". वर्ण विचार ~ Rajasthan Preparation

वर्ण विचार


वर्ण विचार 

वर्णों के शुद्ध लेखन, उच्चारण, एवं प्रयोग के ज्ञान को वर्ण विचार कहा जाता है।

भाषा के कुल तीन अंग हैं।

1) वर्ण 

2) शब्द 

3) वाक्य

Rajasthan preparation


वर्ण क्या है

भाषा कि सबसे छोटी इकाई को वर्ण कहा जाता है। इनका कोई अर्थ नहीं होता है।

ध्वनि - भाषा कि सबसे छोटी मौखिक ईकाई को ध्वनि कहा जाता है।

अर्थ के आधार पर भाषा की सबसे छोटी इकाई शब्द है।

जब हम मुंह से ध्वनि का उच्चारण करते हैं तो ध्वनि के साथ वायु भी मुंह से बाहर निकलती हैं उसे प्राणवायु कहा जाता है।

वर्णों कि संख्या 

  • स्वर- 11
  • व्यंजन- 33
  • मुल वर्ण- 44
  • अयोगवाह- 2
  • संयुक्ताक्षर- 4
  • ताडनजात- 2
  • हिन्दी मे कुल वर्ण- 52

वर्णो के प्रकार 

वर्णों के दो प्रकार होते हैं।

  1.  स्वर 
  2.  व्यंजन 

 स्वर

 स्वर से आशय उन ध्वनियो से है जिनका उच्चारण करते समय प्राणवायु बिना किसी रुकावट के बाहर आ जाती है या वे ध्वनियां जिनका उच्चारण करने मे किसी भी अन्य वर्ण कि सहायता नही ली जाती है। 

जैसे- अ का उच्चारण स्वतंत्र होता है एवं क का उच्चारण करते समय क के साथ अ वर्ण जुडा रहता है इस प्रकार अ स्वर है जबकि क व्यंजन है।

कुल स्वर - हिंदी में कुल 11 स्वर होते हैं।

 ■ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ ऋ

स्वरो के प्रकार

1) मात्रा/उच्चारण मे लगने वाले समय के आधार पर - 3 भेद

ह्रस्व स्वर- वे स्वर जिनके उच्चारण मे कम समय लगता है ह्रस्व स्वर कहलाते हैं। यह स्वर एकमात्रिक होते हैं। इनमें 4 स्वरो को शामिल किया जाता है।

 ■ अ इ उ ऋ

दीर्घ स्वर- वे स्वर जिनके उच्चारण मे ह्रस्व स्वर कि तुलना में अधिक समय लगता है दीर्घ स्वर कहलाते हैं। यह स्वर द्विमात्रिक होते हैं। इनमें 7 स्वरो को शामिल किया जाता है।

 ■ आ ई ऊ ए ऐ ओ औ 

प्लूत स्वर - यदि किसी स्वर का उच्चारण लंबे समय तक किया जाए तो वह स्वर प्लुत स्वर कहलाता है।

जैसे- 

1) ॐ बोलते समय ओ स्वर का उच्चारण लंबे समय तक किया जाता है यहा ओ प्लुत स्वर बन जाएगा।

2) बालक के रोने पर आ स्वर प्लुत स्वर बन जाएगा।

3) मइयाsss........... इस शब्द मे प्रयोग किया गया यह  चिन्ह (.) अपूर्ण विराम कहलाता है। इसका अर्थ यह है कि आ स्वर लंबे समय तक बोला जाएगा। इसमे भी आ प्लूत स्वर बन जाएगा। इसमे 8 स्वरो को शामिल किया जाता है।

 ■ अ आ ई ऊ ए ऐ ओ औ 

इ को प्लुत स्वर मे इसलिए नहीं शामिल किया जाता क्योंकि इ स्वर लंबे समय तक उच्चारण करने पर ई मे परिवर्तित हो जाता है। 

2) ओष्ठ आकृति के आधार पर- 2 भेद

वृत्ताकार - जिन स्वरो का उच्चारण करते समय ओष्ठ वृत के आकार मे खुलते हैं उन्हे वृत्ताकार स्वरो मे शामिल किया जाता है। 

 ■ उ ऊ ओ औ

अवृत्ताकार स्वर - जिन स्वरो का उच्चारण करते समय ओष्ठ वृत कि आकार मे नही खुलते हैं उन्हे अवृत्ताकार स्वर मे शामिल किया जाता है।

 ■ अ आ इ ई ए ऐ ऋ

3) जीभ कि क्रियाशीलता के आधार पर - 3 भेद

1) अग्र स्वर- वह स्वर जिनका उच्चारण करते समय जीभ का अग्र भाग क्रियाशील रहे अग्र स्वर कहलाते हैं।

 ■ इ ई ए ऐ ऋ

2) मध्य स्वर- वह स्वर जिनका उच्चारण करते समय जीभ का मध्य भाग क्रियाशील रहे मध्य स्वर कहलाता है।

 ■ अ 

3) पश्च स्वर- वह स्वर जिनका उच्चारण करते समय जीभ का पश्च भाग क्रियाशील रहे पश्च स्वर कहलाते हैं।

 ■ आ उ ऊ ओ औ

4) तालु कि स्थिति के आधार पर - 4 भेद

1) संवृत स्वर - वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय मुह बंद हो जाता है या जीभ का अग्र भाग तालु को छु जाता है उनहे संवृत स्वर कहा जाता है।

■ इ ई उ ऊ ऋ 

2) अर्द संवृत स्वर  - वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय मुह आधा बंद हो जाता है या जीभ का मध्य भाग तालु को छु जाता है तो उसे अर्द संवृत स्वर कहा जाता है।

■ ए ओ

3) विवृत स्वर - वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय मुह पुरा खुला रहता है। उन्हें विवृत स्वर कहा जाता है।

■ आ

4) अर्द विवृत स्वर - वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय करते समय मुख आधा खुला रहता है। उन्हें अर्द विवृत स्वर कहा जाता है।

■ अ ऐ औ

5) अनुनासिकता के आधार पर - 2 भेद

1) अनुनासिक स्वर- सभी स्वर जिनपर अनुनासिक चिन्ह(चन्द्र बिंदु) लगा हुआ हो तो उन्हें अनुनासिक स्वर कहा जाता है।

जैसे- अँ आँ उँ ऊँ एँ आदी

2) निरनुनासिक स्वर- सभी स्वर जिन पर अनुनासिक चिन्ह(चन्द्र बिंदु) लगा हुआ नहीं है अनुनासिक स्वर कहलाएंगे।

जैसे -  अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ 

6) जाति के आधार पर - 2 भेद

1) सजातीय स्वर - दीर्घ संधि मे प्रयोग होने वाले समान जाति के स्वरो को सजातीय स्वर कहा जाता है।

जैसे-  अ+आ     इ+ई     उ +ऊ 

2) विजातीय स्वर- असमान जाति या दीर्घ संधि के अलावा अन्य संधि मे प्रयोग होने वाले स्वरो के जोडो को विजातीय स्वर कहा जाता है।

जैसे- अ+ए  ए+ऐ  आ+उ आदी 

संयुक्त स्वर- ए ऐ ओ  औ  को संयुक्त स्वर कहा जाता है।

व्यंजन 

वे वर्ण जो स्वतंत्र उच्चारित नही होते हैं एवं जिनका उच्चारण करने के लिए किसी अन्य वर्ण कि आवश्यकता होती है उन्हें व्यंजन कहा जाता है।

कुल व्यंजन- हिन्दी मे कुल 33 व्यंजन होते हैं।

महत्वपूर्ण चिन्ह एवं शब्द 

शिरोरेखा - वर्ण के ठीक ऊपर जो रेखा खीची जाती है उसे शिरोरेखा कहा जाता है

खडी पाई- वर्ण के ठीक सामने जो रेखा खीची जाती है उसे खडी पाई कहा जाता है।

अनुस्वार- वर्ण के शिरोरेखा के ऊपर( अं) जो बिंदी लगाई जाती है उसे अनुस्वार कहा जाता है।

अनुस्वार तत्सम शब्द है एवं अनुनासिक तद्भव शब्द है इसलिए अनुस्वार से बनने वाले शब्द भी तत्सम होंगे जबकि अनुनासिक से बनने वाले शब्द तद्भव होंगे।

पंचमाक्षर बिंदु- किसी वर्ण के खडी पाई के आगे लगने वाला बिंदु पंचमाक्षर बिंदु कहलाता है। यह बिन्दु हिन्दी के केवल एक वर्ण पर प्रयुक्त होता है वह है क वर्ग का पंचम वर्ण (ङ)।

ताडनजात चिन्ह (उत्क्षिप्त चिन्ह) - किसी वर्ण के ठीक नीचे जो बिंदी लगाई जाती है उसे ताडनजात चिन्ह कहा जाता है। इस प्रयोग हिन्दी मे दो वर्णो ( ड़ ढ़) के साथ किया जाता है।

नुक्ता चिन्ह - जब किसी वर्ण के ठीक पहले बिंदी लगाई जाती है तो उसे नुक्ता चिन्ह कहा जाता है। हिन्दी मे इसका प्रयोग 5 वर्णों ( क़ ख़ ग़ ज़ फ़) पर होता है। नुक्ता चिन्ह का प्रयोग होने वाले शब्द विदेशी (अरबी - फारसी) शब्द कहलाते हैं।

व्यंजनो का वर्गीकरण 

1) अध्ययन कि सरलता के आधार पर - 3 भाग 

1) स्पर्शी व्यंजन- वे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय जीभ मुंह के किसी न किसी भाग को स्पर्श करती है उन्हे स्पर्शी या वर्गीय व्यंजन कहा जाता है। कुल 25 स्पर्शी व्यंजन होते हैं।

 क वर्ग - क ख ग घ ङ

 च वर्ग -  च छ ज झ ञ

 ट वर्ग  -  ट ठ ड ढ ण 

 त वर्ग  - त थ द ध न 

 प वर्ग  - प फ ब भ म

2) अंतस्त व्यंजन- कुल 4 अंतस्त व्यंजन होते हैं।

य र ल व

3) उष्ण व्यंजन- कुल 4 उष्ण व्यंजन होते हैं।

श ष स ह

2) घोष/कंपन के आधार पर - 2 भाग 

1) अघोष व्यंजन - अघोष व्यंजन वे व्यंजन होते हैं जिनका उच्चारण करते समय कंपन उत्पनन नहीं होता है।

कुल 13 अघोष व्यंजन होते हैं जिनमे प्रत्येक वर्ग का पहला व दुसरा वर्ण एवं श ष स वर्ण को शामिल किया जाता है।

■ क ख च छ ट ठ त थ प फ श ष स

2) सघोष व्यंजन - सघोष व्यंजन वे व्यंजन होते हैं जिनका उच्चारण करते समय कंपन उत्पन्न होता है।

कुल 20 सघोष व्यंजन होते हैं जिनमे प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा एवं पांचवां वर्ण एवं य र ल व ह को शामिल किया जाता है

■ ग घ ङ ज झ ञ ड ढ ण द ध न ब भ म य र ल व ह

नोट - सभी स्वर सघोष होते है। इसलिए कुल सघोष वर्णो कि संख्या 31 होती है।

3) प्राणवायु के आधार पर - 2 भाग 

1) अल्पप्राण - वे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय प्राणवायु बहुत ही कम मात्रा में मुह से बाहर निकलती हैं अल्पप्राण कहलाते है।

कुल 19 अल्पप्राण व्यंजन होते हैं जिनमे प्रत्येक वर्ग का पहला तीसरा और पाचवा वर्ण एवं य र ल व को शामिल किया जाता है

■ क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म य र ल व

नोट - हिन्दी के पाणिनि कामताप्रसाद के अनुसार सभी स्वर अल्पप्राण होते हैं इसलिए कुल अल्पप्राण वर्णो कि संख्या 30 होती है।

2) महाप्राण - वे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय प्राणवायु अधिक मात्रा मे मुंह से बाहर निकलती हैं उन्हे महाप्राण कहा जाता है।

कुल 14 महाप्राण व्यंजन होते हैं जिनमे प्रत्येक वर्ग का दुसरा व चौथा वर्ण एवं श ष स ह को शामिल किया जाता है।

■ ख घ छ झ ठ ढ थ ध श ष स ह 

4) उच्चारण के आधार पर - 8 भाग 

1) स्पर्शी व्यंजन - स्पर्शी व्यंजन वे व्यंजन होते हैं जिनका उच्चारण करते समय जीभ मुख के किसी न किसी भाग को स्पर्श करती है किंतु इनका उच्चारण करते समय प्राणवायु को संघर्ष नहीं करना होता है।

कुल 16 स्पर्शी व्यंजन होते हैं जिनमे क वर्ग ट वर्ग त वर्ग प वर्ग के प्रथम चार चार वर्णो को शामिल किया जाता है।

■ क ख ग घ ट ठ ड ढ त थ द ध प फ ब भ

2) संघर्षी व्यंजन - वे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय प्राणवायु को संघर्ष करके मुख से बाहर निकलना पड़ता है उन्हे संघर्षी व्यंजन कहा जाता है।

इसमे 4 वर्णों को सम्मिलित किया जाता है।

■ श ष स ह

नोट - नुक्ता चिन्ह का प्रयोग होने वाले शब्द क़ ख़ ग़ ज़ फ़ भी सपर्शी व्यंजन है किंतु यह फारसी भाषा के वर्ण है इसलिए इन्हें हिन्दी के स्पर्शी व्यंजन मे नहीं गिना जाता है।

3) स्पर्श संघर्षी व्यंजन - वे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय जीभ मुंह के किसी न किसी भाग को स्पर्श भी करती है और प्राणवायु भी संघर्ष करके मुख से बाहर निकलती हैं उन्हे स्पर्श संघर्षी व्यंजन कहा जाता है।

कुल 4 स्पर्शी संघर्षी व्यंजन होते हैं। जिसमें च वर्ग के प्रथम चार वर्णो को शामिल किया जाता है। 

■ च छ ज झ

4) नासिक्य व्यंजन- नासिक्य व्यंजन मे सभी वर्गो के पंचमाक्षरो को शामिल किया जाता है।

■ ङ ञ ण न म 

5) संघर्षहीन व्यंजन - वे व्यंजन जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से किया जाता है।

इसमे 2 वर्णों को शामिल किया जाता है।

■ य व

इन्हें अर्द स्वर भी कहा जाता है क्योंकि इनका उच्चारण करते समय जीभ मुंह के किसी भी भाग को स्पर्श नहीं करती है अथार्थ इनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से किया जाता है 

6) प्रकम्पित व्यंजन - वे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय मुंह में कंपन उत्पन्न होता है।

■ र

7) पार्शविक व्यंजन - वह व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय जीभ मुर्धा को छु जाती है एवं प्राणवायु मुंह के किनारो से बाहर निकलती हैं।

 ■ ल

8) ताडनजात व्यंजन - किसी वर्ण के ठीक नीचे जो बिंदी लगाई जाती है उसे ताडनजात व्यंजन कहा जाता है। हिन्दी मे कुल दो ताडनजात व्यंजन है।

■ ड़ ढ़

वर्णों का वर्गीकरण 

उच्चारण स्थान के आधार पर 

उच्चारण स्थान                            वर्ण                              1) कंठ्य                    अ आ, क वर्ग एवं अः(विसर्ग)

2) तालव्य                  इ ई, च वर्ग, य श

3) मूर्धन्य                   ऋ, ट वर्ग, र, ष

4) दन्त्य                     त वर्ग, ल, स

5) ओष्ठय                   उ ऊ, प वर्ग 

6) कंठतालव्य             ए ऐ

7) कंठौष्ठय                ओ औ

8) दन्तोष्ठय                 व

9) अलिजिव्हा             ह

10) नासिक्य              अं ङ ञ ण म न

हिन्दी के अन्य वर्ण 

अयोगवाह वर्ण - 2 होते हैं 

अं- अनुस्वार 

अः - विसर्ग

यह ऐसे स्वर है जिनका प्रयोग स्वर मे जोडकर किया जाता है इसलिए इन्हें अलग स्वर नहीं माना जाता है। इनका प्रयोग व्यंजनो के साथ नहीं होता है। कंठ शब्द मे जो अनुस्वार लगा है वह भी क पर नही है क् + अं+ ठ है।

संयुक्ताक्षर - वे वर्ण जिनका निर्माण दो व्यंजन एवं एक स्वर के योग से होता है संयुक्ताक्षर कहलाते हैं।

कुल 4 संयुक्ताक्षर होते हैं।

क्ष = क् + ष् + अ

त्र = त् + र् + अ

ज्ञ = ज् + ञ् + अ

श्र = श् + र् + अ

विकसित वर्ण/अनुनासिक - आँ 

इस वर्ण का निर्माण हिन्दी मे हुआ है इसलिए इसे विकसित वर्ण कहा जाता है।

अनुनासिक तद्भव शब्द है। इसलिए इससे निर्मित शब्द भी तद्भव ही होंगे।

विकसित व्यंजन / ताडनजात व्यंजन 

■ ड़ ढ़ 

ताडनजात व्यंजन का विकास भी हिन्दी मे हुआ है इसलिए इसे विकसित व्यंजन कहा जाता है।

इनकी मुख्य विशेषता यह है कि इनसे स्वर को अलग करके इन्हें आधा नहीं किया जा सकता है।

कभी भी किसी शब्द के प्रारंभ में ताडनजात शब्द का प्रयोग नही हो सकता।

आगत स्वर/ विदेशी स्वर-  ऑ 

यह स्वर अंग्रेजी भाषा का है हिन्दी मे इसे ग्रहण कर लिया गया है इसलिए इसे हिन्दी स्वरो मे शामिल नही किया जाता है। 

इसे मेहमान या ग्रहित स्वर भी कहा जाता है। 

इससे निर्मित शब्दो को भी विदेशी शब्द कहा जाता है।

विदेशी व्यंजन/नुक्ता चिन्ह 

जब किसी वर्ण के ठीक पहले बिंदी लगाई जाती है तो उसे नुक्ता चिन्ह कहा जाता है। हिन्दी मे इसका प्रयोग 5 वर्णों ( क़ ख़ ग़ ज़ फ़) पर होता है। नुक्ता चिन्ह का प्रयोग होने वाले शब्द विदेशी (अरबी - फारसी) शब्द कहलाते हैं।

मात्रा 

स्वर का प्रतिनिधित्व करने वाले संकेतों को मात्रा कहा जाता है। यह स्वर का ही रूप है।

कुल मात्राऔ कि संख्या = 11

दृश्य रूप मे संख्या- 10

अ स्वर का कोई मात्रा संकेत नहीं होता है किंतु अ मात्रा होती है। इसलिए इसे उदासीन स्वर कहा जाता है।

स्वर        मात्रा
अ     अ का मात्रा संकेत नहीं होता है 
आ     ा
इ       ि
ई       ी
उ       ु
ऊ       ू
ऋ       ृ
ए        े
ऐ        ै
ओ       ो
औ         ौ

मात्रा  के प्रकार 

1) ह्रस्व - ह्रस्व स्वरो कि एक मात्रा होती है।

■ अ इ उ ऋ

2) दीर्घ- दीर्घ स्वरो कि दो मात्राएँ होती है।

■ आ ई ऊ ए ऐ ओ औ 

मात्रा कि गणना

'पहल' शब्द मे कितनी मात्रा है।

विच्छेद- प् + अ + ह् + अ + ल+ अ

पहल मे तीन स्वर प्रयुक्त हुए हैं अथार्थ इसमे तीन मात्रा है।

पहल मे कुल वर्णो कि संख्या कितनी है।

5 वर्ण 

विच्छेद- प् + अ + ह् + अ + ल+ अ

नोट- यदि शब्द का अंतिम वर्ण अ है तो उसे अलग से वर्ण नही गिना जाएगा।

रहना मे कुल वर्णो कि संख्या कितनी है।

6 वर्ण 

विच्छेद- र् + अ+ ह् + अ + न + आ

वर्णों का सही क्रम 

इसका प्रयोग शब्दकोश (dictionary) मे किया जाता है।

अं आँ अ: अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ ओ

क् क्ष् ख् ग् घ् ङ्

च् छ् ज्ञ् ज् झ् ञ्

ट् ठ् ड् ढ् ण्

त् त्र् थ् द् ध् न्

प् फ् ब् भ् म्

य् र् ल् व्

श् श्र् ष् स् ह्

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