". चालुक्य वंश ~ Rajasthan Preparation

चालुक्य वंश


 बादामी / वातापी चालुक्य - (543 - 757 ई. से 552 – 750 ई. तक)

इस शाखा का संस्थापक पुलकेशिन प्रथम था।इस शाखा की राजधानी वातापी / बादामी कर्नाटक राज्य के बीजापुर में स्थित है।यह शाखा चालुक्यों की मूल / प्राचीनतम शाखा मानी जाती है।

इसकी जानकारी के प्रमुख स्रोत – अभिलेख है।

ऐहोल अभिलेख

ऐहोल अभिलेख प्रशस्ति के रूप में है।यह अभिलेख कर्नाटक के बीजापुर में स्थित है।

मेगुती मंदिर (जैन मंदिर) के पश्चिमी भाग की दीवार पर उत्कीर्ण है।यह अभिलेख 643 ई. का माना जाता है।

इस अभिलेख की संस्कृत भाषा है।इस अभिलेख की शैली पद्य (काव्य) शैली है।

लिपि: दक्षिणी ब्राह्मी

इसकी रचना पुलकेशिन द्वितीय के जैन दरबारी  'रवि कीर्ति' द्वारा रचित है।इस अभिलेख में रवि कीर्ति ने स्वयं की तुलना  'तुलसीदास' व  'भास' के साथ की है।

चालुक्य वंश व उसके शासक पुलकेशिन द्वितीय के बारे में इस अभिलेख से जानकारी मिलती है।

इसमें पुलकेशिन द्वितीय को ‘सत्याश्रय’ अर्थात् सत्य को आश्रय देने वाला कहा गया है।इसमें पुलकेशिन द्वितीय व हर्ष के मध्य हुए युद्ध की जानकारी मिलती है।

इस युद्ध में पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को नर्मदा के तट पराजित करके  'परमेश्वर' की उपाधि धारण की थी।

नोट:- ऐहोल को मंदिरों का नगर कहा जाता है। जिनेन्द्र मंदिर व मेंगुती मंदिर प्रसिद्ध है।

महाकूट अभिलेख:

महाकूट स्तंभ लेख - कर्नाटक के प्राप्त 

कब : 602 ई. का माना जाता है।

इस स्तंभ लेख में पुलकेशिन प्रथम से पूर्व के दो शासकों - उल्लेख जय सिंह रणराग (पुलकेशिन प्रथम के पिता)इनके अलावा - महाकूट स्तंभ लेख से कीर्तिवर्मन प्रथम की जानकारी भी मिलती है।

 हैदराबाद दानपात्र :612 ई. का है।

इसमें पुलकेशिन II द्वारा दिए गए दान के बारे में उल्लेख मिलता है।

चालुक्य कौन? इतिहासकारों ने अलग-अलग मत प्रस्तुत किए है।

 1. विसेंटस्मिथ : चालुक्य ‘चप’ जाति के लोग थे। यह मध्य एशिया के निवासी थे।

2. ह्रेनसांग :641 ई. में पुलकेशिन II के दरबार में गया था।इसने चालुक्यों को ‘क्षत्रिय’ बताया है। 

3. डा. निलकण्ठ शास्त्री :चालुक्यों को कदम्बों का सामंत बताया है।इनके मूल वंश का नाम ‘चल्क्य’ जो बाद में चालुक्य कहलाए।इन्हें क्षत्रिय बताया है।

पुलकेशिन प्रथम चालुक्य वंश के संस्थापक, इसके दो पुत्र थे।

1. कीर्तिवर्मन 

2. मंगलेश

कीर्तिवर्मन के दो पुत्र थे।

1. पुलकेशिन 

2. कुब्ज विष्णुवर्धन

 पुलकेशिन II ने अपने चाचा की हत्या कर दी  एवं स्वयं शासक बना।

कुब्ज विष्णुवर्धन वेंगी चालुक्य वंश का संस्थापक था।    

पुलकेशिन प्रथम (543 - 566 ई.)

वातापी चालुक्य वंश का संस्थापक था।

इसने दक्षिणापथ पर विजय प्राप्त की तथा अश्वमेध व वाजपेय यज्ञों का आयोजन किया था।

कीर्तिवर्मन प्रथम : (566 - 597 ई.)

पुलकेशिन प्रथम का पुत्र था।

कीर्तिवर्मन प्रथम को वातापी चालुक्यों का प्रथम निर्माता कहा जाता है।

उपाधियाँ : सत्याश्रय, व पृथ्वीवल्लभऐहोल अभिलेख में कीर्तिवर्मन प्रथम को, कदम्बो, नलों व मोर्यो के लिए कालरात्री के समान बताया गया है।

सामाज्य विस्तार हेतु किए गए अभियान:

1. वनवासी अभियान :कहाँ - कर्नाटक यहाँ कदम्ब वंश के शासक अजयवर्मन को पराजित कर उसकी राजधानी पर अधिकार कर लिया।

2. वेल्लूर अभियान :- नलवंशी शासकों को पराजित किया।वेल्लूर को नलवाड़ी कहा जाता था।

3. कोंकण अभियान:-यहाँ परवर्ती मोर्य शासन था, कीर्तिवर्मन ने इन्हे पराजित कर राजधानी “धारापुरी” पर अधिकार कर लिया।

धारापुरी को “पश्चिमी समुन्द्र की देवी” कहा जाता है,

कोंकण पर अधिकार होने के कारण कीर्तिवर्मन का अधिकार क्षेत्र गोवा तक हो गया था।

गोवा का प्राचीन नाम “रेवति द्वीप” कीर्तिवर्मन ने बादामी का राजधानी के रूप में पुन: निर्माण करवाया तथा यहाँ अनेक सुंदर मंदिर व इमारतों का निर्माण बरवाया अत: इसे बादामी का प्रथम निर्माता कहा जाता है।

मंगलेश:-कीर्तिवर्मन प्रथम की मृत्यु के बाद शासक बना।कीर्तिवर्मन का भाई था।

अभियान:-1.कलचूरी अभियान:-इस क्षेत्र में खानदेश, मालव व गुजरात का दक्षिणी भाग शामिल था।

आक्रमण क्यों:- मंगलेश उत्तर भारत पर विजय प्राप्त करना चाहता था।मंगलेश ने कलचुरी राज्य के शासक बुद्धराज को पराजित किया।

2. कोंकण (M.H का पश्चिमी तट) अभियानउल्लेख :- नरूरदान पत्रलेख (M.H)शासक – स्वामीराज

स्वामीराज चालुक्यों का सांमत था, जिसकी नियुक्ति कीर्तिवर्मन प्रथम द्वारा दी गई।

मंगलेश ने स्वामीराज कपर आक्रमाण कर मार डाला।

उपाधियाँ:-अभियानों को पूर्ण करने के बाद निम्न उपाधियाँ धारण की:-

1. परमभागवत – वैष्णव धर्म का अनुयायी होने के कारण

2. रणविक्रांत

3. श्री पृथ्वीवल्लभ

मंगलेश ने कीर्तिवर्मन प्रथम द्वारा प्रारंभ करवाए गए बादामी गुहा मंदिर के निर्माण को पूर्ण करवाया तथा उसमें भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करवाई।

पुलकेशियन II

 पुलकेशिन ने कदम्बों को पराजित किया।लाट व मालवा प्रदेशेां पर विजय प्राप्त की।

630 ई. – 634 ई. के मध्य नर्मदा के तट पर हर्ष को पराजित किया।

चालुक्य पल्लव संघर्ष:-

यह संघर्ष प्रारंभ करने का श्रेय- पुलकेशिन द्वितीय को जाता है।जो लगभग 200 वर्ष तक संघर्ष चला।पल्लव शासक महेनद्रवर्मन प्रथम को पराजित कर काँची के उत्तरी-पूर्वी हिस्से पर अधिकार कर लिया।इसी भाग पर पूर्वी चालुक्य (वेंगी) की नींव डाली – संस्थापक अपने भाई “कुब्ज विष्णुवर्धन” को बनाया।

महेन्द्र वर्मन मृत्यु के बाद पुन: काँची पर आक्रमण किया।

महेन्द्रवर्मन के पुत्र – नरसिंह वर्मन ने पुलकेशीन द्वितीय को पराजित किया।नरसिंह वर्मन ने श्रीलंका के शासक “मानवर्मा” की सहायता से पुलकेशियन द्वितीय को बादामी मे पुन: पराजित कर उसके शरीर पर “विजित” लिखवा दिया।नरसिंह वर्मन ने वातापीकोंड (वातापी को तोड़ने वाला) की उपाधि धारण की।पुलकेशिन द्वितीय ने शर्मसार होकर आत्महत्या कर ली।

नोट:- अंजता की गुफ संख्या 16 में पूलकेशिन द्वितीय को ईरानी राजदूत शाह परवते खुशरो द्वितीय का स्वागत करते हुए दिखाया गया है।

विक्रमादित्य प्रथम (655 ई. – 681 ई.)

 पुलकेशिन द्वितीय का पुत्र था।

येवूर अभिलेख (कर्नाटक) के अनुसार “पुलकेशिन II” की मृत्यु के बाद लगभग – 13 वर्ष तक पल्लव सांमत “अमर व आदित्यवर्मन” ने बादामी पर शासन किया था।

विक्रमादित्य ने अपनी नाना – गंग वंश के “दुर्रविनित” व अपने भाई जयसिंह वर्मन की सहायता से वातापी पर पुन: अधिकार किया।

अपने पिता की हत्या का बदला लेने हेतु पल्लवों पर आक्रमण कर नरसिंह वर्मन के पुत्र “महेन्द्रवर्मन द्वितीय” को मार डाला।

विजयादित्य - (681 ई. – 696 ई.) इसने पल्लव, केरल, चोल, पाण्डेय पर विजय प्राप्त की।

उपाधियाँ – राजाश्रय, युद्धधमल्लविजयादित्य :- (696 ई. – 733 ई.) 

सबसे लम्बे समय तक शासक रहा।श्रेष्ठ निर्माता माना जाता है।इसने पट्डक्कल (कर्नाटक) में विशाल शिव मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली में करवाया।

विक्रमादित्य II (733 ई.- 747 ई.) 

विजयादित्य का पुत्र था।इसके समय द.भारत पर अरबों का आक्रमण हुआ।इस आक्रमाण का सामना करने हेतु अपने भाई “जयसिंह वर्मन प्रथम” को भेजा।

जयसिंह ने अरबों को पराजित कर भागने पर बाध्य कर दिया।विक्रमादित्य II ने जयसिंह को “अवनिजनाश्रे (पृथ्वी के लोगों को शरण देने वाला)” उपाधी दी।

विक्रमादित्य II ने पल्लव शासक नंदीवर्मन को पराजित कर काँचीकोण्ड की उपाधी धारण की।

विक्रमादित्य II की दो पत्नीयाँ थी 

–1. लोकमहादेवी – लोकेश्वर शिव मंदिर का निर्माणवर्तमान (विरूपाक्ष) मंदिर कर्नाटक हम्पी

2. लोक्यमहादेवी – त्रिलोकेश्वर शिव मंदिरमल्लिकार्जुन शिव मंदिर हम्पी कर्नाटक

विक्रमादित्य - 733 ई. - 747 ई.3 बार पराजित किया - काँची पल्लव को।

 काँची कोड (काँची को तोड़ने वाला)विक्रमादित्य की दो पत्नियाँ थी।

1. लोक महादेवी - इसने लोकेश्वर शिव मंदिर बनवाया।इसके अन्य नाम लोकेश्वर देवालयविरूपाक्ष शिव मंदिर

2. त्रिलोक्य महादेवी - त्रिलोकेश्वर शिव मंदिरइसे मल्लिकार्जुन मंदिर भी कहा जाता है।कैलास पर्वत को उठाते हुए रावण का चित्रबलि का वध करते राम का चित्रणकृष्ण लीला का चित्रांकन भी इस मंदिर में मिलता है।

कीर्तिवर्मन II (747 ई. - 757 ई.)

कीर्तिवर्मन ने अपने पिता के शासनकाल के दौरान ही पल्लवों को पराजित किया था।

अत: विक्रमादित्य II ने इसे अपना उत्तराधिकारी बनाया।वातापी/बादामी के चालुक्यों का अंतिम शासक था।इसी के शासनकाल के दौरान राष्ट्रकूटों का उदय हुआ।

राष्ट्रकूट दंतिदुर्ग ने अपनी पुत्री का विवाह पल्लव नरेश नंदिवर्मन के साथ किया था।

दंतिदुर्ग ने आक्रमण कर चालुक्यों से महाराष्ट्र व गुजरात के क्षेत्र छीन लिए।कीर्तिवर्मन II ने इन क्षेत्रों पर पुन: अधिकार करने हेतु आक्रमण किया। परन्तु दन्तिदुर्ग ने कीर्तिवर्मन II को मार डाला इस प्रकार वातापी बादामी चालुक्यों के अंत के साथ राष्ट्रकूटों का उदय हुआ।

कल्याणी (लाट) चालुक्य (950 - 1190 ई.)

उदय कैसे - राष्ट्रकूटों के पतन के बादसंस्थापक - तैलप II

तैलप II ने राष्ट्रूकूट वंश के अंतिम शासक कर्क II को मार इस वंश की नींव डाली।

कौन - नीलकंठ शास्त्री के अनुसार तैलप II से पूर्व इस वंश के लोग बीजापुर के आस पास के क्षेत्रों में राष्ट्रकूटों के सामंत थे।मुलत: यह कन्नड़ देश (केरल) के निवासी थे।

तैलप II से पूर्व कीर्तिवर्मन III तैलप प्रथम, विक्रमादित्य III भीमराज, अय्यण विक्रमादित्य चतुर्थ का उल्लेख मिलता है।

तैलप - II (973 - 997 ई.)

 पिता का नाम विक्रमादित्य चतुर्थ था।

• माता का नाम कलचुरी के शासक लक्ष्मण सेन की पुत्री बोन्था देवी थी।

• कल्याणी चालुक्य की स्वतंत्रता का संस्थापक माना जाता है।• राष्ट्रकूट वंश के शासक कर्क III को पराजित कर उसकी राजधानी मान्यखेत पर अधिकार कर लिया था।

• अपनी राजधानी कल्याणी को बनाया।

तैलप द्वितीय ने राष्ट्रकूट सामंतों को पराजित करने हेतु निम्न अभियान -

1. शिमोगा कर्नाटक के राष्ट्रकूट सामंत शांति वर्मा को पराजित किया।

2. गंगवंश के शासक पांचालदेव को पराजित कर मार डाला।3. वनवासी के शासक कन्नप व शोभन को अधीनता स्वीकार कराई।

4. दक्षिणी कोकण के शालिहार वंश को पराजित कर दक्षिणी कोंकण पर अधिकार कर लिया।980 ई. में चोल साम्राज्य पर आक्रमण कर वहाँ के शासक उत्तम चौल को पराजित किया था।इस प्रकार कल्याणी चालुक्य व चोल संघर्ष प्रारंभ हुआ था।

मालवा आक्रमण-

शासक - मुंज परमार

उल्लेख - प्रबंध चिंतामणिप्रबंध चिंतामणि का लेखक मेरूतुंग था।

प्रबंध चिंतामणि में गुजरात का इतिहास लिखा गया है।तैलप II ने मालवा के मुंज परमार पर छह बार आक्रमण किया था परन्तु हर बार तैलप II पराजित हुआ।

अंतत: मुंज ने तैलप पर निर्णायक विजय प्राप्त करने हेतु सातवीं बार गोदावरी नदी को पार करते हुए तैलप II पर आक्रमण किया।

तैलप II ने मुंज परमार को युद्ध में पराजित कर बंदी बनाकर मार डाला।तैलप II ने महाराजाधिराज, चक्रवर्ती व परमेश्वर की उपाधि धारण की थी।

सत्याश्रय (997 ई. - 1008 ई.)

तैलप II का पुत्र था,

 साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण किया था।

अपने साम्राज्य विस्तार हेतु निम्न अभियान 

-1. उत्तरी कोंकण सत्याश्रय ने शालिहार वंश को पराजित कर उत्तरी कोंकण पर अधिकार कर लिया था।

2. गुर्जर राजय पर विजय यहाँ के शासक चामुण्डराय को पराजित किया था।

3. मालवा संघर्ष - मुंज परमार की मृत्यु के बाद सिन्धुराज शासक बना था।सत्याश्रय ने मालवा पर अनेक आक्रमण किए प्रत्येक बार सिन्धुराज ने उसे पराजित किया व मालवा के खोये प्रदेश पुन: प्राप्त कर लिए थे।सत्याश्रय का यह अभियान असफल हो गया था।



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