". राजस्थान के लोकदेवता ~ Rajasthan Preparation

राजस्थान के लोकदेवता


 राजस्थान- लोकदेवता

  • राजस्थान के सुदूर ग्रामीण अंचलों में जनमानस में अनेकानेक लोकदेवों एवं लोकदेवियों की मान्यता है।
  • लोकदेवता से तात्पर्य उन महापुरुषों से है, जिन्होंने अपने असाधारण वीरोचित कार्यों तथा दृढ़ आत्मबल द्वारा समाज में सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना, हिन्दू धर्म की रक्षा तथा जनहितार्थ अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। 
पंचपीर

मारवाड़ अंचल के प्रमुख पाँच लोक देवता जिन्हें पंचपीर कहाँ जाता है निम्न है।

  1.  गोगाजी 
  2.  पाबूजी 
  3.  मांगलिया मेहाजी
  4.  हडबुजी
  5.  रामदेवजी

Trick - गोपा मेहरा, गो-गोगाजी,पा-पाबूजी,मे-मांगलिया मेहाजी, ह-हडबुजी, रा-रामदेवजी।

Note- पीर से आशय वे लोक देवता जिनकी आराधना हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग करते हैं।

गोगाजी

  • जन्म -ददरेवा (चुरू),वि स 1003
  • पिता- जेवर चौहान 
  • माता-बाछल दे
  • गुरू -गोरखनाथ 
  • पत्नी- केलमदे
  • सवारी - नीली घोडी
  • ध्वजा - सफेद रंग की
  • गीत - छावली
  • पुजारी - चायल
  • इन्हे जाहरवीर एवं सापों का देवता भी कहाँ जाता है। 
  • गोगाजी का विवाह केलमदे (जो कोलमण्ड की राजकुमारी थी) से होना था, परन्तु विवाह से पूर्व ही इनकी मंगेतर को साँप ने डस लिया। गोगाजी क्रोधित होकर मंत्र पढ़ने लगे जिससे सर्प मरने लगे तब नागदेवता ने इन्हें सापो के देवता होने का वरदान दिया।
  • गाँव-गाँव में खेजड़ी वृक्ष के नीचे गोगाजी के थान बने हुए होते है।
  • गोगाजी के मौसेरे भाई अर्जन व सर्जन के कहने पर महमूद गजनवी ने गोगा जी की गाय चुरा ली।
  • गोगाजी ने गौ-रक्षार्थ महमुद गजनवी से युद्ध करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिये।
  • गोगाजी की शीर्षमेडी - ददरेवा (चुरू)
  • गोगाजी की धुरमेडी - गोगामेडी (हनुमानगढ)
  •  इन्हे महमूद गजनवी ने जाहर पीर कहा।
  • राजस्थान का किसान वर्षा के बाद हल जोतने से पहले गोगाजी के नाम की राखी 'गोगा राखड़ी' हल और हाली, दोनों के बांधता है।
  •  इन्हें सर्पदंश से बचाव हेतु पूजा जाता है। सर्प काटे व्यक्ति को गोगाजी के नाम की ताँती बांधी जाती है।
  •  गोगामेड़ी के मंदिर के दरवाजे की ऊँचाई पर बिस्मिल्लाह अंकित पत्थर लगा हुआ है, इस मंदिर का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया।
  • गोगामेड़ी में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्णा नवमी (गोगा नवमी) को विशाल मेला भरता है।
  •  साँचोर (जालौर) किलौरियों की ढाणी में भी गोगाजी की ओल्डी नामक स्थान पर गोगाजी का मंदिर है।
  • गोगाजी के समाधि स्थल के बाहर नरसिंह कुण्ड स्थित है।
  • डेरू गोगाजी का प्रमुख वाद्य यंत्र है।

पाबूजी 

  •  जन्म 13वीं शताब्दी (वि.सं. 1296) में फलौदी (जोधपुर) कोलूमण्ड में 
  • पिता - धाँधल जी राठौड़ 
  • माता - कमलादे
  • पत्नि - फुलन दे/सुप्यार दे(अमरकोट के राजा सूरजमल सोडा की पुत्री)
  • उपनाम- ऊँटो के देवता, प्लेग रक्षक, सर्रा रोग के निवारक
  • ये राठौड़ों के मूल पुरुष राव सीहा के वंशज थे।
  • विवाह के समय साढे तीन फेरे लिए एवं फेरो के बीच से ही अपने बहनोई जीन्दराव खींची से देवल चारणी (जिसकी केसर कालमी घोड़ी ये मांग कर लाए थे) कि गाये छुड़ाने चले गये और देचूँ गाँव में वि.सं. 1333 में युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुए । 
  • इन्हे गौ-रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। 
  • मारवाड़ में ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को ही है
  •  ऊँटों की पालक राड़का (रेबारी) जाति इन्हें आराध्य देव मानती है तथा मेहर जाति के मुसलमान ने पीर मानकर पूजा करते हैं। 
  • इन्हें लक्ष्मण का अवतार भी माना जाता है।  
  • कोलूमण्ड में इनका सबसे प्रमुख मंदिर है, जहाँ प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला भरता है, इस मेले मे थाली नृत्य का आयोजन किया जाता है।
  • पाबूजी के पवाड़े माठ वाद्य के साथ पढे जाते हैं।
  • पाबूजी की पड़' नायक जाति के भोपो द्वारा 'रावणहत्था वाद्य के साथ बाँची जाती है, पाबुजी की फड सभी लोकदेवताओ मे सबसे लोकप्रिय फड है।
  • थोरी/ राईका जाति के लोग पाबुजी की फड का वाचन करते समय सारंगी वाद्य यंत्र का प्रयोग करते हैं।
  • पाबूजी गौ-रक्षक होने के साथ-साथ अछूतोद्धारक भी थे।  
  • पाबूजी के पाँच प्रमुख साथी (सरदार) चाँदोजी, सावंतजी, डेमाजी, हरमलजी राइका एवं सलजी सोलंकी थे।
  •  थोरी जाति के लोग सारंगी के साथ पाबूजी की गाथा गाते हैं, जिसे स्थानीय बोली में  पाबू धणी री बाचना कहते हैं। 
  • आशिया मोड़जी द्वारा लिखित 'पाबू प्रकाश' पाबू जी के जीवन पर एक महत्त्वपूर्ण रचना है। इसके अलावा पाबूजी पर पाबूजी रा छन्द, पाबूजी के दोहे, पाबूजी के पवाड़े, पाबूजी की लोकगाथा आदि प्रसिद्ध रचनाएँ भी हैं।  
  • पापूजी ने बघेला शासक के भगोड़े म्लेच्छ जाति के सात थोरी -भाईयों को शरण देकर उनकी रक्षा की थी, इसलिए थोरी जाति के लोग इन्हें अपना आराध्य देव मानते है।

मेहाजी मांगलिया

  • जन्म स्थल - बापिणी, जोधपुर 
  • पिता- गोपाल राव सांखला
  • मेहाजी शकुनशास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे।
  • कर्नल जेम्स टाॅड ने इनका गौत्र पंवार बताया है।
  • मेहाजी मांगलियों जाति के इष्ट देव के रूप में पूजे जाते हैं।
  • मेहाजी का सारा जीवन धर्म की रक्षा और मर्यादाओं के पालन में बीता। 
  • जैसलमेर के राव राणंगदेव भाटी से गौरक्षा हेतु युद्ध करते हुए ये वीरगति को प्राप्त हुए।
  • बापणी में इनका मंदिर है भाद्रपद माह की कृष्ण जन्माष्टमी को मांगलिया राजपूत मेहाजी की अष्टमी मनाते हैं।
  • लोक मान्यता है कि इनकी पूजा करने वाले भोपो की वंश वृद्धि नहीं होती वे गोद लेकर पीढ़ी आगे चलाते थे।
  • किरड काबरा - घोडा

हड़बूजी

जन्म- भुंडोल (नागौर) 
पिता - मेहाजी साँखला
सवारी - सियार
उपनाम - गायो के सेवक देवता, शकुनशास्त्र के ज्ञाता, सन्यासी देवता

लोकदेवता रामदेवजी हडबूजी के मौसेरे भाई थे।

1731 मे अजीतसिंह ने बेंगटी (फलौदी) में हड़बूजी के मूदिर का निर्माण करवाया, इनके पुजारी साँखला राजपूत होते हैं, यहा पर भाद्रपद शुक्ल दशमी को मेला लगता है।

बैगटी गाँव (जोधपुर) में स्थित मंदिर में हड़बूजी की बेलगाडी की पूजा की जाती है, इस गाड़ी से चारा लाकर हड़बूजी पंगु गायों की सेवा करते थे।

राजदेवजी के समाधि धारण करने के 8 दिन बाद इन्होने भी समाधि लेली।

इनके आशीर्वाद व इनके द्वारा भेंट की गई कटार के माहात्म्य से जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने मण्डोर दुर्ग पर अधिकार कर उसे मेवाड़ के आधिपत्य से मुक्त करा लिया था, इस कारण राव जोधा ने इन्हे बैंगटी गांव एवं गाडी उपहार स्वरूप भेंट की।

साँखला हरभू का हाल इनके जीवन पर लिखा प्रमुख ग्रंथ है।


रामदेवजी

  


उपनाम -  रामसा पीर, रुणीचा रा धणी, ठाकुरजी, पीरो का पीर, 
जन्म - 1405/ वि स 1462
जन्म स्थल- उडुकाश्मेर, शिव तहसील (बाडमेर)
पिता - अजमल जी (तंवर वंशीय)
माता - मैणादे
पत्नी- नैतल दे(निहाल दे)
नेतलदे अमरकोट पाकिस्तान के दल्ले सिंह सोढा की पुत्री थी।
बहन - सुगणा बाई व लाछा
धर्म बहन - डाली बाई 
भाई - बीरमदेव
गुरू - बालिनाथ
सवारी - लीला घोडा (रेवत)
ये अर्जुन के वंशज माने जाते हैं।
इन्हें कृष्ण का अवतार माना जाता है।
इन्हें कुष्ठ रोग का निवारण देव कहा जाता है।

भाद्रपद सुदी एकादशी वि.सं. 1515 (सन् 1458) को इन्होंने रूणीचा के राम सरोवर के किनारे जीवित समाधि ली थी।

रामदेवजी ने समाज में व्याप्त छुआ-छूत, ऊँच-नीच आदि बुराइयों को दूर कर सामाजिक समानता स्थापित की।

सहयोगी - हरजी भाटी, लक्की बंजारा, रतना राई

शुद्धि आंदोलन - इसके अंतर्गत इन्होंने धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को पुनः धर्म में शामिल किया।

ऐसी मान्यता है कि रामदेवजी ने बाल्यावस्था में ही सातलमेर (पोकरण) मे भैरव राक्षस का वध किया।

इन्होंने कमडीया पंथ की स्थापना की।

रामदेवरा (रुणेचा) में रामसरोवर का निर्माण करवाया।

रामदेव जी एकमात्र ऐसे लोग देते थे जो कवि भी थे, इन्होंने चौबिस बाणिया ग्रंथ की रचना की।

रामदेव जी के पगलिए पूजे जाते हैं इन्होंने तीर्थ यात्रा तथा मूर्ति पूजा का विरोध किया।

मक्का से आये पाँच पीरों को रामदेवजी ने 'पंच पीपली' स्थान पर पर्चा दिया था।

सुगणा बाई का विवाह पूंगलगढ़ (बीकानेर) के शासक विजय सिंह के साथ हुआ।

भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को बाबा री बीज कहा जाता है।

रामदेवरा (रुणीचा) में रामदेवजी का मंदिर है जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक मेला भरता है।
इस मेले में कामड़ जाति की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला तेरहताली नृत्य है। इस मेले को मारवाड़ का कुंभ कहा जाता है।

पुजा स्थल

खुण्डियास - अजमेर 
इसे छोटा रामदेवरा कहा जाता है।
सुरताखेडा - चित्तौड़गढ़ 
बिरांटिया - पाली
कठौतिया - नागौर 

बाबा रामदेव के चमत्कारों को पर्चा एवं इनके भक्तों द्वारा गाये जाने वाले भजनों को ब्यावले कहते हैं।

रामदेवजी के मंदिरो को देवरा कहा जाता है, जिन पर श्वेत या 5 रंगों की ध्वजा नेजा फहराई जाती है ध्वजा पर लाल रंग के कपड़े से रामदेवजी के चरण बने होते हैं।

डालीबाई ने रामदेव जी से एक दिन पूर्व ही जीवित समाधि ले ली थी वहीं डाली बाई का मंदिर है।

रामदेवजी की पड़ मुख्यत: जैसलमेर व बीकानेर में बाँची जाती है।
इनके भक्तो को रिखिया कहा जाता है।
रूणेचा में इनके पुजारी तँवर राजपूत होते हैं।
पैदल यात्री - जातरू

रामदेवजी का ब्यावला - पूनमचंद द्वारा 
श्री रामदेवजी चरित - ठाकुर रुद्र सिंह तोमर
श्रीरामदेव प्रकाश - पुरोहित रामसिंह, 
रामसापीर अवतार लीला - गौरीदासात्मक
श्रीरामदेवजी री - हरजी भाटी

तेजाजी 



लोक देवता तेजाजी खड़नाल (नागौर परगने में) के नागवंशीय जाट थे। इनका जन्म वि.सं. 1301 में माघ शुक्ला चन्दशी को हुआ था। 
पिता - ताहड़जी
माता - रामकुँवरी 
पत्नी - पेमलदे (पनेर के रामचन्द्रजी या रायमल जी की पुत्री)

तेजाजी को परम गौरक्षक एवं गायों का मुक्तिदाता माना जाता है। इन्हें 'काला और बाला देवता भी कहते हैं।

 इन्होंने लाछा गुजरी की गायें मेरों से छुड़ाने हेतु वि.सं. 1160 (1103 ई.) भाद्रपद शुक्ल दशमी को सुरसरा (किशनगढ़, अजमेर) मे अपने प्राणोत्सर्ग किए।

• इनके थान पर सर्प व कुत्ते काटे प्राणी का इलाज होता है। प्रत्येक किसान तेजाजी के गीत (तेजाटेर) के साथ ही खेत में बुवाई प्रारम्भ करता है। ऐसा विश्वास है कि इस स्मरण से भावी फसल अच्छी होती है।

तेजाजी विशेषत: अजमेर जिले के लोकदेवता हैं। इनके मुख्य ' थान' (मंदिर) अजमेर जिले के सुरसुरा, ब्यावर, सेंदरिया एवं भावतां में हैं। उनके जन्म स्थान खड़नाल में भी इनका मंदिर है।

 नागौर जिले के परबतसर कस्बे में तेजाजी का विशाल मेला भाद्रपद शुक्ला दशमी को भरता है। जहाँ बड़ा पशु मेला भी लगता है, जिसमें भारी मात्रा में पशुओं की भी खरीद फरोख्त होती है। तेजाजी की निर्वाण स्थली सुरसुरा (किशनगढ़, अजमेर) में तेजाजी की जागीर्ण निकाली जाती है।

सर्पदंश का इलाज करने वाले तेजाजी के भोपे को 'घोड़ला' कहते हैं।

• तेजाजी की घोड़ी लीलण (सिणगारी) थी।

• राजस्थान में प्राय: सभी गाँवों में तेजाजी के 'थान' या 'देवरे' बने हुए हैं। देवरों पर तेजाजी की प्रतिमा हाथ में तलवार लिए घुड़सवार के रूप सूर्य के साथ स्थापित की जाती है। राज्य के लगभग सभी भागों में लोकदेवता तेजाजी को ' सर्पों के देवता' के रूप में पूजा जाता है। जाट जाति में इनकी अधिक मान्यता है।

देवनारायणजी


 
 
 
 
 
 
 
 
 
देव नारायणजी का जन्म विक्रम संवत् 1300 (सन् 1243 ई.) में आसीन्द (भीलवाड़ा में) बगदावत कुल नागवंशीय गुर्जर परिवार में हुआ। वे सवाईभोज और सेतू के पुत्र थे। इनका जन्म नाम उदयसिंह वा देव का घोड़ा 'लीलागर' (नीला) था। इनकी पत्नी धार नरेश जयसिंह देव की पुत्री पीपलदे थी।

इन्होंने अपने पिता की हत्या का बदला भिनाय के शासक को मारकर लिया तथा अपने पराक्रम और सिद्धियों का प्रयोग अन्याय का प्रतिकार करने और जनकल्याण में किया। देवमाली/देहमाली (ब्यावर) में इन्होंने दे त्यागी। देवमाली को बागड़ावतों का गाँव कहते हैं।

• देवजी का मूल 'देवरा' आसींद (भीलवाड़ा) के पास गोठा दहावत में है। इनके अन्य प्रमुख देवरे देव (व्यावर, अजमेर), देवधाम जोधपुरिया (निवाई, टोंक) व देव डूंगरी पहाड़ी (चित्तौड़गढ़) में हैं।

• देवनारायण के देवरों में उनकी प्रतिमा के स्थान पर बड़ी ईंटों की पूजा की जाती है।

इनके प्रमुख अनुयायी गुर्जर जाति के लोग हैं जो देवनारायण जी को विष्णु का अवतार मानते हैं। • देवनारायण जो की पड़ गूजर भोपों द्वारा 'जंतर वाद्य' की संगत में बाँची जाती है। यह राज्य की सबसे बड़ी पड़ है।

• देवनारायणजी का मेला भाद्रपद शुक्ला छठ व सप्तमी को लगता है।

• देवधाम जोधपुरिया (वनस्थली के पास, टॉक) में देवनारायणजी मंदिर में बगड़ावतों की शौर्य गाथाओं का चि किया हुआ है। देवनारायणजी औषधिशास्त्र के भी ज्ञाता थे। इन्होंने गोबर तथा नीम का औषधि के रूप में प्रयोग के महत्त्व को प्रचारित किया।

• देवनारायणजी ऐसे प्रथम लोकदेवता हैं जिन पर केन्द्रीय सरकार के संचार मंत्रालय ने 2010 में 5 रु. का डाक टिकट जारी किया था।

• देवजी के जन्मदिन 'भाद्रपद शुक्ला छठ' को गुर्जर लोग दूध नहीं जमाते और न हीं बेचते हैं।
 • देवनारायणजी के अनुयायी इनके नाम के सोने व चांदी के फूल बनवाकर पहनते हैं।

• देवनारायणजी के संबंध में लिखे ग्रंथों में बात देवजी बगड़ावत री', 'देवजी री पड़', 'देवनारायण का मारवाड़ी ख्यात' एवं 'बगड़ावत' काव्य प्रमुख हैं।

• देवनरायणजी को चूरमा व खीर का भोग लगाते हैं

कल्लाजी


 

 
 
 
 
 
 
 
 
वीर कल्ला राठौड़ का जन्म मारवाड़ के सामियाना गाँव में राव अचलाजी (मेड़ता शासक राम दूदाजी के पुत्र) के घर आश्विन शुक्ला अष्टमी वि. सं. 1601 (सन् 1544 ई.) को हुआ। भक्त शिरोमणी मौरा इनकी चचेरी बहन थी।

 इन्हें कई सिद्धियाँ प्राप्त थी। प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ इनके गुरु थे।

मेवाड के तीसरे शाके (1567 ई. में) में महाराणा उदयसिंह जी की ओर से अकबर के विरुद्ध लड़ते हुए मे वीरगति को प्राप्त हुए। युद्ध में घायल वीर जयमल को इन्होंने अपने कंधे पर बिठाकर पुद्ध किया था और दोनों ही बुद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए थे। युद्धभूमि में चतुर्भुज के रूप में दिखाई गई वीरता के कारण इनकी ख्याति चार हाथ वाले लोक देवता के रूप में हुई।

• इन्हें शेषनाग का अवतार' माना जाता है। अतः वीर कल्लाजी की पूजा प्राय: नाग के रूप में की जाती है। 
• सामलिया क्षेत्र (डूंगरपुर) में इनकी काले पत्थर की प्रतिमा स्थापित है।

• कल्लाजी को योगाभ्यास व जड़ी-बूटियों एवं इनके उपयोग का अच्छा ज्ञान था।

कल्ताजी के भक्त रविवार को इनके मंदिरों, गादियों एवं चौकियों पर एकत्र होकर इनकी आराधना कर अपने रोगों एवं दुःखों से छुटकारा पाते हैं। इनके श्रद्धालुओं को मान्यता है कि कल्लाजी की आत्मा मंदिर के मुख्य सेवक 'किरणधारी' के शरीर में प्रवेश कर लोगों के कष्टों को दूर करती है। वह (सेवक) तलवार की सहायता से सभी
का उपचार करता है।

 • चित्तौड़गढ़ दुर्ग में भैरव पोल पर कल्लाजी राठौड़ की एक छतरी बनी हुई है।

रनेला' (रुणेला) इस वीर का सिद्ध पीठ है। भूत-पिशाच ग्रस्त लोग, रोगी पशु, पागल कुत्ता, गोधरा, सर्प आदि विषैले जन्तुओं से दंशित व्यक्ति या पशु सभी यहाँ कल्लाजी की कृपा संताप से छुटकारा पाते हैं। 

मल्लीनाथ जी

लोकदेवता के रूप में पूज्य मावीनाथ जी का जन्म सन् 1358 ई. में मारवाड़ के राव तीड़ा जी (सलखा जी) के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ। इनकी माता का नाम जाणीदे था। ऐसी मान्यता है कि श्री मीनाय जी एक भविष्यदृष्टा एवं चमत्कारी पुरुष थे, जिन्होंने विदेशी आक्रांताओं से जनसाधारण की रक्षा करने एवं जनता कर मनोबल बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये निर्गुण-निराकार ईश्वर को मानते थे।
 
 मल्लीनाथजी ने अपने पराक्रम से अपने राज्य 'महेवा' का विस्तार किया।

• मण्डोर पर राठौड़ वंश के शासन के संस्थापक राव चूँडा इनके भतीजे थे। मल्लीनाथजी ने राव चूडाको (1394 ई.) व नागौर विजय (1397 ई.) में सहायता प्रदान की थी। इन्होंने 1378 ई. में मालया के सूबेदार निजामुद्दीन की सेना को परास्त किया था।

• तिलवाड़ा (बाड़मेर) में इनका प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ हर वर्ष चैत्र कृष्णा एकादशी से चैत्र शुक्ला एकादशी तक 15 दिन का मेला भरता है, जहाँ बड़ी संख्या में पशुओं का क्रय-विक्रय भी होता है। • इनकी राणी रुपांदे का मंदिर भी तिलवाड़ा से कुछ दूरी पर मालाजाल गाँव में स्थित है।

• लोकमान्यता है कि बाड़मेर के मालाणी क्षेत्र का नाम इन्हीं के नाम पर पड़ा

तल्लिनाथ जी - बाडमेर 

पांचना गाँव मे इनका मंदिर स्थित है।

भूरिया बाबा 

 मीणा आदिवासियों के इष्टदेव गौतमेश्वर महादेव ( भूरिया बाबा या गौतम बाबा) का प्रसिद्ध मंदिर वहाँ की अरावली पर्वत श्रृंखलाओ में सिरोही जिले के चोटीला (चाँदीला) गाँव के सुकड़ी नदी के तट पर प्रकृति की गोद में स्थित है। इनके अनुयायी कभी गौतमेश्वरजी की झूठी कसम नहीं खाते हैं 
 •सूकडी नदी के दाहिने किनारे पर एक टेकड़ी पर स्थित इस चमत्कारिक मंदिर का निर्माण मीणा जाति के लोगों द्वारा पूर्ण करवाया गया था। मेले के अवसर पर जनजाति समुदाय अपने पूर्वजों की अस्थियां सूकड़ी नदी में प्रवाहित करता है।
 कहा जाता है कि यहाँ गौतम ऋषि का आश्रम था। यहाँ देवी अहिल्या एवं अंजनी की प्रतिमाएँ विद्यमान है। यहाँ गौतमेश्वर ऋषि महादेव का शिवलिंगाकार विराजमान है।

यहाँ 13 अप्रैल से 15 अप्रैल तक हर वर्ष प्रसिद्ध मेला लगता है। कहा जाता है कि भयंकर अकाल के समय भी यहाँ गंगा कुण्ड' का पानी नहीं सूखता बल्कि आस-पास भी 2-3 मीटर खोदने पर ही पानी निकल आता है। 
गोतमेश्वर महादेव का एक लोकतीर्थ प्रतापगढ़ जिले में अरनोद कस्बे के पास भी है, जिसे वहाँ का आदिवासी समुदाय पाप विमोचक तीर्थ मानता है। यहाँ स्थित पापमुक्ति कुण्ड (मंदाकिनी कुण्ड) में स्नान कर लोग पाप मुक्त हो जाते हैं ऐसी मान्यता है । यहाँ का शिवलिंग खण्डित है यहाँ प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला 11 से ज्येष्ठ कृष्णा 2 तक भव्य लक्खी मेला भरता  है।

इलोजी


ये छेड़छाड़ के देवता के रूप में प्रसिद्ध है।
इलोजी की पूजा मारवाड़ में होली के अवसर पर की जाती है तथा इनकी मूर्ति आदमकद नग्न अवस्था में होती है।
बाडमेर मे पत्थर मार होली के अवसर पर इलोजी की बारात नीकाली जाती है।

रूपनाथ जी/झरड़ा जी

जन्म स्थान- कालूमण्ड, जोधपुर ये पाबूजी के भतीजे तथा बूढ़ो जी राठौड़ के पुत्र थे।
इन्हें हिमाचल में बालकनाथ के रूप में पूजा जाता है।इन्होंने पाबूजी की मृत्यु का बदला जींदराव खींची को मारकर लिया।
इनके मुख्य पूजा स्थल- कोलू (जोधपुर), सिंभुदड़ा, नौखा (बीकानेर) है।

वीर फत्ताजी -

जन्म - साथूँ गाँव (जालोर)।
गाँव पर लूटेरों के आक्रमण के समय इन्होंने भीषण युद्ध किया।इनकी याद में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला नवमी को मेला भरता है।

बाबा झूंझारजी -

जन्म - इमलोहा गाँव (सीकर)।
भगवान राम के जन्म दिवस रामनवमी को स्यालोदड़ा (सीकर) में इनका मेला भरता है।
बाबा झूंझारजी का स्थान सामान्यतः खेजड़ी के पेड़ के नीचे होता है।

वीर बिग्गाजी 

जन्म - जांगल प्रदेश।
 रीडी गाँव (बीकानेर)पिता - राव मोहन, माता - सुल्तानी देवी।बीकानेर के जाखड़ समाज के कुल देवता।
मुस्लिम लूटेरों से गायों की रक्षा की।

डूंगजी-जवाहरजी (गरीबों के देवता) - 

सीकर जिले के लूटेरे लोकदेवता, जो धनवानों व अंग्रेजों से धन लूटकर गरीबों में बांट देते थे। 
1857 की क्रांति में सक्रिय भाग लिया।

हरिराम बाबा 

झोरड़ा (नागौर) में इनका पूजा स्थल है।
गुरु - भूरा।
इन्होंने साँप काटे हुए पीड़ित व्यक्ति को ठीक करने का मंत्र सीखा।

पनराजजी - 

जन्म - नगा गाँव (जैसलमेर)।
मुस्लिम लूटेरों से काठौड़ी गाँव के ब्राह्मणों की गायें छुड़ाते हुए शहीद हुए।

केसरिया कुंवरजी 

लोकदेवता गोगाजी के पुत्र।
इनके थान पर सफेद रंग की ध्वजा फहराते हैं।

भोमियाजी 

गाँव-गाँव में भूमि रक्षक देवता के रूप में प्रसिद्ध।

मामादेव :वर्षा के देवता।

मामादेव का कोई मंदिर नहीं होता न ही कोई मूर्ति होती है।गाँव के बाहर लकड़ी के तोरण के रूप में मामादेव पूजे जाते है।
इन्हें प्रसन्न करने के लिए “भैंसे की कुर्बानी” दी जाती है। 
इनका प्रमुख मन्दिर स्यालोदड़ा (सीकर) में स्थित है। जहाँ प्रतिवर्ष रामनवमी को मेला भरता है।

1 comment:

  1. गोगाजी की ऑल्डी सांचौर में कहा पर है सांचौर एक बहुत बड़ी तहसील है और सांचौर में कम से कम 10/15 छोटे छोटे गोगाजी के मंदिर स्थित है
    पर्यटकों के लिए शुलभ हो इसलिए पुरा एड्रेस
    सांचौर में स्थित छोटा सा गांव खिलेरीयों की ढाणी "झोटड़ा" में स्थित है।

    ReplyDelete

Comment us