राजस्थान के लोक नाट्य
लोकनाट्य- कथा या कहानी को रंगमंच पर प्रदर्शित करना लोकनाट्य कहलाता है।
ख्याल
यह पौराणिक एवं ऐतिहासिक कहानियो पर आधारित होता है।
ख्याल के सुत्रधार को हलकारा कहा जाता है।
कुचामनी ख्याल
- प्रसिद्ध - नागौर
- प्रवर्तक/जनक - लच्छीराम
- उगमराज इस कला का अंतर्राष्ट्रीय कलाकार है।
- इसमे महिलाएँ भाग नही लेती है।
- यह ओपेरा संगीत के समान होती है।
- प्रमुख कहानियाँ
1) राव रिणमल
2) मीरा मंगल
3) चाँद नीलगिरी
हैला ख्याल
- प्रवर्तक - हैला शायर
- यह (लालसौट) दौसा, करौली व सवाई माधोपुर की प्रसिद्ध है।
- इसमे नौबत वाद्य यंत्र का उपयोग होता है।
अलीबख्शी ख्याल
- यह मुंडावर (अलवर) की प्रसिद्ध है।
- प्रवर्तक -अली बख्श (अलिबख्श को अलवर का रसखान कहा जाता है।
तुर्रा-कलंगी ख्याल
- प्रसिद्ध - घोसुण्डी (चित्तौड़गढ़)
- प्रवर्तक- तुकनगीर
- इसमे तुर्रा पात्र भगवान शिव एवं कलंगी पात्र माता पार्वती का प्रतीक माना जाता है।
- इसमे कलंगीपात्र की भूमिका मुस्लिम कलाकार द्वारा निभाई जाती है इसलिए यह ख्याल हिन्दू-मुस्लिम एकता का परिचायक है।
- मुख्य कलाकार
- 1) चेतराम
- 2) जयदयाल
- 3) ओंकार सिंह
शेखावटी ख्याल
- प्रवर्तक - नानुराम
- इसे चिडावा ख्याल भी कहा जाता है, दुलिया राणा इसके मुख्य कलाकार है।
ढफ्फाली ख्याल
- प्रसिद्ध - लक्ष्मणगढ (अलवर)
किशनगढ़ी ख्याल
- प्रसिद्ध - अजमेर व जयपुर
- प्रवर्तक - बंशीधर शर्मा
बीकनेरी ख्याल
- प्रवर्तक - मोती लाल
गवरी या राई
- यह राजस्थान का सबसे प्राचीन लोकनाट्य है।
- प्रसिद्ध- उदयपुर व आस पास का क्षेत्र
- यह रक्षाबंधन के अगले दिन प्रारंभ होकर 40 दिनो तक चलता है।
- प्रवर्तक - कुटकूडिया भील
- यह भगवान शिव व भस्मासुर की कथा पर आधारित है।
- गवरी के विभिन्न प्रसंगो को जोड़ने के लिए जो नृत्य किया जाता है उसे गवरी की घाई कहा जाता है।
- शिव - राईबुडिया
- पार्वती - गवरी/राई
- सुत्रधार - कुटकुडिया
- मुख्य पात्र - झामट्या व खड़क्या
रामलीला
- रामायण का रंगमंच पर प्रदर्शन करना रामलीला कहलाता है।
- प्रसिद्ध रामलीला - बिसाऊ (झुंझनूं)
- रामलीला को प्रसिद्धि तुल्सीदास गोस्वामी ने दिलाई।
- नुंगला - रामलीला कि आरती
- ढाई कडी के दोहो कि रामलीला अटरू बांरा की प्रसिद्ध है।
- धनुष लीला - यह मांगरोल (बांरा) कि प्रसिद्ध है।
- प्रसिद्ध कलाकार - हरगोविंद स्वामी व रामसुख दास
रासलीला
- भगवान श्रीकृष्ण कि लीलाओ को रंगमंच पर प्रदर्शित करना रासलीला कहलाता है।
- रासलीला फुलेरा (जयपुर) व नाथद्वारा कि प्रसिद्ध है।
- हित हरिवंश ने रासलीला को प्रसिद्धि दिलाई।
- सनकादी लीला - घोसुण्डा (चित्तौड़गढ़)
बहरूपिया कला/स्वांग
- यह कला भरतपुर व शेखावटी क्षेत्र कि प्रसिद्ध है।
- इसे प्रसिद्धि भीलवाडा के जानकी लाल भांड ने दिलाई, इन्हें राजस्थान का मंकी मैन भी कहा जाता है।
- वागड क्षेत्र में इस कला का प्रवर्तक लादुराम भांड को माना जाता है।
तमाशा
- मुल रूप से महाराष्ट्र का है
- प्रतापसिंह के काल मे बंशीधर भट्ट को महाराष्ट्र से लाया गया।
- जिस स्थान पर तमाशा का आयोजन किया जाता है उसे अखाडा कहा जाता है।
- इस नाटक मे महिला व पुरुष दोनों भाग लेते है।
- प्रसिद्ध - जयपुर
- इसमे तबला व सारंगी लोक वाद्य का वादन किया जाता है।
- प्रमुख तमाशे - हीर रांजा, जोगी जोगन, झुटन मिंया, गोपीचंद का तमाशा
- गौहरा जान तमाशे कि प्रसिद्ध महिला कलाकार है।
- तमाशे के अन्य कलाकार - बंशीधर भट्ट, बृजपाल भट्ट, वासुदेव भट्ट
रम्मत
- रम्मत के लिए प्रसिद्ध स्थल - आचार्यों का चौक (बीकानेर) व जैसलमर
- रम्मत मे पाटा संस्कृति बीकानेर की देन है।
- यह पति पत्नी के आदर्श जीवन पर आधारित है।
- रम्मत शुरू करने से पुर्व रामदेवजी का भजन गाया जाता है।
- तेज कवि ने 1943 मे स्वतंत्र बावनी रम्मत महात्मा गांधी को भेंट की थी।
प्रमुख रम्मते
- अमरसिंह राठौड़ री रम्मत
- स्वतंत्र बावनी, छेले तंबोलन व मुमल - तेज कवि
- फक्कड़ दाता री रम्मत - यह बीकानेर के मुस्लिम संप्रदाय से संबंधित है।
मुख्य कलाकार
1) मनीराम व्यास
2) तुलसीदास
3) फागु महाराज
4) सुआ महाराज
चार बैत
- प्रवर्तक- खलीफा खाँ निहंग
- प्रसिद्ध - टोंक
- यह डफली वाद्य यंत्र के साथ प्रस्तुत किया जाता है।
दंगल
- यह भरतपुर व सवाई माधोपुर जिले का प्रसिद्ध है।
- कन्हैया दंगल - करौली का प्रसिद्ध है।
- रसिया दंगल- भरतपुर
- भेट दंगल - करौली
नौटंकी
- प्रसिद्ध- भरतपुर
- यह मूलतः उत्तर प्रदेश की है।
- प्रवर्तक- भूरीलाल
- मुख्य कलाकार- गिरीराज प्रसाद
- यह हाथरस शैली से प्रभावित है।
गंधर्व नाट्य
- प्रसिद्ध- मारवाड़
- यह जैन सम्प्रदाय से संबंधित लोकनाट्य है।
सनकादि लीला
- प्रसिद्ध - बस्सी व घोसुंडी (चित्तौड़गढ़)
गौर लीला
- इसका प्रदर्शन गरासिया जनजाति द्वारा गणगौर के अवसर पर किया जाता है।
भवाई लोकनाट्य
- प्रसिद्ध - उदयपुर
- प्रवर्तक - बाधों जी जाट
- इसका प्रसंग सगा सगी है।
कठपुतली
- प्रसिद्ध - भरतपुर
- यह नट जाति के लोगो द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
भारतीय लोक कला मण्डल
- स्थापना - उदयपुर, 1952
- इसकी स्थापना देवीलाल सांभर ने की।
- इसके द्वारा कठपुतली नाट्य को प्रशिक्षण दिया जाता है।
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