". शिक्षण अधिगम ~ Rajasthan Preparation

शिक्षण अधिगम


शिक्षण अधिगम 

  • शिक्षक के द्वारा किया जाने वाला कार्य शिक्षण कहलाता है।
  • प्रत्येक कार्य एक समस्या है।
  • शिक्षण भी एक समस्या है क्योंकि इसमे शिक्षक को सोचना पडता है कि कब, कैसे, कितना पढाना है।
  • समस्या का समाधान चिंतन से किया जा सकता है।
  • हम्प्रे के अनुसार चिंतन का जन्म समस्या के समय ही होता है, क्योंकि समस्या के समय प्राणी को लक्ष्य का रास्ता नजर नही आता है।
  • एन एन मुखर्जी के अनुसार शिक्षण कार्य प्रत्येक व्यक्ति के चाय के प्याले के समान नही है, यह तो कला ओर विज्ञान है।

शिक्षण प्रक्रिया

  • शिक्षण के लिए कम से कम 2 व्यक्तियों का होना आवश्यक है इन दोनों के बीच विचारों का आदान- प्रदान होता है इसलिए शिक्षण को शिक्षण प्रक्रिया कहा जाता है।
  • मॉरीसन के अनुसार शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक अधिक परिपक्व व्यक्ति अंतःसंबंध द्वारा एक कम परिपक्व व्यक्ति को सिखाने का प्रयास करता है।
  • जैक्सन के अनुसार शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें एक परिपक्व व्यक्ति एक अपरिपक्व व्यक्ति को अंतः क्रिया द्वारा शिक्षा प्रदान करता है।

शिक्षण प्रक्रिया के दृष्टिकोण 

1) भारतीय दृष्टिकोण- भारतीय दृष्टिकोण द्विमुखी दृष्टिकोण है।

शिक्षक ➡️अंतःपुरवासी(शिक्षार्थी)

2) पाश्चात्य/आधुनिक दृष्टिकोण - यह दृष्टिकोण त्रिमुखी है।

इसके लिए दो विद्वानों ने अलग अलग सौपान दिए है।

जाॅन डीवी ने शिक्षण प्रक्रिया मे शिक्षक, शिक्षार्थी एवं समाज को शामिल किया है।

बी एस ब्लूम ने शिक्षण प्रक्रिया मे शिक्षक, शिक्षार्थी एवं पाठ्यक्रम को शामिल किया है।

शिक्षण उपागम 

  • शिक्षा कार्य करते समय एक शिक्षक जब अपने पाठ्यक्रम को रोचक बनाने के लिए प्रयास करता है तो वह विभिन्न उपाय काम में लेता है इन उपायो को ही शिक्षण उपागम कहते है।

शिक्षण उपागम निम्न है।

1) शिक्षण विधि

  • शिक्षण विधि साधन रूपी कार्य है जिसमें एक शिक्षक विषय वस्तु को संगठित करते हुए विवेकपूर्ण तरीके से बालकों को प्रेषित करता है तथा यहां उसके उद्देश्य की पूर्ति में मदद करता है।
  • जॉन डीवी के अनुसार शिक्षण विधि/पद्धति वह तरीका है जिसके द्वारा शिक्षक विषय वस्तु को संगठित कर निष्कर्षों को प्राप्त किया जाता है।
  • बाइनिंग के अनुसार शिक्षण विधि शैक्षिक प्रक्रिया का गतिशील कार्य है।
  • डॉक्टर सरोज सक्सेना अनुसार शिक्षण विधि वह माध्यम है जिसके द्वारा शिक्षक अपनी विषय वस्तु को बालको तक प्रेषित कर उद्देश्य की प्राप्ति करता है।
  • एस के कोचर के अनुसार जिस प्रकार एक सैनिक को अस्त्र शस्त्रो का ज्ञान होता है उसी प्रकार एक शिक्षक को शिक्षण विधियों का ज्ञान होना चाहिए, यह उसके विवेक पर निर्भर है कि वह कौनसी विधि अपनाएगा।
  • माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अनुसार सर्वश्रेष्ठ पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या भी तब तक मृतप्राय है जब तक की उसके लिए सर्वश्रेष्ठ शिक्षक या शिक्षक के पास शिक्षण विधि का अभाव है।

2) शिक्षण सूत्र

  • प्राचीन काल से लेकर अबतक शिक्षकों द्वारा किए गए कार्य की उस परिस्थिति एवं समस्या में उन्होंने जो अनुभव प्राप्त किए उन्हें वर्तमान में शिक्षण सूत्रों के नाम से जाना जाता है।

प्रमुख शिक्षण सूत्र

  1. पूर्ण से अंश की ओर
  2. सरल से कठिन की ओर 
  3. प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर
  4. समीप से दूरी की ओर
  5. मूर्त से अमूर्त की ओर
  6. उदाहरण से नियम की ओर
  7. मनोविज्ञान से तर्क की ओर
  8. ज्ञात से अज्ञात की ओर
  9. विशिष्ट से सामान्य की ओर

3) शिक्षण सिद्धांत 

1) रूचि का सिद्धांत - शिक्षण कार्य करते समय एक शिक्षक को चाहिए कि वह अपने बालको में शिक्षण विषय वस्तु के प्रति रुचि पैदा करें, क्योंकि रुचि के अभाव में शिक्षण से बालक सीख नहीं पाता है।

विन्सेंट के अनुसार बालकों की सक्रिय रुचि उनके अधिगम को बढ़ाती है।

2) क्रियाशीलता का सिद्धांत - इसके अंतर्गत शिक्षण कार्य के समय एक बालक को जितना अधिक सक्रिय रखा जाता है बालक भी उतना ही अधिक सीखता है, जॉन डीवी के अनुसार इसमें लर्निंग बाय डूइंग का सिद्धांत लागू होता है इस कारण बालक अधिक सीख पाता है।

3) नियोजन का सिद्धांत - एक शिक्षक द्वारा योजना बनाकर शिक्षण कार्य करना ही नियोजन का सिद्धांत कहलाता है।

एक शिक्षक हरबर्ट की पंचपदी के आधार पर योजना बनाता है हरबर्ट की पंचपदी में निम्न शामिल है।

  1. प्रस्तावना 
  2. प्रस्तुतिकरण 
  3. तुलना 
  4. सामान्यीकरण 
  5. प्रयोग 

4) उद्देश्य पूर्ति का सिद्धांत - इसके अंतर्गत शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों को अपने उद्देश्यों का ज्ञान होना आवश्यक है।

रिवलिन के अनुसार शिक्षक एक उद्देश्यपूर्ण नैतिक क्रिया है।

डीडी भाटिया के अनुसार बिना उद्देश्य के शिक्षक उस नाव के समान है जिसे मंजिल का पता नहीं है, तथा उसके विद्यार्थी उस पतवार विहीन नाम के समान है जो लहरों के थपेड़े खाकर किसी भी किनारे पर जा टकराएगी।

विषय वस्तु चयन का सिद्धांत - शिक्षक को शिक्षण से पूर्व क्या, कितना कैसे पढ़ाना है इसका अपने मन में संगठन बना लेना होता है।

5) आवृत्ति का सिद्धांत - एक शिक्षक को चाहिए कि नहीं शिक्षण कार्य करते समय विषय वस्तु का बार-बार दोहरान करे।

6) सहसंबंधता का सिद्धांत - इस सिद्धांत के अंतर्गत शिक्षक को एक विषय की विषय वस्तु को दूसरे विषय की विषय वस्तु से जोडकर पढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।

7) लोचशीलता का सिद्धांत - शिक्षक को पढ़ाते समय अपने व्यवहार में लोचशीलता रखनी चाहिए, कभी हास्य एवं कभी मृदु व्यवहार से शिक्षण करना चाहिए।

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