राजस्थान के रीति रिवाज
जन्म से संबंधित
नावण - जन्म के 9 दिन बाद बालक को स्नान कराकर घर की शुद्धि करना।
झडुला - बालक के सिर का पहली बार मुंडन करवाना, इसे चूड़ाकर्म भी कहा जाता है
दशोटन - चूड़ाकर्म के दौरान भोज की व्यवस्था करना दशोटन कहलाता है।
विवाह से संबंधित
हल्दायत/पीठी - जौ का आटा, हल्दी और तेल को मिश्रित करके दूल्हे एवं दुल्हन के शरीर पर लगाना पीठी कहलाता है।पीठी करने वाली 5 महिलाओं को पंवरी कहा जाता है।
रातीजोगा - विवाह के अवसर पर महिलाओं द्वारा रात में गाए जाने वाले गीत, रातीजोगा का अंतिम गीत कुकड़ कहलाता है।
पाट उतारना - दूल्हे के मामा द्वारा दूल्हे को बाजोट से नीचे उतारना पाट उतारना कहलाता है।
अवारना/राइका - दूल्हे की बहन द्वारा दूल्हे को बुरी नजर से बचाने के लिए राई फेंकना।
बिंदौरी - विवाह के अवसर पर दूल्हे को घोड़ी पर बैठा कर गांव में घुमाना।
कंवारी जानपात - बारात को वधू पक्ष द्वारा दिया जाने वाला प्रथम भोजन।
झेला मेला की आरती - तोरण मारते वक्त दूल्हे की सास द्वारा की जाने वाली आरती।
चंवरी - वर वधु के फेरो का स्थान
पाणिग्रहण- विवाह के सात वचनो मे बंधना।
कन्यावता - विवाह के दिन वधु के रिश्तेदारों द्वारा उपवास रखना।
सोटा सोटी - विवाह के पश्चात दूल्हे और दुल्हन द्वारा मंदिर में बैंत से एक दूसरे पर वार करना।
जुआ जुई - दूल्हा-दुल्हन द्वारा कंकण डोर खोलते समय खेला जाने वाला खेल।
गौना - विवाह के पश्चात लड़की को प्रथम बार ससुराल भेजना।
मृत्यु से संबंधित
पानीवाडा - मृत्यु की सुचना ग्राम वासियो तक पहुंचाना
अर्थी - मृतक व्यक्ति को शमशान तक ले जाना।
बैकुण्ठी - मृतक व्यक्ति को घाजे बाजे के साथ शमशान तक पहुँचाना।
बखैर - बैकुण्ठी के ऊपर फैके गए पैसे बखैर कहलाते है।
आधेटा - शमशान घाट के आधे तक जाने के बाद अर्थी की दिशा परिवर्तित करना।
पिण्डदान - आधेटा के समय जौ के बने लड्डु को चारो दिशाओ मे फेंकना।
काठ - मृतक को जलाने हेतु प्रयोग की जाने वाली लकड़ीयाँ।
लांपा - मृतक को मुखाग्नि प्रदान करना।
भद्दर - मृतक के उत्तराधिकारी द्वारा अपने सिर के बाल उतारकर चिता में अर्पित करना।
फूल चुनना - मृत्यु के तीसरे दिन शमशान से मृतक की अस्थियों को संग्रहित करना।, गरासिया जनजाति में इसे धारी संस्कार कहा जाता है।
पथवारी - किसी भी धार्मिक कार्य से पूर्व पथवारी देवी की पूजा की जाती है।
दोवलिया - मृतक के घर की शुद्धि करना।
डांगरी की रात - मृत्यु के 12 वे दिन भजन कीर्तन करना डांगरी की रात कहलाता है।
मौसर- मृत व्यक्ति का मृत्यु भोज
आदिवासियों में मृत्यु भोज कोन्दिया कहलाता हैं।
जौसर - व्यक्ति की मृत्यु से पूर्व ही मृत्यु भोज करना जौसर कहलाता है।
पगड़ी - मृतक के सबसे बड़े पुत्र को घर का मुखिया बनाना।
अन्य रिवाज
रियाण - पश्चिम राजस्थान में मेहमानों का अफीम से स्वागत करना।
नांगल - नए घर के उद्घाटन से संबंधित रीवाज
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