". राजस्थानी भाषा एवं बोलियाँ ~ Rajasthan Preparation

राजस्थानी भाषा एवं बोलियाँ


राजस्थानी भाषा एवं बोलियाँ

बोली - सीमित क्षेत्र में बोले जाने वाली भाषा को बोली कहा जाता है।

भाषा- विस्तृत क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली को भाषा कहा जाता है।

  • राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति - शौरसेनी के गुर्जर अपभ्रंश से
  • राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति 12 वीं सदी से मानी जाती है।
  • राजस्थान की राजभाषा- हिन्दी 
  • राजभाषा विभाग की स्थापना - 25 जून 1975 
  • राजभाषाओ को संविधान की आठवी अनुसूची मे सम्मिलित किया गया है।
  • राजस्थान की मातृभाषा- राजस्थानी
  • राजस्थानी भाषा की लिपी - महाजनी/मुण्डिया
  • राजस्थानी भाषा असंवैधानिक भाषा है।
  • राजस्थानी भाषा दिवस - 21 फरवरी 
  • हिन्दी दिवस- 14 सितम्बर 
  • मरुवाणी - राजस्थानी भाषा की मासिक पत्रिका
  • अबुल फजल ने आइने अकबरी ग्रंथ में राजस्थानी भाषा के लिए मारवाड़ी शब्द का प्रयोग किया।
  • उद्योतन सुरी ने अपने ग्रंथ कुवलयमाला मे राजस्थानी भाषा के लिए मरूभाषा शब्द का प्रयोग किया।
  • जाॅर्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा 1912 मे अपनी पुस्तक द लैंन्गवेस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया मे सर्वप्रथम राजस्थानी भाषा के लिए राजस्थानी शब्द का प्रयोग किया गया।
  • प्रसिद्ध भाषाशास्त्री महावीर प्रसाद शर्मा व एल पी टेस्सीटोरी के अनुसार राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति शौरसेनी अपभ्रंश से मानी जाती है।
  • जाॅर्ज अब्राहम ग्रियर्सन व पुरूषोंत्तम मेनारिया के अनुसार राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति नागर अपभ्रंश से मानी जाती है।
  • सुनीती चटर्जी के अनुसार राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति सौराष्ट्री अपभ्रंश से मानी जाती है।
  • के एम मुंशी व मोतीलाल मेनारिया के अनुसार राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति गुर्जरी अपभ्रंश से मानी जाती है।
  • राजस्थानी भाषा का सर्वप्रथम वैज्ञानिक अध्ययन- जाॅर्ज अब्राहम ग्रियर्सन 

एल पी टेस्सीटोरी ने राजस्थानी भाषा को दो भागों में वर्गीकृत किया है।

  1. पश्चिमी राजस्थानी 
  2. पूर्वी राजस्थानी 

पश्चिमी राजस्थानी कि बोलिया 

मारवाड़ी 
  • यह राजस्थान मे सर्वाधिक क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली है।
  • मारवाड़ क्षेत्र-  जोधपुर, बाडमेर, पाली, नागौर मे बोली जाती है।
  • सोरठा, छंद व मांड गायन इस बोली कि प्रमुख शिल्पगत विशेषताएं है।
  • उपबोलिया - जोधपुरी, थली, बीकानेरी 
  • थली - बीकानेर व जैसलमेर मे।

खैराडी

  • शाहपुरा मे बोली जाती है।
  • इसे राजस्थान कि काकटेल बोली कहा जाता है क्योंकि यह मेवाडी, ढुंढाडी व हाडौती तीन बोलीयो से मिलकर बनी है
  • मेवाडी - उदयपुर, चित्तौड़गढ़ व भीलवाड़ा मे।
  • नाडिया - पाली मे।
  • कुबडी - नागौर से अजमेर तक के क्षेत्र में।
  • गौडवाडी - जालौर से पाली के बीच का क्षेत्र मे।
  • देवडावाटी - सिरोही मे।
  • ढढकी - जैसलमेर मे।
  • ढाढी - बाडमेर मे।
  • वागडी - डूंगरपुर व बांसवाडा में।
  • शेखावाटी-  सीकर चुरू व झुंझनूं मे।
  • लोहान्द व पंजाबी - श्रीगंगानगर व हनुमानगढ मे।

पूर्वी राजस्थानी 

ढुंढाडी 

  • यह बोली जयपुर व आसपास के क्षेत्र मे बोली जाती है।
  • संत दादु जी कि रचनायें ढुंढाडी बोली मे है।
  • उपनाम- झाडशाही व सधुक्कडी
  • उपबोलिया - राजावटी, तोरावटी, नागरचोल, शेरा
  • राजावटी - आमेर व आसपास के क्षेत्र मे बोली जाती है।
  • नागरचोल - सवाई माधोपुर मे।
  • तोरावटी- कांतली नदी के प्रवाह क्षेत्र सीकर व झुंझनूं मे बोली जाती है।
  • शेरा - कोठपुतली (जयपुर मे)

मेवाती 

  • अलवर व भरतपुर क्षेत्र में।
  • यह पश्चिमी हिन्दी व राजस्थानी के बीच सेतु का कार्य करती है।
  • लालदासजी व चरणदास जी कि रचनायें मेवाती बोली मे है।

मालवी

  • झालावाड़, कोटा, प्रतापगढ़ व बांरा क्षेत्र में।
  • उपबोलिया- रांगडी, निमाडी, काठवाडी व सोंडावाडी
  • निमाडी - इसे दक्षिणी राजस्थानी भी कहा जाता है।
  • हाडौती- कोटा, बुंदी व झालावाड़ क्षेत्र में।
  • जगरौटी - करौली मे।
  • बीजणी - बुंदी मे।
  • अंचला - मालपुरा (टोंक)
  • अहिरवाटी/राठी - बहरोड व मुंडावर (अलवर) मे

 

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