारित किया जाता था।
भू-राजस्व के अनुसार गांवों को श्रेणीबद्ध किया जाता था।
1. कर से मुक्त गांव : परिहारिक
2. सैनिक प्रदान करने वाले गांव : आयुधीय
3. अनाज- पशु एवं सोने के रूप में कर देने वाले गांव : हिरण्य
4. कच्चा माल देने वाले गांव: कुप्य
5. बेगार देने वाले गांव : विष्टि
मेगस्थनीज के अनुसार भूमि राजस्व की राशि कुल उत्पादन का एक चौथाई थी, किंतु अधिकांश संस्कृत ग्रन्थों में इसकी दर कुल उत्पादन का 1/6 निर्धारित की गई है। इसलिए राजा को षड्भागी कहा जाता था।
करों के अन्य प्रकार
बलि - अर्थशास्त्र में बलि का अर्थ वह उपकर प्रतीत होता है जो राजा उपज के भाग के अतिरिक्त प्रजा से लेता था।
पिंडकर - कुछ गांवों को जो कर इकट्ठा देना होता था उसे पिंड कर कहा जाता था।
सेना भक्त कर: संभवत: गांव वालों को सेना को भोजन व्यवस्था के लिए जो धन देना होता था उसे सेना भक्त कहा जाता था।
हिरण्य कर संभवतः यह किसानों से नकद कर के रूप में लिया जाता था।
मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य काल के दौरान भारत में सात जातियाँ थीं
1. दार्शनिक
2. किसान
3. ग्वाला
4. कारीगर
5. सैनिक
6. निरीक्षक
7. अमात्य
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
दो ग्रामो के झगडे का निर्णय- जनपद संधि न्यायालय
10 ग्रामो का न्यायालय- संग्रहण
400 ग्रामो का न्यायालय- स्थानीय
चन्द्रगुप्त मौर्य ने प्रजा हितकारी कार्यों के लिए लोक कल्याण विभाग की स्थापना की जिसका प्रमुख कार्य वृद्धों अनाथ, अपाहिज तथा बालकों की देखभाल करना था।
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