". आर्थिक नीतियां 1991 ~ Rajasthan Preparation

आर्थिक नीतियां 1991


आर्थिक नीतियां -1991

आर्थिक सुधारों के कारण


राजकोषीय घाटा - 1980 के दशक के अंत तक सरकार का व्यय उसके राजस्व से इतना अधिक हो गया कि ऋण के द्वारा व्यय धारण क्षमता से अधिक माना जाने लगा।

किमतो मे वृद्धि  - अनेक आवश्यक वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ने लगीं। आयात की वृद्धि इतनी तीव्र रही कि निर्यात की संवृद्धि से कोई तालमेल नहीं हो पा रहा था। 

भुगतान संतुलन मे कमी - विदेशी मुद्रा के सुरक्षित भंडार इतने क्षीण हो गए थे कि देश की दो सप्ताह की आयात आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते थे। अंतर्राष्ट्रीय उधारदाताओं की ब्याज चुकाने के लिए भारत सरकार के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा नहीं बची थी। इतना ही नहीं कोई देश या अंतर्राष्ट्रीय निवेशक भी भारत में निवेश नहीं करना चाहता था।

उस स्थिति में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निमाण और विकास बैंक (आई.बी.आर.डी.) जिसे सामान्यतः 'विश्व बैंक' के नाम से भी जाना जाता है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का दरवाजा खटखटाया। उनसे देश को 7 बिलियन (अरब) डॉलर का ऋण उस संकट का सामना करने के लिए मिला किंतु इसके लिए IMF ने निम्न सलाह दी।

1) मुद्रा का अवमुल्यन 
2) आयात शुल्क मे वृद्धि 
3) उदारीकरण 
4) नीजीकरण

भारत ने जुलाई 1991 मे नई आर्थिक नीति की घोषणा की।
इस समय प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव एवं वित्त मंत्री मनमोहन सिंह थे।
इस समय 8वी पंचवर्षीय योजना क्रियान्वित थी।
आर्थिक नीतियो के अंतर्गत भारतीय मुद्रा का 1991 मे दो बार  अवमुल्यन किया गया था जिसके अंतर्गत मुद्रा के मूल्य मे 19% की कमी की गई, इससे पहले 1949 एवं 1966 मे मुद्रा का अवमुल्यन किया गया था।
मनमोहन सिंह को भारतीय आर्थिक सुधारों का जनक कहा जाता है।
इस नई आर्थिक नीति में व्यापक आर्थिक सुधारों को सम्मिलित किया गया जो निम्न प्रकार है।

उदारीकरण 

आर्थिक गतिविधियों के नियमन के लिए बनाए गए नियम-कानून ही संवृद्धि और विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बन गए। उदारीकरण इन्हीं प्रतिबंधों को दूर कर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को 'मुक्त' करने की नीति थी। वैसे तो औद्योगिक लाइसेंस प्रणाली, आयात-निर्यात नीति, तकनीकी उन्नयन, राजकोषीय और विदेशी निवेश नीतियों में उदारीकरण 1980 के दशक में भी आरंभ किए गए थे। किंतु, 1991 में आरंभ की गई सुधारवादी नीतियाँ कहीं अधिक व्यापक थीं।

1) औद्योगिक क्षेत्रक का विनियमिकरण - 

निम्न छः उत्पाद श्रेणियों को छोड़ अन्य सभी उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। 
1. एल्कोहल
2. सिगरेट
3. जोखिम भरे रसायन
4. औद्योगिक विस्फोटक पदार्थ 
5. इलेक्ट्रोनिकी विमानन
6. औषधि-भेषज

निम्न 3 क्षेत्रो को पूर्ण रूप से सार्वजनिक रखा गया

1. परमाणु 
2. ऊर्जा उत्पादन
3. रेल परिवहन

2)वित्तीय क्षेत्रक - इसमें व्यावसायिक और निवेश बैंक, स्टॉक एक्सचेंज तथा विदेशी मुद्रा बाज़ार जैसी वित्तीय संस्थाएँ सम्मिलित हैं। भारत में वित्तीय क्षेत्रक का नियमन रिजर्व बैंक का दायित्व है।
वित्तीय क्षेत्रक सुधार नीतियों का एक प्रमुख उद्देश्य यह है कि रिजर्व बैंक को इस क्षेत्रक के नियंत्रक की भूमिका से हटाकर उसे इस क्षेत्रक के एक सहायक की भूमिका तक सीमित कर दिया गया है। इसका अर्थ है कि वित्तीय क्षेत्रक रिजर्व बैंक से सलाह किए बिना ही कई मामलों में अपने निर्णय लेने में स्वतंत्र हो जाएगा।
विदेशी निवेश संस्थाओं (एफ. आई. आई ) तथा व्यापारी बैंक, म्युचुअल फंड और पेंशन कोष आदि को भी अब भारतीय वित्तीय बाज़ारों में निवेश की अनुमति मिल गई है।

3) कर व्यवस्था में सुधार : इन सुधारों का संबंध सरकार की कराधान और सार्वजनिक व्यय नीतियों से है, जिन्हें सामूहिक रूप से राजकोषीय नीतियाँ भी कहा जाता है। करों के दो प्रकार होते हैं: प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर। प्रत्यक्ष कर व्यक्तियों की आय और व्यावसायिक उद्यमों के लाभ पर लगाए जाते हैं। 1991 के बाद से व्यक्तिगत आय पर लगाए गए करों की दरों में निरंतर कमी की गई है।

निगम कर की दर जो पहले बहुत अधिक थी, धीरे-धीरे कम कर दी गई है। अप्रत्यक्ष करों में भी सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं जैसे, वस्तुओं और सेवाओं पर लगाये गये कर-ताकि सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए एक साझे राष्ट्रीय स्तर के बाज़ार की रचना की जा सके।

4) विदेशी विनिमय सुधार: - 1991 में भुगतान संतुलन की समस्या के तत्कालिक निदान के लिए अन्य देशों की मुद्रा की तुलना में रुपये का अवमूल्यन किया गया इससे देश में विदेशी मुद्रा के आगमन में वृद्धि हुई।

5) व्यापार और निवेश नीति सुधार - व्यापार नीतियों के सुधारों के लक्ष्य थे : 
(क) आयात और निर्यात पर परिमाणात्मक प्रतिबंधों की समाप्ति
 (ख) प्रशुल्क (Tariff) दरों में कटौती
 (ग) आयातों के लिए लाइसेंस प्रक्रिया की समाप्ति । हानिकारक और पर्यावरण संवेदी उद्योगों के उत्पादों को छोड़, अन्य सभी वस्तुओं पर से आयात लाइसेंस व्यवस्था समाप्त कर दी गई। अप्रैल, 2001 से कृषि पदार्थों और औद्योगिक उपभोक्ता पदार्थों के आयात भी मात्रात्मक प्रतिबंधों से मुक्त कर दिए गए। भारतीय वस्तुओं का अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में स्पर्धा शक्ति बढ़ाने के लिए उन्हें निर्यात शुल्क से मुक्त कर दिया गया है।

उदारीकरण निति के अंतर्गत सुधार

1) MRTP ACT (एकाधिकार प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार नियम) - यह नियम 1969 मे लागु हुआ था जिसे 2002 मे समाप्त करके प्रतिस्पर्धा नियम 2002 लाया गया।

2) FERA (विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम) - यह नियम 1974 मे लाया गया था जिसे 1999 मे समाप्त करके FEMA (विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम) लाया गया।

3) कर सुधार समिति जिसके अध्यक्ष राजा जे चलैया थे की सिफारिश पर सर्वप्रथम 1994 मे सेवा कर लगाया गया।

नीजीकरण 

इसका तात्पर्य है, किसी सार्वजनिक उपक्रम के स्वामित्व या प्रबंधन का सरकार द्वारा त्याग। सरकारी कंपनियाँ निजी क्षेत्रक की कंपनियों में दो प्रकार से परिवर्तित हो रही हैं
(क) सरकार का सार्वजनिक कंपनी के स्वामित्व और प्रबंधन से बाहर होना
(ख) सार्वजनिक क्षेत्रक की कपनियों को सीधे बेच दिया जाना।

वैश्वीकरण 

एक देश की अर्थव्यवस्था द्वारा दुसरे देश की अर्थव्यवस्था मे व्यापार करना वैश्वीकरण कहलाता है।

वैश्वीकरण के प्रभाव

1) स्थानीय एवं विदेशी दोनों के बीच वृहतर प्रतिस्पर्धा से उपभोक्ताओं, विशेषकर शहरी क्षेत्र  के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। इन उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प हैं और वे अब अनेक उत्पादों की उत्कृष्ट गुणवत्ता और कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं।

2) विगत 20 वर्षों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में अपने निवेश में वृद्धि की है, जिसका अर्थ है कि भारत में निवेश करना उनके लिए लाभप्रद रहा है।

3) वैश्वीकरण ने बड़ी भारतीय कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभरने के योग्य बनाया है, टाटा मोटर्स (मोटरगाड़ियाँ), इंफोसिस (आई. टी.), रैनबैक्सी ( दवाइयाँ), एशियन पेंट्स (पेंट), सुंदरम फास्नर्स ( नट और बोल्ट) कुछ ऐसी भारतीय कंपनियाँ हैं, जो विश्व स्तर पर अपने क्रियाकलापों कर रही हैं।




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