". मानव भूगोल : प्रकृति व विषय क्षेत्र ~ Rajasthan Preparation

मानव भूगोल : प्रकृति व विषय क्षेत्र


मानव भूगोल : प्रकृति व विषय क्षेत्र 

मानव भूगोल अर्थ एवं परिभाषा

मानव भूगोल को भूगोल की आधारभूत शाखा माना गया है। भूगोल क्षेत्र वर्णनी विज्ञान है, जिस में क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य में तथ्यो का अध्ययन किया जाता है। भूगोल एक अध्ययन क्षेत्र के रूप में समाकलनात्मक अनुभाविक, एवं व्यावहारिक है. जिसमें किसी घटना का स्थान एवं समय के सन्दर्भ में भौगोलिक ढंग से अध्ययन किया जाता है। भूगोल पृथ्वी को मानव का घर समझते हुये उन सभी तथ्यों का अध्ययन करता है जिन्होंने मानव को घोषित किया है। इसमें प्रकृति एवं मानव के अध्ययन पर जोर दिया गया है। ये दोनों अविभाज्य तत्त्व है और इन्हें समग्रता में देखा जाना चाहिये। इन दोनों आधारभूत घटकों से सम्बन्धित भूगोल की क्रमशः दो अलग-अलग शाखाएँ विकसित हुई है। भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल भौतिक भूगोल भौतिक पर्यावरण का अध्ययन करता है। मानव भूगोल भौतिक पर्यावरण एवं सांस्कृतिक पर्यावरण के बीच सम्बन्ध, मानवीय परिघटनाओं के स्थानिक वितरण एवं संसार के विभिन्न भागों में सामाजिक और आर्थिक विभिन्नताओं का अध्ययन करता है। दूसरे शब्दों में मानव भूगोल मानव वर्गों और उनके वातावरण की शक्तियों, प्रभावों तथा प्रतिक्रियाओं के पारस्परिक कार्यात्मक सम्बन्धों का प्रादेशिक आधार पर किया जाने वाला अध्ययन है। कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से मानव भूगोल को निम्न प्रकार से समझ सकते हैं

मानव भूगोल मे मानवीय तथ्यों का अध्ययन आता है। यह मानव पर्यावरण के मध्य अन्तर्सम्बन्धों को बताता है।।

कृषि, पशुपालन, उद्योग, व्यवसाय, किए जो जाते है।

परिवहन, संचार और व्यापार इसके अंदर आते है।।

मानव भूगोल का प्रादुर्भाव और विकास मुख्यतः शताब्दी से माना जाता है। समय के साथ मानव- वातावरण सम्बन्धों में आये बदलाव को ध्यान में रखते हुए कई विद्वानों अपने-अपने दृष्टिकोण से मानव भूगोल की परिभाषा दी है। कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ अग्रलिखित है:

आधुनिक मानव भूगोल के जन्मदाता जर्मन भूगोलवेत्ता फ्रेडरिक रेटजेल, के अनुसार "मानव भूगोल मानव समाजो और धरातल के बीच सम्बन्धों का संश्लेषित अध्ययन है। रेटजेल ने यह परिभाषा अपनी पुस्तक एन्थ्रोपो-ज्योग्राफी में दी। उन्होने पार्थिक एकता पर जोर देते हुए मनुष्य के क्रियाकलापो पर वातावरण के प्रभाव का वर्णन किया।

रेटजेल की शिष्या व प्रसिद्ध अमेरिकन भूगोलवेत्ता एलन सैम्पल के अनुसार "मानव भूगोल चंचल मानव और अस्थायी पृथ्वी के पारस्परिक परिवर्तनशील सम्बन्धो का अध्ययन है।"

एलन सैम्पल नियतिवाद की कट्टर समर्थक थी तथापि उनकी परिभाषा अन्य नियतिवादियों की अपेक्षा अधिक विस्तृत है। मानव अपने विकास की प्राथमिक अवस्था प्रारम्भ से ही सक्रिय रह है, उसके समस्त क्रिया-कलापो का प्रभाव वातावरण पर पड़ता है।

विडाल डी ला ब्लाश, एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी मानव भूगोलवेत्ता थे। जिन्होनें संभववाद की नींव रखी। उनके अनुसार "मानव भूगोल पृथ्वी और मानव के पारस्परिक सम्बन्धो को एक नया विचार देता है। जिसमें पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवों के पारस्परिक सम्बन्धो का अधिक संश्लिष्ट ज्ञान शामिल है।"

डिकेन और पिट्स ने मानव भूगोल मे" मानव और उसके कार्यों को समाविष्ट किया है।"

सारांश परिभाषा - मानव भूगोल वह विज्ञान है जिसमें पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों में मानव समूहों के प्राकृतिक व सांस्कृतिक वातावरण की शक्तियों, प्रभावों व प्रतिक्रियाओं के पारस्परिक सम्बन्धों और स्थानिक संगठन का अध्ययन, मानवीय प्रगति के उद्देश्यों से प्रादेशिक आधार पर किया जाता है। 

मानव भूगोल की प्रकृति

प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता जीन ब्रून्श के अनुसार "जिस प्रकार अर्थशास्त्र का सम्बन्ध कीमतों से, भू-गर्भशास्त्र का सम्बन्ध चट्टानों से, वनस्पतिशास्त्र का सम्बन्ध पौधों से. मानवाचार-विज्ञान का सम्बन्ध जातियों से तथा इतिहास का सम्बन्ध समय से है, उसी प्रकार (भूगोल का केन्द्र बिन्दु स्थान है। जिसमे 'कहाँ' व 'क्यो जैसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास किया जाता है।"

पृथ्वी पर जो भी मानव निर्मित दृश्य दिखाई देते हैं उन सबका अध्ययन मानव भूगोल के अन्तर्गत आता है। अतः विषय की प्रकृति में मानवीय क्रिया कलाप केन्द्रीय बिन्दु है। मानवीय क्रियाकलापों का विकास कहाँ, कब व कैसे हुआ आदि प्रश्नों को गोगोलिक से प्रस्तुत करना ही मानव भूगोल की प्रकृति को प्रकट करता है।

मानव भूगोल विभिन्न प्रदेशों के पारिस्थितिक-समायोजन और क्षेत्र संगठन के अध्ययन पर विशेषतः केन्द्रित रहता है। मानव क भूगोल में यह विश्लेषण किया जाता है कि पृथ्वी के किसी क्षेत्र में रहने वाला मानव समूह अपने जैविक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास के लिए वातावरण का उपयोग किस प्रकार करता है और वातावरण में क्या-क्या बदलाव लाता है। मानव भूगोल जनसंख्या, प्रदेशों और संसाधनों की व्यूह रचना करता है। मानव अपने पर्यावरण के अनुसार क्रियाकलापों व रहन-सहन में अनुकूलन रूपान्तरण व समायोजन करता है। इस प्रकार हम देखते है कि मानव भूगोल क्षेत्र विशेष में समय के साथ मानव व वातावरण के सभी जटिल तथ्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन मानव को केन्द्रीय भूमिका में मानकर करता है। मानव भूगोल का विषय क्षेत्र मानव भूगोल में भिन्न-भिन्न प्रदेशों की (i) जनसंख्या (ii)वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों (iii) सांस्कृतिक भूदृश्यों व जीवन की मान्यताओं (iv) पारस्परिक सम्बन्धो का अध्ययन मानव की उन्नति के उद्धेश्य से होता है। हंटिंगटन ने मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र को दो वर्गों में बाँटा है- (i) भौतिक दशाएँ और (ii) मानवीय अनुक्रिया।

मानव भूगोल का विषय क्षेत्र व्यापक है। मानव भूगोल के विषय क्षेत्र के विभिन्न पहलूओं को आरेख 1.1 के माध्यम से दर्शाया गया है।


मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र के मुख्य पहलूओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है

1) जनसंख्या

मानव भूगोल जनसंख्या के वितरण प्रारूप जनसमूहले प्रवास, अधिवास तथा उसकी प्रजातिगत सामाजिक संरचना का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में विवेचन करता है।

2 प्रदेश के प्राकृतिक संसाधन

प्राकृतिक वातावरण के विभिन्न तत्वों का अध्ययन तथा मानव क्रियाकलापों पर इन तत्वों के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। इसमें प्राकृतिक संसाधन, भूमि जल, वन खनिज का अध्ययन सम्मिलित होता है।

3 सांस्कृतिक वातावरण 

पृथ्वी पर जो भी दृश्य मनुष्य की क्रियाओं द्वारा बने हुये दिखाई पड़ते है, वे सब मानव भूगोल के अध्ययन में शामिल है। सांस्कृतिक तत्त्व मानव व पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्ध को प्रकट करते है। सांस्कृतिक तत्वों के अन्तर्गत जीव जन्तुओं एवं मानव का वातावरण के साथ अनुकूलन, जीविका के साधन, परिवहन, भवन निर्माण सामग्री, अधिवास आदि सम्मिलित है। 

4. कालिक अनुक्रम

मानव समाज और उसके भौगोलिक सम्बन्ध स्थिर नहीं है। यह सभी सम्बन्ध क्रियात्मक है। मानव के सांस्कृतिक विकास के साथ-साथ उत्तरोतर अधिक गत्यात्मक व लोचपूर्ण होते जाते हैं।

5 नियोजन प्रादेशिक संगठन

भूगोलवेत्ता को केवल इतना ही नहीं मालूम करना होता है कि पृथ्वी तल पर मानवीय दशाएँ किस प्रकार वितरित है, वरन् यह भी जानना आवश्यक है कि उनका वितरण उस विशेष ढंग से क्यों है। उपर्युक्त विभिन्नताएँ या तो प्राकृतिक वातावरण के कारण होती है या मानवीय क्रियाओं के कारण होती है। मनुष्य ने पृथ्वी पर अपनी छाप अपनी क्रियाओं द्वारा कैसे लगायी है? का अध्ययन भी मानव भूगोल में किया जाता है। संसाधनों का समाज के विभिन्न वर्गो मे वितरण, उनका उपयोग तथा संरक्षण भी मानव भूगोल का महत्त्वपूर्ण विषय क्षेत्र है। मानव भूगोल के अध्ययन का दूसरा पक्ष भविष्य के परिप्रेक्ष्य में मानव वातावरण तंत्र का अध्ययन करना है। असन्तुलित विकास के कारण प्रकृति असंतुलित होती जा रही है। आज वातावरण अवनयन व प्रदूषण की समस्याएँ बढ़ती जा रही है। अतः वातावरण नियोजन भी मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र का अभिन्न अंग हो गया है।

6.अन्य प्रदेशों से सम्बन्ध

पृथ्वी पर मानव एकाकी नहीं है. उसके पृथ्वीतल पर फैले विभिन्न क्षेत्रों से आर्थिक सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनैतिक सम्बन्ध भी होते हैं। उसके इन का अध्ययन भी मानव भूगोल में होता है।

मानव भूगोल का विकास

पृथ्वी की सतह पर पर्यावरण के साथ अनुकूलन व समायोजन की प्रक्रिया तथा इसका रूपान्तरण मानव के अभ्युदय के साथ ही आरम्भ हो गया था। यदि हम मानव व वातावरण की पारस्परिक क्रियाओं से मानव भूगोल के प्रारम्भ की कल्पना करें तोइसकी जड़ें इतिहास के संदर्भ में अत्यन्त गहरी है अतः मानव भूगोल के विषयों में एक दीर्घ कालिक सांतत्य पाया जाता है। समय के साथ विषय को स्पष्ट करने वाले उपागमों में परिवर्तन आया है। यह विषय की परिवर्तनशील प्रकृति को दर्शाता है। अध्ययन की दृष्टि से मानव भूगोल के विकास को तीन युगों में विभक्त किया जाता है। 

1. प्राचीन काल

प्राचीन काल मे विभिन्न समाजों के बीच अन्योन्य क्रिया न्यून थी। एक दूसरे के बारे मे ज्ञान सीमित था तकनीकी विकासका स्तर निम्न था तथा चारों तरफ प्राकृतिक वातावरण की छाप थी है भारत, चीन, मिश्र, यूनान व रोम की प्राचीन सभ्यताओं के लोग के प्राकृतिक शक्तियों के प्रभाव को मानते थे। वेदों में सूर्य, वायु, अग्नि जल. वर्षा आदि प्राकृतिक तत्त्वों को देवता मानकर पूजा अर्चना क जाती थी। यूनानी दार्शनिक थेल्स व एनेक्सीमेंडर ने जलवा वनस्पति व मानव समाजों का वर्णन किया। अरस्तु न वातावरण प्रभाव की वजह से ठण्डे प्रदेशों के मानव को बहादुर परन्तु चिंत में कमजोर बताया जबकि एशिया के लोगों को सुस्त चिंतनशील बताया। इतिहासकार हैराडोट्स ने घुमक्कड़ जाति तथा स्थायी कृषक जातियों के जीवन पर वातावरण के प्रभाव व उल्लेख किया। हिकेटियस ने विश्व के बारे में उपलब्ध भौगोलि ज्ञान को व्यवस्थित रूप में रखने के कारण उन्हें भूगोल का जन कहा जाता है। स्ट्रेबो व उसके समकालीन रोमन भूगोलवेत्ताओं मानव व उसकी प्रगति के स्तर पर भू- पारिस्थितिकीय स्वरूपों के प्रभावो को स्पष्ट किया।

2. मध्यकाल

इस काल में नौ चालन सम्बन्धी कुशलताओं व अन्वेषणा तथा तकनीकी ज्ञान व दक्षता के कारण देशों तथा लोगों के विषय में मिथक व रहस्य खुलने लगे। उपनिवेशीकरण और व्यापारिक रूचियों ने नये क्षेत्रों में खोजों व अन्वेषणों का विश्व ज्ञानकोषिय न विवरण प्रकाश में आया। इस काल में अन्वेषण, विवरण व प्रादेशिक विश्लेषण पर विशेष जोर रहा। प्रादेशिक विश्लेषण में प्रदेश के सभी पक्षों का विस्तृत वर्णन किया गया। मत यह था कि सभी प्रदेश पूर्ण इकाई व पृथ्वी के भाग है। इस प्रदेशों की समझ पृथ्वी को पूर्ण रूप में झने में सहायता करेगी।

3. आधुनिक काल

इस काल की शुरूआत जर्मन भूगोलवेत्ताओं हम्बोल्ट, रिटर फ्रोबेल, पैशेल, रिचथोफेन व रेटजेल ने की। फ्रांस में मानव भूगोल का सबसे अधिक विकास हुआ। रेटजेल, विडाल-डी-ला-ब्लांश, ब्रूस, दी मार्तोन, डिमांजियाँ व फ्रेब्रे नें मानव भूगोल पर कई ग्रंथ लिखे। अमेरिका व ग्रेट ब्रिटेन में भी मानव भूगोल का तेजी से विकास हुआ। अमेरिका में एलन सैम्पल, हटिंगटन, बौमेन, कार्ल सॉवर, ग्रिफ्फिथ टेलर एवं में हरबर्टसन, मैकिण्डर, रॉक्सबी तथा फ्लुअर ने मानव भूगोल के विकास में विशेष योगदान दिया। 20वीं सदी में मानव भूगोल का विकास सभी देशों में हुआ।

फ्रेडरिक रेटजेल जिन्हें आधुनिक मानव भूगोल का संस्थापक कहा जाता है ने मानव समाजों एवं पृथ्वी के धरातल के पारस्परिक सम्बधों के संश्लेशणात्मक अध्ययन पर जोर दिया। इस काल के प्रारम्भिक दौर में मानव वातावरण सम्बन्धों का नियतिवादी, संभववादी व नवनियतिवादी विचारधाराओं के अनुसार अध्ययन किया गया। नियतिवाद मे प्रकृति व संभववाद में मानव को अधिक प्रभावी माना। 21वीं सदी के आरम्भ में नव नियतिवाद के अनुसार दोनों के पारस्परिक सम्बन्धों में सामंजस्य पर जोर दिया गया। यह विचार धारा 'रूको व जाओ' के नाम से भी जानी जाती है। नवनियतिवाद के प्रर्वतक ग्रिफिक्थ टेलर थे।

1930 के दशक में मानव भूगोल का विभाजन 'सांस्कृतिक भूगोल' एवं आर्थिक भूगोल के रूप में हुआ विशेषीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण मानव भूगोल की अनेक उप-शाखाओं जैसे राजनैतिक भूगोल सामाजिक भूगोल, चिकित्सा भूगोल का उद्भव हुआ।

द्वितीय विश्वयुद्ध (1945) के बाद के दो दशको में मानव भूगोल की विषय वस्तु में स्थानिक संगठन उपागम द्वारा विभिन्न मानवीय क्रियाओं के प्रतिरूपों की पहचान करना रहा था।

द्वितीय विश्वयुद्ध (1945 ) के बाद के दो दशको में मानव भूगोल की विषय वस्तु में स्थानिक संगठन उपागम द्वारा विभिन्न मानवीय क्रियाओं के प्रतिरूपों की पहचान करना रहा था।

1970 के बाद मानव भूगोल में अनेक दार्शनिक विचारधाराओं का प्रभुत्व रहा। मानव कल्याण परक विचारधारा का सम्बन्ध लोगों के सामाजिक कल्याण के विभिन्न पक्षों से हैं। इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास जैसे पक्ष शामिल है। आचरणपरक विचारधारा के अनुसार मनुष्य आर्थिक क्रियाएँ करते समय हमेशा आर्थिक लाभ पर ही विचार नहीं करता बल्कि उसके अधिकांश निर्णय यथार्थ पर्यावरण की अपेक्षा मानसिक मानचित्र ( आचरण पर्यावरण ) पर आधारित होते है। विचारों में बदलाव आंशिक रूप से विश्लेषण के मापदण्डो में परिवर्तन के कारण आते है। मानव भूगोल में अब अपने आप में प्रत्येक स्थानीय संदर्भ की समझ के महत्त्व पर जोर दिया जा रहा है। इस प्रकार मानव भूगोल निरन्तर विकास के साथ गतिशील है। समय के साथ इसका महत्त्व, अध्ययन क्षेत्र की व्यापकता व अन्य विषयों के साथ सम्बन्ध बढ़ रहे हैं। आज भूगोल की इस शाखा का अध्ययन सम्पूर्ण विश्व में किया जा रहा है।

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