". राजस्थान इतिहास के प्रमुख स्त्रोत ~ Rajasthan Preparation

राजस्थान इतिहास के प्रमुख स्त्रोत


राजस्थान के अभिलेख/शिलालेख/प्रशस्ति एवं सिक्के

प्रशस्ति- किसी व्यक्ति या वंश कि प्रशंसा मे लिखा गया लेख प्रशस्ति कहलाता है।

शिलालेख - शिलाओ या पत्थरो पर लिखा गया लेख शिलालेख कहलाता है।

राज्य अभिलेखागार - बीकानेर

राष्ट्रीय अभिलेखागार - दिल्ली

कर्नल जेम्स टॉड को राजस्थान इतिहास का जनक कहा जाता है।

अभिलेख

घोसुण्डी शिलालेख - चित्तौड़गढ़

  • खोज - कविराज श्यामलदास द्वारा(1887ई)
  • भाषा - संस्कृत
  • लिपी - ब्रह्मी
  • राजस्थान मे वैष्णव या भाग्वत सम्प्रदाय का सबसे प्राचीनतम प्रमाण इसी शिलालेख में मिलता है।

मानमौरी का शिलालेख - जयपुर 

  • यह शिलालेख मानसरोवर झील के किनारे प्राप्त हुआ।
  • इस शिलालेख से मौर्य वंश के बारे मे जानकारी प्राप्त होती है।
  • कर्नल जेम्स टाॅड ने इंग्लैंड जाते समय इस शिलालेख को समुद्र में फैक दिया था।

भाब्रु का शिलालेख- विराटनगर(जयपुर)

  • यह शिलालेख बीजक की पहाड़ी, विराटनगर (जयपुर)से प्राप्त हुआ।
  • खोज - कैप्टन बर्ट (1837 मे)
  • भाषा- पाली
  • लिपी - ब्रह्ममी
  • वर्तमान में यह कलकत्ता म्युजियम मे संग्रहीत है।

बैराठ का शिलालेख- जयपुर 

  • खोज - कालाईल

बडली का शिलालेख- बडली गांव(अजमेर)

  • खोज - गौरीशंकर हीरानंद औझा
  • यह शिलालेख भिलोत माता के मंदिर पर मिला, यह 443ई पू का शिलालेख है जो राजस्थान का सबसे प्राचीनतम अभिलेख माना जाता है।

किर्तिस्तम्भ प्रशस्ति

  • यह प्रशस्ति किर्तीस्तम्भ(चित्तौड़गढ़) पर उत्कीर्ण है।
  • भाषा- संस्कृत 
  • रचयिता - सर्वप्रथम अत्रि भट्ट ने इस प्रशस्ति को लिखना प्रारंभ किया किंतु इनकी मृत्यु हो जाने के कारण इनके पुत्र महेश भट्ट ने इसे पुरा किया।
  • इस प्रशस्ति से मेवाड के महाराणाओ(गुहिल वंश से महाराणा कुंभा तक) कि जानकारी प्राप्त होती है 
  • इस प्रशस्ति मे महाराणा कुंभा कि राणौ रासो, हाल गुरू एवं अभिनव भारताचार्य कि उपाधियो का वर्णन मिलता है।
  • इस प्रशस्ति से महाराणा कुंभा द्वारा रचित ग्रंथो एवं विजयो का भी वर्णन मिलता है।

बिजौलिया शिलालेख - भीलवाड़ा

  • बिजोलिया में पार्श्वनाथ जैन मंदिर से यह शिलालेख प्राप्त हुआ। इसे श्रावक लोलाक द्वारा 1170ई मे उत्कीर्ण करवाया गया।
  • रचयिता- गुण भद्र
  • भाषा - संस्कृत 
  • इस शिलालेख के अनुसार चौहानों की उत्पत्ति वत्स गोत्र ब्राह्मण से हुई है।
  • इस शिलालेख के अनुसार चौहान वंश की स्थापना वासुदेव चौहान ने की थी एवं सांभर झील का निर्माण भी वासुदेव चौहान ने करवाया था।

आमेर का शिलालेख - जयपुर 

  • इस शिलालेख में आमेर के शासक पृथ्वीराज कछवाहा से लेकर मिर्जा राजा मानसिह तक के इतिहास की जानकारी मिलती है।
  • इस शिलालेख में आमेर के शासकों को रघुवंश तिलक कहा गया है, इसमे कछवाहा शासको को श्री राम के पुत्र कुश का वंशज माना है।
  • इसमें जमुवारामगढ दुर्ग का निर्माण मान सिंह द्वारा करवाने का वर्णन मिलता है
  • इसमें जहांगीर की प्रशंसा की गई है एवं निजाम शब्द का उल्लेख मिलता है।

कुंभलगढ प्रशस्ति - राजसमन्द

  • यह प्रशस्ति कुंभ स्वामी मंदिर(कुंभलगढ़ दुर्ग)में उत्कीर्ण है।
  • कुंभ स्वामी मंदिर को मामा देव मंदिर भी कहा जाता है।
  • भाषा- संस्कृत 
  • रचयिता - कान्हा व्यास
  • इस प्रशस्ति में राणा हम्मीर को विषम घाटी पंचानन कहां गया है।

राज प्रशस्ति - राजसमन्द 

  • यह प्रशस्ति राजसमंद झील के किनारे महाराणा राज सिंह द्वारा 25 शिलाओ पर उत्कीर्ण करवाई गई।
  • भाषा- संस्कृत 
  • रचयिता- रणछोड़ भट्ट तैलंग
  • इस प्रशस्ति में कुल 24 सर्ग एवं 1106 श्लोक है।
  • इस प्रशस्ति के अंतिम 3 सर्ग जय सिंह द्वारा लिखवाए गए।
  • यह विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति है।
  • मेवाड़ मुगल संधि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
  • मेवाड के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
  • महाराणा राज सिंह चारुमति के विवाह के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है।

जगन्नाथ प्रशस्ति - उदयपुर

  • इस प्रशस्ति का निर्माण महाराणा जगत सिंह द्वारा जगदीश मंदिर उदयपुर में करवाया गया।
  • भाषा - संस्कृत 
  • रचयिता- कृष्ण भट्ट 
  • इसमें हल्दीघाटी के युद्ध का वर्णन मिलता है।

एकलिंग नाथ प्रशस्ति

  • इस प्रकृति का निर्माण कालभोज द्वारा एकलिंग नाथ मंदिर पर करवाया गया।
  • इसमें कालभोज के सन्यास लेने का उल्लेख मिलता है।

रणकपुर चित्तौड़ का शिलालेख- चित्तौड़गढ़ (971ई)

इस शिलालेख के अनुसार मेवाड़ में महिलाओं का मंदिरों में प्रवेश वर्जित था।

रणकपुर प्रशस्ति - पाली

  • भाषा- नागरी व संस्कृत
  • यह प्रशस्ति रणकपुर जैन मंदिर मे उत्कीर्ण है।
  • रचयिता- देपाक

चीरवा का शिलालेख - उदयपुर

  • इतने सती प्रथा का उल्लेख मिलता है।
  • इसमें गुहिल वंश के शासकों की जानकारी प्राप्त होती है।

नौलखा बावडी शिलालेख- डूंगरपुर 

  • इससे वागड के चौहान वंश की जानकारी प्राप्त होती है।

नेमिनाथ प्रशस्ति - सिरोही 

समिदेश्वर प्रशस्ति - चित्तौड़गढ़ 

सिक्के

  • सिक्कों का अध्ययन न्यूमिसमैटिक्स कहलाता है।
  • विम केडफिसस भारत में सबसे पहले सोने के सिक्के चलाने का श्रेय इन्हीं को जाता है।
  •  मेवाड़ में सबसे पहले सोने के सिक्के चलाने का श्रेय बप्पा रावल को जाता है।
  • द करेंसीज ऑफ हिंदू स्टेट ऑफ राजपूताना नामक पुस्तक केन ने लिखी थी।
  • पंचमार्क सिक्के यह राजस्थान के सबसे प्राचीनतम सिक्के माने जाते हैं इन्हें आहत मुद्रा भी कहा जाता है। भारत में सर्वाधिक पंचमार्क सिक्के रेढ (टोंक) से मिले हैं।
  • राजस्थान में प्रतिहार कालीन सिक्के भीनमाल व सांचौर में मिले हैं।
  • राजस्थान में सिक्के ढालने के लिए टकसाल आमेर के शासकों ने स्थापित की।
  • गधिया सिक्का राजस्थान में गधे की आकृति में चित्रित सिक्कों को गधिया सिक्का कहा जाता है। मारवाड़ के गजसिंह राठौड़ ने गधिया सिक्के चलाएं।
  • कलदार - अंग्रेजो के समय जारी मुद्रा।

विजयशाही सिक्का - मारवाड़

तमंचाशाही सिक्का - धौलपुर 

झाङशाही सिक्का - जयपुर 

सलीमशाही सिक्का - प्रतापगढ़

आलमशाही सिक्का - प्रतापगढ़ 

चांदोडी सिक्का - मेवाड

अखैशाही सिक्का - जैसलमेर 

मदनशाही सिक्का - झालावाड़ 

भिलाडी, त्रिशुलिया, ढींगला - भीलवाड़ा 

ग्यारह सरिया - शाहपुरा

डोडिया सिक्के - जैसलमेर

यह सबल सिंह के काल मे चलते थे।

अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्त्रोत

खेरोदा के ताम्रपत्र से महाराणा कुंभा के प्रायश्चित का वर्णन मिलता है।

ढाई दिन के झोपड़े पर निर्माताओं ने अपने नाम फारसी में अंकित किए यह भारत का सबसे प्राचीन फारसी लेख है।

1669 के शाहबांज (बांरा) के लेख में औरंगजेब द्वारा जजिया कर लगाने का उल्लेख मिलता है।


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