राजस्थान की पुरातात्विक सभ्यताएं
कालीबंगा सभ्यता-हनुमानगढ़
- इस सभ्यता का विकास 2350 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व के मध्य हुआ।
- कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ - काले रंग की चूड़ियां
- कालीबंगा सभ्यता का विकास हनुमानगढ़ में घग्गर नदी के किनारे हुआ है।
- यह कास्य युगीन सभ्यता है।
- खोजकर्ता- अमलानंद घोष(1952)
- उत्खनन कर्ता - बृजवासी(BV) लाल एवं बालकृष्ण(BK) थापर (1961)
विशेषता
- विश्व के प्राचीनतम जूते हुए खेत के प्रमाण।
- एक साथ दो फसलें बोने का प्रमाण।
- कपास की खेती के साक्ष्य।
- जले हुए चावल के साक्ष्य।
- यहां से यज्ञ कुंड या अग्नि वैदिकाओ के प्रमाण मिले।
- बलि प्रथा के प्रमाण।
- सुती वस्त्र मे लिपटा उस्तरा।
- समकोण प्रकार की सड़कें
- घरो के दरवाजे पीछे की ओर खुलते थे।
- नालिया कास्ठ से निर्मित थी।
- कुत्ते, ऊँट, गाय, बकरी, भेड से परिचित थे।
- शव को गाढने के अवशेष।
- स्वास्तिक चिन्ह का प्रमाण।
- शल्य चिकित्सा के प्रमाण
- बालक का कंकाल
- मिट्टी से निर्मित स्केल (फुटा)
- यहां कि मकान बनाने की पद्धति को ऑक्सफोर्ड पद्धति कहा जाता है।
- इस सभ्यता को दीन हीन सभ्यता भी कहा जाता है।
आहड सभ्यता - आहड (उदयपुर)
- इसका विकास उदयपुर में आयड नदी के किनारे हुआ है इसलिए इसे आयड सभ्यता भी कहा जाता है।
- इसे ताम्र युगीन सभ्यता भी कहा जाता है।
- इसे मृतकों के टिले की सभ्यता भी कहा जाता है।
- सर्वप्रथम खोजकर्ता - पंडित अक्षय कीर्ति व्यास(1953)
- उत्खननकर्ता- रतन चन्द्र अग्रवाल (1956), डी साकलिया (1961)
विशेषताएं
- स्फटिक पत्थर या औजार बनाने हेतु उपयोगी पत्थर मिले।
- ताम्र कास्य एवं लोह धातु के उपकरण।
- मृदभांड के प्रमाण।
- 6 तांबे से निर्मित यूनानी मुद्राएं।
- तांबा गलाने की भट्टी के प्रमाण।
- टेराकोटा पद्धति से निर्मित बैल की मूर्ति।
- आहडवासी शव को कपड़ों व आभूषणों सहित गाढते थे।
- अनाज पिसने की चक्की।
- पत्थर से भवन निर्माण।
- सामूहिक भोजन व्यवस्था के प्रमाण।
- ज्वार व चावल की फसलों के प्रमाण।
- यहा के लोग रंगाई छपाई उद्योग से परिचित थे।
- घरो मे पानी सुखाने के लिए चक्रकुप पद्धति का प्रयोग।
गणेश्वर सभ्यता - नीम का थाना (सीकर)
- इस सभ्यता का विकास नीम का थाना (सीकर) मे कांतली नदी के किनारे हुआ।
- यह ताम्र कालीन सभ्यता है इसे भारत में सभी ताम्र कालीन सभ्यताओं की जननी माना जाता है।
- सर्वप्रथम खोज एवं उत्खनन कर्ता - रतन चंद्र अग्रवाल(1977)
- इसे पुरातत्व सभ्यता का पुष्कर कहा जाता है।
विशेषताएं
- मछली पकड़ने के कांटे के प्रमाण।
- बाणग्रे, चूड़ियां, फारसे, कुल्हाड़े के प्रमाण।
नगरी सभ्यता- चित्तौड़गढ़
- इस सभ्यता का विकास बेडच नदी के किनारे (नगरी) चित्तौड़गढ़ मे हुआ है।
- सर्वप्रथम उत्खननकर्ता - डाॅ डी आर भण्डारकर
- यहां से शिवी जनपद के सिक्के प्राप्त हुए।
विशेषताएं
- यहां पर वैष्णव संप्रदाय का प्राचीनतम मंदिर प्राप्त हुआ है।
- यहां से दो शिलालेख प्राप्त हुए - घोसुंडी शिलालेख व हाथीबाडा शिलालेख, इन दोनों शिलालेखों की खोज कविराज श्यामलदास द्वारा की गई।
बागौर सभ्यता - भीलवाड़ा
- यह सभ्यता कोठारी नदी के किनारे (बागौर)भीलवाड़ा में विकसित हुई।
- सर्वप्रथम उत्खननकर्ता - डॉ विरेन्द्र नाथ मिश्र
विशेषताएं
- राजस्थान में कृषि एवं पशुपालन के सबसे प्राचीनतम प्रमाण यहीं से मिले हैं।
- बागौरवासी अपने औजार एवं शस्त्र पत्थरों से निर्मित करते थे।
- महासतियो के टीले का संबंध इसी सभ्यता से है।
रैढ सभ्यता- रैढ(टोंक)
- इस सभ्यता का विकास ढील नदी के किनारे रेढ (टोंक) में हुआ है।
- उत्खननकर्ता - दयाराम साहनी व केदारनाथ पुरी।
विशेषताएं
- मालव गणराज्य के सिक्के भी प्राप्त हुए।
- चांदी की आहत मुद्राएं या पंचमार्क सिक्के प्राप्त हुए। यहां से एशिया में सबसे ज्यादा पंचमार्क सिक्के प्राप्त हुए इसलिए इसे प्राचीन भारत का टाटानगर भी कहा जाता है।
- लौहे के भण्डार प्राप्त हुए।
- बंदर के समान बर्तन प्राप्त हुए।
- मृणमुर्तियो पर मथुरा कला की चाप।
- आलीशान मकानों के अवशेष प्राप्त हुए
रंगमहल- हनुमानगढ
- इसका विकास घग्गर नदी के किनारे रंगमहल(हनुमानगढ) मे हुआ।
- उत्खननकर्ता - डाॅ हेनरिड
विशेषताए
- मृणमूर्तियों पर गांधार शैली की छाप
- कनिष्क प्रथम एवं कनिष्क तृतीय के काल के सिक्के प्राप्त हुए।
पीलीबंगा सभ्यता - हनुमानगढ़
- इसका विकास सरस्वती नदी के किनारे हनुमानगढ़ में हुआ।
विशेषताएं
- विशेष प्रकार का घड़ा मिला।
- बाबा रामदेव जी का मंदिर प्राप्त हुआ।
- पीपल के वृक्ष का प्रमाण।
बैराठ सभ्यता - जयपुर
- इसका विकास बाणगंगा नदी के किनारे जयपुर में हुआ इसे विराट नगर सभ्यता भी कहा जाता है।
- उत्खननकर्ता - दयाराम साहनी (1936)
विशेषताएं
- यहां से एक सोने का कलश प्राप्त हुआ ऐसा माना जाता है कि उस कलश में गौतम बुद्ध की अस्थिया थी।
- मथुरा शैली में गौतम बुद्ध की प्रतिमा मिली।
- बौद्ध विहार मंदिर व स्तूप
- बुना हुआ वस्त्र।
- सम्राट अशोक का भाब्रु का शिलालेख मिला।
- यहाँ से 36 सिक्के मिले जिसमे 8 सिक्के पंचमार्क सिक्के थे एवं 28 युनानी शासको के जिसमे 16 सिक्के युनानी शासक मिनेन्डर के थे।
सुनारी सभ्यता - सुनारी (झुंझनूं)
- उत्खननकर्ता- राजस्थान राज्य पुरातत्व विभाग
विशेषताएं
- राजस्थान मे सबसे प्राचीनतम लौह अयस्क से लौह बनाने कि भट्टीयो के प्रमाण।
- लौहे से बना कटोरा
- तांबा गलाने की भट्टीया
बालाथल सभ्यता- बालाथल (उदयपुर)
इसकी खोज व उत्खनन वीरेंद्र नाथ मिश्र ने 1993 मे किया।
विशेषताएं
- बुना हुआ वस्त्र मिला।
- गाय व बैल कि मृणमुर्तिया।
- कंकाल कि प्राप्ति हुई जो कुष्ठरोग का सबसे पुरातन प्रमाण है।
- दुर्ग जैसी इमारतों के अवशेष।
- 11 कमरो वाला भवन।
- कृषि के साथ पशुपालन के प्रमाण।
औझीयाना - भीलवाडा
- उत्खनन कर्ता - राजस्थान राज्य पुरातत्व विभाग(2000-2001)
कुराडा स्थल - कुराडा (नागौर)
- 1934 मे उत्खनन के दौरान यहा से कुल 103 ताम्र पत्रो कि प्राप्ति हुई, इसलिए इसे औजारो कि नगरी भी कहा जाता है।
जोधपुरा सभ्यता- जयपुर
- इस सभ्यता का विकास साबी नदी के किनारे जोधपुरा(जयपुर) मे हुआ।
- कपिसवर्णी मृदभाण्डो का एक मीटर जमाव पाया गया है।
नगर - टोंक
उपनाम - मालव नगर , करकोटा नगर
विशेषताएं
- पंचमार्क सिक्के मिले।
- मालव गणराज्य के सिक्के।
- महिसासुर मर्दीनी कि मृणमुर्ति।
- सिंहअवरूढ माँ दुर्गा का अंकन।
नौह सभ्यता - नौह(भरतपुर)
- इसका विकास रूपारेल नदी के किनारे नौह (भरतपुर) में हुआ।
- उत्खनन कर्ता- रतनचन्द्र अग्रवाल(1963-64)
विशेषताएं
- यहां पर कुल पांच संस्कृतियों के अवशेष मिले
- पक्षी चित्रित ईट मिली।
- यक्ष या जोख बाबा की मूर्ति मिली।
कंणसव - कोटा
मोरी शासक राजा धवल का शिलालेख मिला।
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